सन 62 का चीन लिखूं या आज 62वां हिन्दुस्तान लिखूं.
सन सैतालिस से धोखा खाते कितना पाकिस्तान लिखूं.
हिंदी-चीनी भाई-भाई, कह कर पीठ में छुरा घोपा
अरुणाचल पर अतिक्रमण या कश्मीर में कब्रिस्तान लिखूं.
- सुलभ
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Saturday, August 15, 2009
स्वाधीनता दिवस और हमारी विदेश नीति
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
9:59 AM
3
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Wednesday, June 24, 2009
हम, आप और वक़्त.
कमबख्त रोटी के जुगाड़ में आज हमारे पास दुआ मांगने लायक भी वक़्त नहीं है
और आपके पास वक़्त इतना की हर रोटी को शिकायतों की चासनी में डुबो कर चबाते है।
और आपके पास वक़्त इतना की हर रोटी को शिकायतों की चासनी में डुबो कर चबाते है।
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ख्वाबे गफलत से आज हमको कर दो रुखसत
कुछ इस तरह जाम पे जाम बनाए जा साकी.
हर पैमाने को हंस कर उठाएंगे तबतक, जबतक
रहेगा आँखों में एक भी कतरा दर्द का बाकी.
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
11:33 PM
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Monday, June 1, 2009
दो जून की रोटी का मतलब .
जब कोई अनपढ़ मजदूर दिनभर की दिहारी मिलने के बाद. कपड़ोवाली गलियों से गुजरते हुए राशन के बकाये में सिर्फ आधा चूका पाता है....
जब कोई प्रतिभाशाली नौजवान, एक स्वप्नद्रष्टा किसी अप्ल्शिक्षित के यहाँ चुपचाप नौकरी करता है....
जब कोई कमजोर, अपनों की रय्यत में, अपने ही लोगों की गालियाँ सुन खामोश सहता है...
तब मुझे दो जून की रोटी का मतलब समझ में आता है ।
जब कोई प्रतिभाशाली नौजवान, एक स्वप्नद्रष्टा किसी अप्ल्शिक्षित के यहाँ चुपचाप नौकरी करता है....
जब कोई कमजोर, अपनों की रय्यत में, अपने ही लोगों की गालियाँ सुन खामोश सहता है...
तब मुझे दो जून की रोटी का मतलब समझ में आता है ।
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
4:36 PM
6
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Monday, January 26, 2009
शम्मां मुहब्बत का जलायें

(1)
आवाज़ उठाये हम वतन के वास्ते
खून बहायें अपना वतन के वास्ते
कमी न हो कभी तिरंगे की शान में
दुश्मनों को सबक सिखायें वतन के वास्ते
(2)
वतन के वास्ते जीयें जायें हम
कार्य दुष्कर सारे किये जायें हम
बाधाओं से ना कभी घबरायें हम
साहसिक तेवरों के साथ बढ़ते जायें हम
(3)
तरक्की की राह में हम चलते जायें
शर्त ये के पहले नफरतों को मिटायें
अमन, चैन, खुशहाली सब मुमकिन है
तीरगी मिटायें, शम्मां मुहब्बत का जलायें
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
9:27 PM
3
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Tuesday, January 20, 2009
परिवर्तन
समय का पहिया पल पल आगे बढ़ता जाय
यू ही देखते देखते जनवरी दिसम्बर बन जाय
जनवरी दिसम्बर बन जाय काम अच्छे करो सारे
कर्मफल मिलेगा यहीं बात समझो प्यारे
कह सुलभ कविराय 'परिवर्तन' है एक अटल नियम
कभी 'ओबामा' चमके तो कभी गिरा 'सत्यम'
यू ही देखते देखते जनवरी दिसम्बर बन जाय
जनवरी दिसम्बर बन जाय काम अच्छे करो सारे
कर्मफल मिलेगा यहीं बात समझो प्यारे
कह सुलभ कविराय 'परिवर्तन' है एक अटल नियम
कभी 'ओबामा' चमके तो कभी गिरा 'सत्यम'
Wednesday, December 31, 2008
साल 2008
1.
दिल्ली भी थर्राया, जयपुर बंगलोर भी थर्राई
इस साल खुनी खेल में मुंबई भी नहाई
क्या याद करे क्या बात करे साल 2008 की
जश्न अधुरा नए साल का हर दिल में है खौफ समाई.
2.
इस बीच इंडियन क्रिकेट का ऐसा कायापलट हुआ
ICL और IPL का मुकाबला भी गज़ब हुआ
क्रिकेट के आगे फुटबॉल हॉकी पानी भरते रहे
धोनी नम्बर 1 सीढियाँ ऊपर चढ़ते रहे.
3.
विश्व-अर्थव्यवस्था की बिगड़ी ऐसी चाल
मार्केट गिरा मुंह के बल आया ऐसा भूचाल
आया ऐसा भूचाल अमेरