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हम आपके सहयात्री हैं.

अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, December 31, 2010

उल्लेखनीय संकल्प !

मेरे लिए नववर्ष का आरम्भ एक गंभीर चिंतन का अवसर होता है. हर नये साल में बधाइयों एवं शुभकामनाओं के बीच एक संकल्प भी लिया जाता रहा है. लिए गए संकल्पों के बाद क्या हमने अपनी बिखरी शक्तियों का संचय कर उचित दिशा में इसका प्रयोग किया है? यह सवाल भी कभी कभी हमारे चिंतन  का विषय होता है, परन्तु यह हर वर्ष हो इसकी गारंटी नहीं है.
जैसा कि अधिकांश ये होता आया है "संकल्पों पर दृढ़ता से कायम न रहना", और यही हुआ भी. आज तीन साल बाद फिर एक दृढ संकल्प लेने और उनपर सख्ती से अम्ल करने की जरुरत महसूस हो रही है. इसका मतलब साफ़ है आने वाले वर्ष में एक श्रमजीवी के रूप में कुछ उल्लेखनीय कार्य करने ही होंगे.

यह तो हुई मेरी बात. जो कि तय है मैं अवश्य करूँगा. अब बात करते हैं कुछ औरों की, जिन्होंने इस मौके पर कुछ अच्छे संकल्प लिए हैं (?)

पाकिस्तान - " हम संकल्प लेते हैं आइन्दा अमेरिका से कोई मदद नहीं  लेंगे, हमें इसकी जरुरत नहीं होगी क्यूंकि चीन ने भारतविरोधी अभियानों में मदद करने का वादा किया है"

अमेरिका - "हम अपने पैसो और ताकतों का इस्तेमाल सिर्फ और सिर्फ लोकहित में कल्याणकारी योजनाओं में  करेंगे. युद्ध से हमारा कोई रिश्ता नहीं होगा. हाँ दुनिया भर के देशो में उनके किसी विवादों के बीच मध्यस्थता करने वाले एजेंटों को उचित पारिश्रमिक  देते रहेंगे. भारी मेहनताना सिर्फ उन्ही एजेंटों को मिलेगा जो  विवादों को जीवनभर निभायेंगे"

मनमोहन सिंह - "मैं संकल्प लेता हूँ अब नए साल से अपने देशवासियों को कोई शिकायत का मौका नहीं दूंगा. मैं अपनी चुप्पी तोरुंगा, किसी भी मामले में कोई भी ब्यान देने से पहले मैं सोनिया जी से परामर्श नहीं लूँगा. मैं सिर्फ राहुल बाबा से अनुमति लेना जरुरी समझूंगा"
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आप सभी ब्लोगर साथियों के लिए नया साल शुभ और प्रगति-दायिनी हो. हार्दिक शुभकामनाएं !!!


- सुलभ

Sunday, November 7, 2010

दास्ताँ-ए-इश्क दौरान-ए-ग़ज़ल

युनिवर्सल ट्रूथ की तरह कुछ पंक्तियाँ अजर अमर है, जैसे ये शेर  "ये इश्क नही आसां इतना समझ लिजिये, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है." जहाँ इश्क इबादत है वहीं कुछ परंपराएं भी हैं.
इन दिनो ग़ज़लों का मौसम है, मन मे उत्साह है. प्रस्तुत है कुछ पंक्तियां जिसे "दास्ताने इश्क दौराने ग़ज़ल" कह सकते हैं.


तोबा  ये  तकरार  की बातें
इश्क मे जित-हार की बातें


हुस्न शोला, है अदा कातिल
इश्क  मे  हथयार की बातें


जिगर यारों थाम के रखना
इश्क  मे  इन्कार की बातें


जुबाँ चुप औ' दिल है बेकाबू
इश्क मे  इज़हार की बातें


सोना चाँदी  ना मोती मूंगा 
इश्क  मे दिलदार की बातें


वफ़ा  वादे  दोस्ती  कसमे
इश्क  मे ऐतबार की बातें


सनम की यादे गमे-जुदाई
इश्क मे इंतजार की बातें


सितमग़र जुल्मी बेवफाई
इश्क मे  हैं ख़ार की बातें


लैला मजनूँ फ़रहाद शीरी
इश्क में किरदार की बातें


 - सुलभ 

Thursday, November 4, 2010

आधे अधूरे दीये जलते

लोकतंत्र की रखवाली मे
नेता व्यस्त  दलाली मे

चुनावी  मुद्दे  गौण हुये
लफ्फाजी और गाली मे

ज़ज सी.बी.अई पानी भरते
सत्ता  की कोतवाली  मे

खुन-पसीना पेशाब बराबर
भ्रष्टाचार  की  नाली मे

दुश्मन  वही सबसे बड़ा
जो करते छेद थाली मे

आधे अधूरे दीये जलते
महंगी होती दीवाली मे
***


(आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं! - सुलभ )


Wednesday, September 8, 2010

अज़ब मुश्किल है

दिन प्रतिदिन उधेड़बुन बढ़ती जा रही, जो कहना चाह रहा था वो कह नहीं पा रहा हूँ. कुछ ऐसे ही हालात में जाने क्या कह गया. लीजिये एक छोटी सी बेबहर ग़ज़ल -


अज़ब मुश्किल है
दूर   मंजिल   है

रस्ता रोक कर
खड़ा क़ातिल है

भरोसा करूँ क्या ?
दोस्त  काबिल  है

मेरे   गुनाहों   में
तक़दीर शामिल है

बार बार फिसलता
आवारा एक दिल है

भाव हैं शब्द नहीं
शायरी मुश्किल है

- सुलभ 

Tuesday, August 31, 2010

दर्द के अँधेरे में रोज़ यूँ ही नज़्म खिला करेंगे


यूँ तो हिंदी ब्लोगरी का स्वाद तीन साढ़े तीन साल पहले २००७ में (नारद अक्षरग्राम के सौजन्य से) चखा था. वर्ष २००८ के अंत में चिट्ठाजगत के संपर्क में आया.
 परन्तु ब्लॉगजगत के स्नेहीजनो से परिचय तब हुआ जब पिछले साल २००९ अगस्त के ही महीने में ब्लोगवाणी से जुड़ा था. कह सकते हैं की सबके साथ चलने का "वास्तविक सफ़र का आनंद" एक साल से है.

ब्लॉगजगत के सदस्यों को मिलाने की दिशा में किये गए कुछ उल्लेखनीय कार्यों में, मैं बधाई देता हूँ साहित्य शिल्पी वाले श्री राजीव रंजन जी को,  मैं आदरणीय श्री बी.एस.पाबला जी को बधाई देता हूँ, उनके समर्पित भावनाओं के लिए. चूँकि आज का दिन मेरे लिए बहुत ख़ास है. हिन्दी ऊर्दू साहित्य प्रेमी होने के नाते मेरे लिए सभी रचनाकारों के ब्लॉग महत्वपूर्ण है, ऐसे ढेरों ब्लॉग हैं जहाँ कुछ संवेदनशील शब्द-रचना देख पढ़ जेहन में देर तक हलचल होती है.  आज की पोस्ट मैं समर्पित करता हूँ, अपने एक ब्लोगर साथी "हरकीरत 'हीर" के नाम. जिनका प्रोत्साहन मुझे नियमित मिलता रहा है.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

उम्मीद
जो अनमने हवाओं के संग बहते हैं
परिचित पत्थरों से टकराते हैं,
कहीं आराम से बैठ नहीं पाते
खामोश चलते वक़्त की तपिश कहीं झुलसा न दें
उम्मीद के जर्द चहरे को राख न कर दे.
उम्मीद जो मोहब्बत से लबालब
दरिया तक पहुंचना चाहते हैं.
सो बस चलते रहते हैं
आँखों की नमी के साथ
वक़्त जरुरत यही
आंसू प्यास भी बुझाते हैं.

हालंकि वह दरिया कब की सूखी पड़ी है
पर निशान तो वहीँ कायम है.
कभी न कभी बर्फ पिघलेंगे
और इसी निशां का रुख करेंगे
फिर जब दरिया अपने रवानी में होगी
दर्द के गठरी को बहा ले जायेगी 


फिलवक्त तो उम्मीदों के बोझ
तुम पलकों पर उठाये रखना
कदम बढाते रहना वफ़ा की ओर
जब तक साँसे चल रही है
तरन्नुम मिला करेंगे.
दर्द के अँधेरे में  रोज़ यूँ ही
नज़्म खिला करेंगे.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

आदरणीय हरकीरत जी,
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारकबाद!!


आप की एक नज़्म जो बहुत ख़ास है....
नजरिया ......
उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!
 
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
( अपना जन्मदिन भी मैं आज ही साझा कर रहा हूँ :).......सुलभ 

Saturday, August 14, 2010

आज़ाद वतन में मुझको आज़ाद घर चाहिए

चाहे लाख व्यस्तता हो, दुश्वारियां हो, अकेलापन हो या पागलपन कुछ जिम्मेदारियां हर हाल में निभायी जाती हैं. ये बात अगर हर कोई समझ ले तो अपना मुल्क भी तरक्की कर जाये और गौरवशाली इतिहासों एवं कुर्बानियों से भरा अपना प्यारा भारत दुनिया में नंबर १ कहलाये.  मैं कहीं भी रहूँ स्कूल में, कालेज में, गली मोहल्ले के समितियों में  या व्यवसायिक कार्य स्थल पर पुरे जोशोखरोश और फक्र से जश्ने-आज़ादी मनाता हूँ. एक बहुत ही ख़ास ग़ज़ल आप सबकी ख़िदमत में पेश है -



कहीं हिन्दू किसी को मुस्लिम जरूर चाहिए
आज़ाद वतन में मुझको आज़ाद  घर चाहिए

गली हो मंदिर वाली या कोई मस्जिद वाली
खुलते हों जहाँ रोज दुकान वो शहर चाहिए

इससे पहले कि ये तिरंगा हो जाये तार तार 
हुक्मराँ  में भी शहीदों वाला असर चाहिए

नहीं देखना वो ख्वाब ताउम्र जो आँखों में पले
मुख़्तसर इस जिंदगी में एक हमसफ़र चाहिए

जालिम नज़रों से बचके मैं जब भी घर को आऊं
किवाड़ खुलते ही मुझे प्यार भरी नज़र चाहिए
***

~~आप सभी साथियों को स्वाधीनता दिवस की हार्दिक बधाई! - सुलभ

Saturday, July 17, 2010

यात्रा व्यस्तताओं के बीच ब्लोगरी


स साल में छ माह गुज़र जाने के बाद यह पहला मौका है कि मैं ऑफिस व्यस्तता और यात्राओं की चपेट में एक साथ ऐसा आया कि ब्लोगरी अस्त व्यस्त हो गयी, आगे के आसार भी
नियमित ब्लोगरी से दूर बने रहने की है. तीन दिन पहले जिस सीमांचल एक्सप्रेस से दिल्ली से निकलना हुआ, गंतव्य तक पहुँचते पहुँचते २० घंटे विलम्ब झेलने के बाद अन्य कई कार्यों में भी कठिनाई बनी रही. पटना में समिति द्वारा विवाह कार्यक्रम भी संपन्न हुआ. विस्तृत खबर यहाँ देखें. उधर सुबीर संवाद सेवा पर तरही मुशायरा भी शुरू हो चुका है, हमारे गृह क्षेत्र में घनघोर बारिश का आना जाना लगा हुआ है. इस बीच एक सूचना हिंद युग्म से मिली जहाँ ममता शीर्षक वाली कविता को प्रकाशित एवं पुरस्कृत भी किया गया है...

अपने ब्लॉग साथियों के पोस्टों एवं अन्य महत्वपूर्ण ब्लोगों पर चर्चा में भाग नहीं ले पाने का मलाल है. फिर भी ईमेल फीड से बहुत से पोस्ट पढ़ पा रहा हूँ.

अभी बिहार दौरे पर हूँ, यूँ तो बिहार विकास का चर्चा सब तरफ हो ही रहा है. फिर भी शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बहुत से कार्य करने की जरुरत शेष है. ज्यादा से ज्यादा से लोग हाथ बटायेंगे तो परिणाम अच्छे होंगे.

आप सब हमारे बीच बने रहें, सभी के लिए शुभकामनाओं के साथ आपका - सुलभ

Wednesday, June 30, 2010

एक अनोखा विवाह... कार्यक्रम तय 16 जुलाई 2010 को पटना में

मेरे मित्र मुकेश हिसारिया (माँ वैष्णो देवी सेवा समिति), जो पटना के
हैं, उन्होंने एक बीड़ा उठाया है, 51 जोड़ों सामूहिक विवाह का, वैसे जोड़े जो विवाह हेतु तैयार तो हैं पर स्थान और आर्थिक मजबूरी के कारण  कर नहीं पा रहे हैं.

सबसे पहले एक नज़र (हमारे समिति के कार्यकारिणी की ओर से)

समय की रेत पर वर्तमान जब इबारत लिख रहा होता है तो किसी की पता नहीं होता भविष्य के गर्भ में कैसा इतिहास अंगराइयां ले रहा है. लगभग आठ माह पूर्व मानव सेवा को ही सच्ची पूजा मानने वाले माँ वैष्णोदेवी के भक्त जब जमा हुए तो हमने भी नहीं सोचा था कि एक-एक कर जुड़ते जाएंगे और कारवाँ बनता जाएगा .

विगत २६ जनवरी को माँ वैष्णोदेवी सेवा समिति के तत्वाधान में आयोजित नि:शुल्क स्वास्थ्य जांच शिविर में आये मरीजों की रुग्णता और गरीबी ने हम सभी को इतना आंदोलित किया कि हमारे मन में उठने वाले मानव सेवा के भाव ने एक ध्येय का स्वरुप ले लिया.

अपने मूल उद्देश्य 'वैष्णोधाम' का सपना साकार होता नज़र आने लगा. हमारा सपना 'वैष्णोधाम' को एक ऐसा संस्थान बनाने की है, जो निर्धन और असहायों के कल्याण हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य सुविधाओं से लैस एक ऐसा परिसर होगा, जहाँ व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कोई स्थान नहीं होगा. अपने इस सपने को साकार करने की शुरुवात हमने गांधी मैदान में १६ मार्च को 'जागरण'  के आयोजन से की. 'वैष्णोधाम' की नींव रखने का शुभ कार्यक्रम का आयोजन नवरात्रा के पहले दिन तय है, लेकिन उससे पूर्व १६ जुलाई को समिति ने सामूहिक विवाह कार्यक्रम का भी आयोजन किया है.



 मुकेश जी ने ऐसे जोड़ो को एक जगह देने का प्रयास किया है.सभी रीती - रिवाजों के साथ ही ये अनोखे विवाह आगामी 16 जुलाई 2010 को
पटना के श्री कृष्ण मेमोरिअल हॉल में सम्पन्न होगा. इस आदर्श विवाह में
समाज के प्रबुद्ध और सम्मानित विभूतियों के आशीर्वाद के अलावा इन जोड़ों
को गृहस्थी आरम्भ करने की महत्वपूर्ण सामग्री भी उपहार स्वरुप प्रदान की
जाएगी.

यदि आपकी नजर में भी कोई ऐसा जोड़ा हो जिसकी आर्थिक मजबूरी उन्हें एक
नहीं होने दे रही हो, तो आप उनकी मदद कर सकते हैं. दो दिलों को मिलाने के
लिए यथा शीघ्र संभव उनके सम्पूर्ण विवरण के साथ जल्द ही मुझे sulabhjaiswal@gmail.com या मुकेश जी
को mhissariya@gmail.com पर मेल करें.
संपर्क सूत्र: 09835093446



Mukesh Hissariya (Social Activist)




धन्यवाद! (सुलभ जायसवाल)

Tuesday, June 15, 2010

बेचारा बहुरंगी

# ब्लोगरी की लत युवाओं और कुंवारों के लिए खतरनाक है. प्रस्तुत है एक हास्य व्यंग्य कथा (रिमिक्स)
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अरे बेटी सुनैना
ज़रा दो मिनट पास बैठना |

पापा आज आप बहुत खुश दिख रहे हैं
क्या कोई खुशखबरी है या मुझे देख हंस रहे हैं |

तुम तो जानती हो बेटी
तुम्हारे लिए वर की तलाश है
और आज बात बहुत ख़ास है
मैं मिलकर आया हूँ एक शख्स से
नाम है उसका बेचारा बहुरंगी
चेहरे से दिखता है विचारक
और बातों से कवि
कहने को तो मामूली सोफ्टवेयर प्रोग्रामर है
मगर वो एक ख्यातिप्राप्त ब्लोगर है
नए अनोखे रंग में पोस्ट बनाता है
तकनीक का ज्ञाता है
उभरता  कवि और संस्कारी गुणवान है
बहुत प्रतिभाशाली नौजवान है |

मैं उसकी और क्या तारीफ़ करूँ
सादा जीवन उच्च विचार है
की-बोर्ड का कलाकार है
मुझको तो लड़का बहुत पसंद है
तुम्हारे लिए वो सटीक रहेगा
बिटिया ज़माना इंटरनेट का है
सो यही ठीक रहेगा |







पिता की बात सुन
पुत्री की त्योरियां चढ़ गयी
वो सोफे से उखड़ गयी
डैड ! इट्स टू बैड
आपने मेरे लिए कैसा वर ढूंढा है
और कोई नहीं
एक हिंदी ब्लोगर ढूंढा है

पिताजी तब तो ससुराल में जीना मुहाल होगा
सोचिये मोनिटर स्पीकर के बीच रह
मेरा क्या हाल होगा
वे तो चिपके रहेंगे माउस और की-बोर्ड से
रात दिन प्यार जताएंगे अपने ब्लॉग से
मिनट मिनट पर ब्लॉग को खोलेंगे
मुझसे केवल चाय बनाने को बोलेंगे
रोज़ किसी मुद्दे पर खुद ही उलझ जायेंगे
मामला संवेदनशील है
मुझे समझायेंगे
वे बाते करेंगे हरदम शायराना
पिताजी बहुत मुश्किल होगा निभाना

वे तो शब्दों का जबरन व्यापार करेंगे
दोस्ती दुश्मनी सरेआम बाज़ार करेंगे
सुबह शाम इमेल गपशप प्रचार करेंगे
मासूम टिप्पणीयों पर अत्याचार करेंगे

पिताजी अपनी बिटिया पर तरस खाना
आप क्यूँ नहीं देखते आज का ज़माना
जनसँख्या प्रदुषण कितनी तेज गति से बढ़ रही
सड़के भी वाहनों से है खचाखच भरी
ट्रैफिक अनियंत्रित है औंधे मुंह खड़ी
न्याय व्यवस्था की ऐसी तैसी
भ्रष्टाचार में डूब गयी भारत की घड़ी

जिस देश में पांचवी फेल नेता मंत्री बनता है
वहीं एक ग्रेजुएट बेरोजगारी पर सिसकता है
पापा आप जिसे इंटरनेट क्रान्ति कहते है
वो तो सिर्फ पांच प्रतिशत आकड़ा है
जहाँ ज्ञानी कवि बुढापे तक उचित
पारिश्रमिक को तरसते हैं
वहीं फूहर लाफ्टर शो लाखों चट करते हैं
और आप यहाँ ब्लोगर की बात करते हैं



जब ब्लोगर इतने ही गंभीर हैं तो 
महंगाई के खिलाफ क्यों नहीं लड़ते हैं
जब घंटों ऑनलाइन रहते हैं
तब क्यों नहीं समस्याओं की सूची
अपने विधायक सांसद को मेल करते हैं

और पाठक भी माशा अल्लाह !
सिर्फ टिप्पणियों पर यकीन करते हैं
एक और बातें मुझे बहुत खलती है
पसंद नापसंद का शोर क्यूँ
जब पाठक रोज पहुँचती है

पापा मैं हूँ लड़की आधुनिक दिल की खुली
ऐसे ब्लोगर बलमा से तो मैं कुंवारी भली
मैं सब समझ चुकी हूँ
मुझे सब पता है
मैं भी कभी ब्लोगर रह चुकी हूँ |

- सुलभ


Friday, May 28, 2010

शुरू करो उपवास रे जोगी



जब तक चले श्वास रे जोगी
रहना नज़र के पास रे जोगी

बंधाकर सबको आस रे जोगी 

कौन चला  बनवास रे जोगी

हर सू फ़र्ज़ से सुरभित रहे

घर दफ्तर न्यास रे जोगी

सदियों तक ना प्यास जगे

यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे

खोना मत विश्वास रे जोगी

जो भी पहना दिखता सुन्दर

तहजीब का लिबास रे जोगी

वही  पुराने  भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी

प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी

-सुलभ

Friday, May 21, 2010

नौकरी (लघुकथा - सुलभ)

"अंकल आ गए... अंकल आ गए... " घर पहुँचते ही पांच वर्षीय भतीजा सोनू ख़ुशी से चहक उठा. सोनू के प्यारे अंकल रमन ने भी सोनू को गोद में उठाकर अपने कमरे में ले आए और पुचकारते हुए कहा "हाँ ! तुम्हारे अंकल आ गए और तुम्हारे लिए एक खिलौना लाये हैं... ये देखो सायकिल"  खिलौना पाकर सोनू बहुत खुश हुआ. लेकिन तुरंत बोल उठा "अंकल ये तो छोटा है मैं इसे कैसे चलाऊंगा."
"अरे सोनू अभी तुम भी तो छोटे हो, थोड़े और बड़े हो जाओगे तो मैं तुम्हे सचमुच की साइकिल ला दूंगा. फिर मेरा सोनू बेटा, साइकिल से स्कूल जाएगा. है न." रमन ने हँसते हुए उसके सर पे हाथ फेरे.  "अब तो मुझे नौकरी भी मिल गयी है कुछ ही दिनों में मैं दुसरे शहर चला जाऊँगा. फिर तुम मेरे इस कमरे में ही खेलना...पढना... और सोना.. ठीक है"  रमन ने मुस्कराते हुए कहा. अभी उठ कर फ्रेश होने के लिए उसने तौलिया उठाया ही था, की आवाज आई. "अंकल... पर पापा तो मम्मी से कह रहे थे की जब रमन नौकरी के लिए दुसरे शहर चला जाएगा तब हम इस कमरे को किराए पर लगा देंगे...कुछ पैसे आ जायेंगे हाथ में"   मासूम भतीजे के मुंह से यह बात सुन, रमन थोड़ी देर के लिए वहीं ठूँठ सा खड़ा रह गया. 



Saturday, May 1, 2010

दो चार दिनों के लिए मर नही सकते...!







र दिन जिंदा रहने मे
खर्च है बहुत
अफ़सोस कि
दो चार दिनों के लिए
मर नही सकते.


जीविका बन गयी है
यायावरी का पर्याय
हममे और बनज़ारों मे
फर्क नही राह
काबिलियत मापते हैं
बस एक ही पैमाने से
कोई किसी का हमदर्द नही रहा

उमंगें उड़ान की और
सपने मचल रहे हैं
शाम की शीतलता के लिए
भोर होते ही जल रहे हैं
हर दिन जिंदा रहने मे
शर्त है बहुत
अफ़सोस कि
दो चार दिनों के लिए
मर नही सकते.

आचरण हमारा भी
थोडा बदल गया
चेहरे पढ़ पढ़ कर
चेहरा ढल गया
बदल गयी परम्पराएं
रिश्तेदारियाँ निभाने की
अपनी शैली मे कुछ
हम कर नही सकते
हर दिन जिन्दा रहने मे
दर्द है बहुत
और अफ़सोस कि
दो चार दिनों के लिए
मर नही सकते !!

Saturday, April 24, 2010

तोहरा से नज़र मिलाईं कईसे (भोजपुरी ग़ज़ल)


देखाईं कईसे  जताईं कईसे
हमरो अकिल बा बताईं कईसे

नासमझ के समझाईं कईसे

आँख खुलल बा जगाईं कईसे

अकेले सफ़र में गाईं कईसे

उदास मन बा  खाईं कईसे

घाव करेजा के छुपाईं कईसे

पुरनका याद  भुलाईं कईसे

  तोहरा से नज़र मिलाईं कईसे

'सुलभ' झूट शान देखाईं कईसे 

(अकिल=अक्ल, करेजा=दिल)

Tuesday, April 20, 2010

हसबैंड वाईफ चैटिंग

बहुत दिनों से हास्य की रसोई में कुछ नया खिचड़ी नहीं पका. सो एक पुराना अनुभव दे रहा हूँ, जब Windows की समस्याओं से परेशान होकर एक हास्य  रचना इस प्रकार अवतरित हुई थी..... उन दिनों चैटिंग का मजा बेचलर्स ज्यादा उठाते थे.... लेकिन अब तो हसबैंड मशीनी हो गए...




पत्नी:  Hello
पति:  वेलकम टू  माय ऑफिस (XP)
पत्नी:  और बताओ कैसे हो
पति:  कृपया
पहले लॉगिन करें
पत्नी:  एक ज़रूरी बात सुनो. घर पर कुछ मेहमान आये हैं. शाम को जल्दी लौटना.
पति:  नो गेस्ट यूजर्स आर अलाउड टू एक्सेस.
पत्नी:  और सुनो, घर लौटना तो कुछ पैसे लेकर आना. मुझे कुछ खरीदारी करनी है.
पति: 
सॉरी! देअर इज नोट इनफ मेमरी (मनी) टू रन योर प्रोग्राम.
पत्नी:  मजाक बाद में करना. मैं इंतज़ार करुँगी, जल्दी आना और पैसे भूलना नही.
पति: 
योर रिक्वेस्ट हैज़ नोट बीन डेलीवर्ड. प्लीज चेक योर नेटवर्क कांफीग्रेशन.
पत्नी:  कहां हो तुम?
पति: 
द पेज केन्नोट बी डिसप्लेड.
पत्नी:  मैं पूछ रही हूं, कहां हो तुम?
पति: 
क्लिक "येस" टू कांटीन्यू ओर प्रेस "कैंसल" टू क्विट द प्रोग्राम .
पत्नी:  ओफ्फ़! क्या मुसीबत है.
पति:  सर्वर बिजी. प्लीज ट्राई आफ्टर सम टाइम.
पत्नी:  बंद करो अपनी बकवास !
पति:  प्रेस CTRL + ALT + DEL टू री-स्टार्ट द सिस्टम.
पत्नी:  तुम नही सुधरोगे.
पति:  रिपोर्ट दिस एरर टू माइका-वेबसाइट.
पत्नी:  मैं जा रही हूँ.
पति:  थैंक यु फॉर यूजिंग कूल ऑपरेटिंग सिस्टम. काइंडली यूज दिस फॉर्म टू सेंड योर फीडबैक.
पत्नी:  आइन्दा मुझसे बात करने की कोशिश मत करना.
पति:  नॉव यु केन शटडाउन.
पत्नी:  हुंह !!!!!
पति:  डोंट फोरगेट तो टर्न ऑफ यूपीएस.
 

 - सुलभ

Tuesday, April 13, 2010

एक ब्लोगर जिनके अंदाज निराले हैं.



पने ब्लॉगजगत में यूँ तो भाँती भाँती के आकर्षक अनोखे ब्लॉग हैं और विशिष्ट अंदाज वाले ब्लॉग स्वामी अपने अपने ब्लॉग पर शब्द क्रीडा करते देखे जाते हैं. साहित्य के विभिन्न रस में हाल के दिनों में व्यंग्य-ग़ज़ल रस खूब लोकप्रिय हुआ है. आइये आज मैं आपको मिलवाता हूँ, रतलाम के एक वरिष्ठ ब्लोगर श्री मंसूर अली हाशमी से. हाशमी जैसे शख्सियत का परिचय १-२ पन्ने में देना मुश्किल है. एक लाइन में कहा जाए तो यही कहेंगे - मंसूर अली जी,  हिंदी, उर्द्दु, अंग्रेजी शब्दों के माहिर खिलाड़ी हैं. ये राह चलते, बातें करते शब्दों से ऐसे खेलते हैं जैसे ट्वेंटी-20  में रन बरसते हैं.

श्री हाशमी अपने हिन्दुस्तान में अदब संस्कृति के बहुत हिमायती हैं. जब भी जहाँ भी भाईचारे, एकता, अमन को खंडित होते देखते हैं, इनको बहुत ठेस लगता है. गिरते राजनैतिक चरित्र पर हलके फुल्के शब्दों में इनका गंभीर चिंतन साफ़ झलकता है. भारत में अपने गौरवशाली परम्पराओं की हिफाज़त करने वाले एक खुशमिजाज़ सच्चे व्यक्ति हैं.

कई वर्ष खाड़ी देश कुवैत में बिताने के बाद अपने वतन भारत लौट आये. जापान एवं अन्य मुल्क की यात्रा कर चुके मंसूर अली का मानना है, हिन्दुस्तान जैसी आबो हवा कहीं नहीं है. वर्तमान में रतलाम (म.प्र.) में मेडिसिन रिटेल बिजनेस में सक्रिय हैं. लगातार विदेशी हमले से आहात होकर ये कुछ यूँ ग़ज़ल कहते हैं -

उनका आंतक फ़ैलाने का दावा सच्चा था,
शायद मैरे घर का दरवाज़ा ही कच्चा था।

पूत ने पांव पसारे तो वह दानव बन बैठा,
वही पड़ोसी जिसको समझा अपना बच्चा था।

नाग लपैटे आये थे वो अपने जिस्मो पर,
हाथो में हमने देखा फूलो का गुच्छा था।

तौड़ दो सर उसका, इसके पहले कि वह डस ले,
इसके पहले भी हमने खाया ही गच्चा था।

जात-धर्म का रोग यहाँ फ़ैला हैज़ा बनकर,
मानवता का वास था जबतक कितना अच्छा था।

सबसे मजेदार बात, इनकी खासियत मैं बता दूं - अंग्रेजी काफिया को लेकर कमाल के ग़ज़ल कहते हैं.

फिर बुद्धिजीवियों से इक mistake हो गई,
अबकी, शिकार चूहे से एक CAT हो गई! 

थी NET पर सवार मगर लेट हो गयी,
होना था T-twenty, मगर test हो गई.

zero फिगर पे रीझ के लाये थे पिछले साल,
इक साल भी न गुज़रा, वो अपडेट*  हो गयी.

e-mail  से जुड़े थे, हुए जब वो रु-ब-रु,
देखा बड़े मियां को तो miss जेट* हो गयी.

बिन मोहर के ही वोट से होता चुनाव अब,
pee  बोलती मशीन ही ballet हो गयी.

महबूबा,पत्नी , बाद में बच्चों कि माँ बनी,
कुछ साल और गुज़रे तो सर्वेंट हो गयी.

'सत्रह बरस'* ही निकली जो लिबराह्नी रपट,
पक्ष-ओ-विपक्ष दोनों में रीजेक्ट हो गयी.

लौट आये उलटे पाँव, मियाँ तीस मारखां,
रस्ते से जब पसार* कोई cat हो गयी.

अमरीका ने नकारा तो रशिया पे ख़ैर की,
स्वाईंन फ्लू से उनकी वहां भेंट हो गयी.

टिप्याएं रोज़-रोज़ तो ये फायदा हुआ,
गूगल पे आज उनसे मेरी chat  हो गयी.



इनकी रचनाओं / ब्लॉग  का लुत्फ़ उठाने के लिए आप यहाँ www.aatm-manthan.com भ्रमण करें. ब्लॉग पता है: http://mansooralihashmi.blogspot.com/ जहाँ वे नियमित आत्म मंथन करते हैं. कम शब्दों में to-the-point कहने वाले मंसूर अली सुलझे हुए, फिट एंड फाइन, बुद्धिजीवी, स्नेही ब्लोगर हैं.  



खबरों के  कुछ  चेनल बीमार नज़र आते है,
इनमे से कुछ  लोकल  अखबार  नज़र  आते  है.


बिग बोसों के  छोटे कारोबार  नज़र आते हैं,
छुट-भय्यो को,हर दिन  त्यौहार नज़र आते है.

नोस्त्रोद्र्म के चेले  तो बेज़ार नज़र आते है,
प्रलय ही के  कुछ चेनल प्रचार नज़र आते है.

कुछ चेनल तो जैसे कि सरकार नज़र आते है,
मिनिस्टरों से भरे हुए दरबार नज़र आते है.

घर का चेन भी लुटते देखा है इसकी खातिर,
आतंक ही का ये भी एक प्रसार नज़र आते है.


चीयर्स बालाओं से शोहरत* का घटना-बढ़ना,
खेल-कूद में कैसे दावेदार नज़र आते है!


नूरा कुश्ती, फिक्सिंग के मतवालों की जय-जय,
झूठ को सच दिखलाने को तैयार नज़र आते है.

देखिये  कविताओं में किस तरह स्वास्थ्य सलाह दे रहे हैं -

जहाँ तक काम चलता हो ग़िज़ा से,
वहाँ तक चाहिये बचना दवा से।

अगर तुझको लगे जाड़े में सर्दी,
तो इस्तेअमाल कर अण्डे की ज़र्दी।

जो हो मह्सूस मे'दे में गिरानी,
तो पीले सौंफ़ या अदरक का पानी।

अगर ख़ूँ कम बने बल्ग़म ज़्यादा,
तो खा गाजर,चने,शल्जम ज़्यादा।

जो बदहज़मी में तू चाहे इफ़ाक़ा*,
तो कर ले एक या दो वक्त फ़ाक़ा।*

जो हो 'पैचिस' तो पेट इस तरह कस ले,
मिला कर दूध में लीमूं का रस ले।

जिगर के बल पे है इन्सान जीता,
अगर ज़ोअफ़े* जिगर है खा पपीता।

जिगर में हो अगर गर्मी दही खा,
अगर आंतो में हो ख़ुश्की तो घी खा।
थकन से हो अगर अज़लात* ढीले,
तो फ़ौरन दूध गर्मागर्म पीले।

जो ताकत में कमी होती हो महसूस,
तो फिर मुलतानी-मिस्री की डली चूस्।
 
ज़्यादा गर दिमाग़ी हो तैरा काम,
तो खाया कर मिला कर शहद-ओ-बादाम्।
 
शब्दों के अनोखे खिलाड़ी  - मंसूर अली हाशमी


Thursday, April 1, 2010

खिलौने अकेले में रोते हैं






गुजरा वक़्त कब लौटा है
आंसू बह जाने के बाद


दीवानों के घर नहीं बसते
साकी औ' मयखाने के बाद

खिलौने अकेले में रोते हैं
बच्चों को हंसाने के बाद

पास कोई नज़र नहीं आता
आँखें बूढी हो जाने के बाद

यादों की उमर बढ़ती है
बचपन याद आने के बाद

"सुलभ" किसको क्या मिला
दिल किसी का दुखाने के बाद

(सतरंगी फिलोसफी से कुछ पंक्तियाँ )

Thursday, March 11, 2010

दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे


दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे

राजा कबतक महल में टिकेगा  
(दिखावा कबतक चेहरे पे टिकेगा)
वक़्त के दीमक सब चाट लेंगे 
 - सुलभ

Wednesday, March 10, 2010

डोमेन/वेबसाईट से जुड़े कुछ सवाल जवाब:


हिन्दी ब्लोगर्स के लिए सूचना...




हालंकि मैंने स्पेशल डिस्काउंट सिर्फ हिंदी ब्लोगर्स के लिए रखा है…जो ब्लोगर नहीं है मगर उनके परिचित हैं वे भी इस छुट का लाभ ले सकते हैं... वेब स्पेस न्यूनतम
750/- रु. सालाना देय होगा(with MySql database)… साथ ही 1000 MB इमेल सेवा के साथ…(उदाहरण vats@panditastro.com)
कुछ काम के सोफ्टवेयर का हिंदी वर्जन भी उपलब्ध कराया जायेगा...

डोमेन/वेबसाईट से जुड़े कुछ सवाल जवाब:

@ प. वत्स जी:

आप कोई भी पॅकेज लेते हैं तो उसके साथ आपको संचालन के लिए समस्त जानकारी और आपका नियंत्रण कक्ष युजर नाम/पासवर्ड के साथ भेजा जाएगा. स्वयं संचालन के लिए इमेल/फ़ोन पर ट्रेनिंग दिया जायेगा.

@डोमेन का फायदा?
यहाँ मैंने डोमेन को जरुरी फायदे के लिए नहीं बताया. मकसद ये था की कोई साथी सस्ते में वेबसाईट बनवाना चाह रहे हों, और जानकारी का अभाव है, तो इसके लिए मैं सहयोग कर सकता हूँ.



  • फायदा ये है, की यदि आप अपने ब्लॉग को डाइरेक्ट वेबसाईट का शक्ल देना चाहते हैं तो इसके लिए आपका अपना डोमेन जरुरी है. आपके कंटेंट की सुरक्षा और कोपीराईट के लिए भी अधिकृत डोमेन कारगर होता है.
  • सर्च इंजिनों में आपके नाम से या आपके विषय से खोज करने पर आपको प्राथमिकता मिलती है.
  • आगे चलकर किसी भी विज्ञापन एजेंसी से ऑनलाइन विज्ञापन/मार्केटिंग एक्सचेंज कर सकते हैं.
  • डोमेन लेना और अपना वेबसाईट बनाना उनके लिए श्रेयस्कर होगा जो अपने ब्लोगिंग को नियमित विस्तार देना चाहते हैं. ये उनके लिए नहीं जो सिर्फ शौकिया और टाईम-पास ब्लोगरी करते हैं. चूँकि इसमें सालाना खर्चा (सर्वर होस्ट किराया) लगता है अतः: ये आपको अपने ब्लोगिंग (नियमित सामग्री लेखन) के प्रति आपको जिम्मेदार बनाता है. वैसे भी मुफ्त के माल को सभी लोग सही तरीके से इस्तेमाल नहीं करते. जो मिला बहुत मिला में खुश रहते है. इसके दूरगामी प्रभाव को नजरअंदाज करते हैं. यदि आप में जूनून है आप समाज,ज्ञान और अपने पेशा/बिजनेस को जोड़कर आगे तरक्की करना चाहते हैं तो अपना वेबसाईट बनाकर करें... क्यूंकि अब ज़माना इ-लर्निंग, इ-रीडिंग, इ-राईटिंग का है.

अभी मुझे डिस्काउंट मिल रहा है, और मैं वेब डिजाइन/डेवलपमेंट/अनुप्रयोग में स्वयं को दक्ष समझता हूँ इसलिए मैंने समस्त ब्लोगर से साझा करना जरुरी समझा.

आपका सहयात्री
सुलभ

Friday, March 5, 2010

(क्यों सिर्फ) बहादुर जवानों पर आस है


बाढ़ का पानी तो हर साल एक महीने के लिए आता है, और कुछ ले दे कर चला जाता है... मगर उत्तर बिहार के वासियों के आंसूं कब थमेंगे पता नहीं...  ऊपर से महंगाई भी घटने का नाम नहीं ले रही... मेरे कुछ वरिष्ठ साथी भी किन्ही कारणों से नाराज चल रहे हैं...  जाहिर सी बात है ऐसे में हमसे कोई कविता, ग़ज़ल नहीं लिखा जायेगा... पर उनका दर्द तो बताना ही होगा, जिनके पास उनके अपने गाँव में सब कुछ होता है लेकिन सिर्फ गंवाने के लिए. खेत फसल, लघु उद्योग, परिवार से दूर होकर शहर में ठोकरें खाने के लिए आ जाते हैं... 


ठोकरें खाती सांस है 
जिंदगी बदहवास है 

मंजिल को ढूंढ़ रहा  
सफ़र थका उदास है

बाढ़ ने बेघर किया
अब परदेस में वास है 

महंगाई सरपर खेल रही
किसको भूख प्यास है 

जूतों तले रौंदा गया
कमजोर लाचार घास है

आंसू भी कैसे निकले
बच्चे आस पास है

मेले में घूमते नारे-वादे 
गुम हुआ विकास है 
अगली पंक्तियाँ हमारे वर्तमान सरकार के लिए, जिनके सामने राष्ट्राभिमान की कोई कीमत नहीं है... 
दुश्मन संधि कर लेंगे ?
अबकी कूटनीति खास है

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है
***
- सुलभ 


Friday, February 26, 2010

होली में ठिठोली > एक से बढ़कर एक बुढऊ > रंग बरसे



आदरणीय महाबीर शर्मा, प्राण शर्मा, मंसूर अली हाशमी, डा. श्याम सखा, तिलक राज कपूर, नीरज गोस्वामी, आचार्य संजीव 'सलिल', सर्वत जमाल, राज भाटिया,राजेश चेतन, राज सिंह, समीर लाल, राकेश खंडेलवाल और स्नेही गुरु पंकज सुबीर जी के चरणों में यह पोस्ट समर्पित करता हूँ...


पिछले साल ब्लोगरों के साथ होली खेला तो था पर थोड़ी व्यस्तता और परेशानियों के बीच. इस बार पूरा फुल्टू टाइम है. आजकल हरियाणे में हूँ, उधर तरही में भी डूब उतर रहा हूँ. होली शुरू करता हूँ इस कविता से, 



मन मोरा झकझोरे छेड़े है कोई राग
रंग अल्हड़ लेकर आयो रे फिर से फाग
आयो रे फिर से फाग हवा महके महके
जियरा नहीं बस में बोले बहके बहके
चहुँ ओर सुनो ढोलक तबले का शोर
शहनाई और मझीरे में खूब ठनी होड़
खूब ठनी होड़ भंग के साथ ठंडाई
बौराया देवर खाये आज सुपारी पे मिठाई
प्रेम की पिचकारी चलेगी आज कोई गैर नहीं
घुसो पड़ोसी के रसोई में अब कोई बैर नहीं


सबसे पहले तो यह बता दूँ , हम जैसे नौजवानों को ब्लॉगजगत(और काव्य-साहित्य ग़ज़ल मंच पर) में जिन बुजुर्गों का निरंतर आशीर्वाद मिल रहा है. हम ह्रदय से आभारी है. इस बार की होली गुरुजनों और ग़ज़ल बुढऊ को समर्पित है...



सतरंगी महफ़िल में होलियाने आ रहे हैं एक से बढ़कर एक बुढऊ, मेरे गुजारिश पर सब ने एक लोटा भांग पी है, दो-चार कद्दू बड़ा और एक मगही पान की गिलोरी चबाये हैं... और कुछ इस तरह फरमाए हैं...

 राज भाटिया

लाल हरा पिंक गोल्डेन कलर
आ मल दूँ तुझे जर्मन सिल्वर
होली है एssss

(विशेष नोट: मुझे शिकायत है, होली के उन हुरदंगो से जो रंग फेकते समय यह ख्याल नहीं रखते की सामने कोई बुजुर्ग, वृद्ध, अपाहिज या बीमार भी हो सकता है.)


नीरज गोस्वामी 

सुनो मेरी छैलछबिली मैं हूँ तेरा  दीवाना 
ग़ज़ल लिखे तेरे याद में अब कैसे समझाना
चल बाहर आ रंग डालूं तुझको जी भर के
खूब कमर हिलाएंगे जब तू गावेगी गाना




होली की सबको गोबड़ सहित बधाई
खाकर गुझिया पान भौजी भी बौड़ाई
गाओ मिलकर फाग 'सुबीरा' बजे ढोल तबले
नाचेंगे हम भी ठुमक के थोड़ी भंग तो चढ़ ले 


हे मनमोहिनी मंदाकिनी
तू मुझको रंग लगाती जा
तेरे हम आशिक पुराने
मुझसे ताल मिलाती जा
मैं जबतक गीत लिखूं गोरी
तू तब तक भांग पिलाती जा 


महाबीर शर्मा

अपनी ग़ज़लों में रवानी अभी बहोत है
बूढी हड्डियों में जवानी अभी बहोत है
देखना है तो जाओ लन्दन में देखो
'महाबीर' की वहाँ दीवानी अभी बहोत है
जोगी जी बोलो सररर सर्र ssss 



श्याम सखा 'श्याम'

रोहतक नगरी गुंजत है 
बुढ़उ के कमर डोलत है
ग़ज़ल के बहाने खेलत है
दृश्य मनोहारी होवत है
जब राधे संग हो 'श्याम'
 

तिलक राज कपूर "राही"

शायरी अदब की बोले हंसके 
भागो अपनी इज्ज़त लेके
आज ग़ज़ल को हज़ल बनाया
'राही' तुम होरी में बहके


 राजेश चेतन

हैप्पी न्यू इयर - सिखा गए अँगरेज़ 
वेलेंटाइन डे - छा गए अँगरेज़
ले दे के एक होली बची है
जी भर के मनाओ आज
गाओ सखाओं मिलकर फाग 
बोलो जी सररर सर्र ssss 

आग लगे पछमी संस्कृति में
हम रंग खेलेंगे हिन्दी में
बोलो जी सररर सर्र

 दिनेशराय द्विवेदी (वकील साब) 
ससुर ज़ज है, दरोगा मेरा साला
आ खोल दूँ तेरे किस्मत का ताला
होली में गिरा दो सारे कानूनी विकेट
पीछे खड़ा है तेरा सीनियर एडवोकेट

जोगी जी सररर्रा सर्रSSS रSSS


लाल लाल पियर पियर रंग के बहार बा 
दिल्ली डोलत बम्बई हिलत झुमत बिहार बा 
ढोल तबला हारमोनियम गीत गुंजत फाग के 
सम्हत होली जलाये 'सलिल' रात भर जाग के  




हम हैं असली मुम्बैया
नाचेंगे ता ता थैया
हाथी घोड़ा पालकी
जय हो विक्रम साल की
(होरी चा हार्दिक शुभेच्छा)



होली में न हमें सताओ
जल्दी से ताड़ी पिलाओ
जब तक हम न बहकेंगे
शे'र कहाँ से निकलेंगे 

अचानक मंच पे आ गयी हैं, बिना बुलाये हमारे चिप(sorry चीफ)  गेस्ट
मल्लिका ए हिंद(उर्दू अदब)

जब तक रही मै तसकीने-हयात  
कह न सके तुम अपने जज़्बात
रंग मोहब्बत के आज लगाओ    
अबके होली में बन जाये बात  
तमाम हाजरीन को होली की मुबारकबाद  


 मनोज

अपनी डफली अपना राग
पीके भांग झूमो आज 
हे 'मनुज' होली गाओ
समस्तीपुरी रंग बरसाओ 




समीर लाल (उड़न तश्तरी)

उड़े रंग लाल हरी
अबके होली में
उड़े 'उड़न तश्तरी'
अबके होली में
टिप टिप रंग चुए
अपने ब्लॉगनगरी से
हिन्दी से 
अंग्रेजी डरी
अबके होली में



टी. एस. दराल

बचनाsss ऐ हसीनो
लो मै आ गया sss
रंग का खिलाड़ी 
भंग का पुजारी
आज मचाउंगा भुचाआssssल
नाम है मेरा डाक्टर दराssssल



माशा अल्लाह! क्या सीन !!
जिसको देखो वही रंगीन
बूढ़े में झलके जवानी 
मुबारक हो सबको होली
ये परंपरा बहुत पुरानी

* * *
बुरा न मानो होली है 

 धन्यवाद ज्ञापन: 
इस कार्यक्रम में संगीत दिया - गुंडों के सरदार गौतम राजरिशी (कश्मीर से)
मंच संचालन किया - सुटठामार सुलभ अढाई कोट वाला (अररिया कोर्ट से)
मंच संयोजन  - दारुबाज दिगंबर नास्वा (दुबई से), रतजगा मवाली रविकांत (सीहोर से), पागल प्रकाश अर्श (दिल्ली से)

खिलान पिलान एवं रसोई प्रभार :
सरफुटोंवल संगीता पूरी
(मंगलग्रह से), रंगभंजना रंजना सिंह (टाटानगर से), छुर्मी अगरबत्ती बबली (हंसट्रेलिया से)
जन संपर्क और मीडिया प्रभारी : निर्मला खपरिला (नांगल से)
साउंड रिकार्डिंग एवं पोडकास्टिंग : अल्हड अल्पना वर्मा (अलईन से)
वीडियोग्राफी:  बतबन्ना कंचन चौहान (लखनऊ से) एवं  विषकन्या नीरा त्यागी (लन्दन से)
रंग और भांग का इंतजाम :रसभरी रश्मि प्रभा (पटना से), रचना विक्षिप्त  एवं खरंजू भाटिया (दिल्ली से), थरकीरत हीर (गौहाटी से)
रेडियो सूचना प्रभार : सरखुजानी श्रद्धा जैन (सिंगापुरी टावर से)  
दूरदर्शन प्रसारण : आशा जोरदेकर (अमरीका के सौजन्य से)

वाह होली वाह

Saturday, February 20, 2010

कॉपी पेस्ट करना सरल काम है


आज  के लिए अपनी कोई मौलिक रचना नहीं सो एक पुरानी कथा सुनाता हूँ...

क लोकप्रिय प्रेरक वक्ता अपने श्रोताओं का मनोरंजन कर रहा था,  उसने कहा: "मेरे जीवन का सबसे अच्छा साल वो था जो  मैंने एक औरत की बाहों में खर्च किया जो मेरी पत्नी नहीं थी!"

सभी श्रोता मौन रहे और एक दुसरे को सदमे भरे निगाह से देखने लगे. वक्ता ने आगे जोड़ा "और वह औरत मेरी माँ थी!" 


 जोरदार तालियां की गरगराहट और हंसी से हाल गूंज गया.
एक सप्ताह बाद, एक प्रबंधक जो अपने कार्यालय में उसी वक्ता को सुन चुका था, अपने घर पर
प्रभावी मजाक करने की कोशिश की.  नया नया प्रशिक्षित वह मैनेजर अतिउत्साहित होकर जोर से बोलने लगा... 
"मेरे जीवन का सबसे बड़ा साल वो जिसे
मैंने एक औरत की बाहों में खर्च किया जो मेरी पत्नी नहीं थी! "
तक़रीबन 3० सेकेण्ड खामोश रहने के बाद वो मैनेजर झुंझलाते हुए बोला "....और मुझे याद नहीं की वह कौन थी!"
पत्नी और घर के अन्य सदस्य भयानक गुस्से में आ गए.  



 

 कहानी का नैतिक सार: DON'T COPY IF YOU CAN'T PASTE !!



चलते चलते एक शे'र अर्ज है...

'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए 


Saturday, February 13, 2010

विल यु बी माय वेलेंटाइन

पश्चिम से आयातित यह पर्व शुरुआत में वहां उम्र दराज  लोग मनाते थे. बाजारवाद ने सब कुछ पलट कर रख दिया है. भारत में कदम रखने के साथ ही सैंट वेलेंटाइन डे, १४ फरवरी प्रेम दिवस बनकर छा गया. 

वेलेंटाइन एक  रोमन परिवार का नाम Valentinus, जो लैटिन शब्द(पुल्लिंग शब्द) valens, जिसका अर्थ है 'मजबूत और स्वस्थ' नाम से व्युत्पन्न है. " वेलेंटाइन रोमन कैथोलिक चर्च के कई संतों के नाम थे. सेंट वेलेंटाइन दिवस तीसरी सदी में एक शहीद के लिए नामित किया गया था. फ्रांस में यह लड़कियों के लिए भी प्रयोग में है. नाम का सामान्य स्त्री रूप Valentina है. जैसे "Will you be my Valentine" (क्या तुम मेरी महबूबा बनोगी?)  






पहली बार वर्ष 1999 में पटना प्रवास के दौरान मैंने VALENTINE DAY सुना था और उस समय वातावरण में इसके प्रभाव से परिचित कुछ लोगों को देखा था.
ख़ैर दो तस्वीरे हैं मेरा मतलब कवितायें हैं....

कभी लिखा था एक अंग्रेजी कविता जिसका हिन्दी अनुवाद भी जैसे तैसे साथ में दे रहा हूँ. देखिये कैसी रही.

Heartbeat high this moment.
And tongue keeps silent
Puzzles couldn't solved
Problems more involved
You feel when alone
 Voices heard unknown
   A soul comes your near
   Love starts with fear
   Environment looks nice
   New dreams float in eyes
   Thrill begins with new taste
   Its realize you to think best
   Nothing under your control
   Emotions failed to withdrawal
       Days and nights spent in past
       And today it is blast
       Yes, I am in Love...

अनुवाद: 

दिल की धड़कन उच्च इस क्षण
और जुबाँ रहता है बंद
पहेलियां बुझा नहीं सका
समस्याओं से परिचय हुआ
जब आप अकेले होते हैं
   
अज्ञात आवाजें सुनते हैं
  
कोई ख़ास आपके पास आता है
   
प्यार भय के साथ शुरू होता है
  
नज़ारे अच्छे लगने लगते है
   
नए सपने आंखों में तैरने लगते हैं
   
रोमांच नए स्वाद के साथ आता है
   
इसका एहसास बहुत ही भाता है
  
कुछ भी आपके नियंत्रण में नहीं होता
   
भावनाए पिछे हटने से इन्कार करती है
ढेरो दिन और रात चिंतन में बीते
और आज यह विस्फोट होता है
       
हाँ, मैं प्यार में हूँ ...
***


ख़ैर आज जो मैं बताना चाह रहा था, आधुनिकता से लबरेज बाजारवाद की, जहाँ बच्चे किशोर युवा सभी गिरफ्त में हैं... आफ्टर इफेक्ट्स आफ वेलेंटाइन  

EFFECTS OF IMPORTED VALENTINE DAY.


कच्ची उम्र के जोड़े घुमते लेकर हाथ अपने हाथ में  
चाँद सितारों कि सैर करते अक्सर ख्वाबो में रात में  

स्कूल-कालिजों में लगते दीवानी-दीवानों के मेले  
सुबह-शाम इश्क मोहब्बत खाली पीली बात में  

मैसेज मिसकॉल को कोडवर्ड बना गुफ्तगू करते हैं  
क्लासेज सारी पूरी करते मोबाइल लेकर हाथ में  

कॉफ़ी हाउस गिफ्ट हाउस सब इनसे गुलज़ार है  
मीटिंग तय पार्क में कभी लाइब्रेरी अहात में  

इल्मो तालिम कि हसरत ले नौजवाँ शहर को आये  
आशिक बन कर घूम रहे हैं गली गली दिन रात में 

***
 

- सुलभ


लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "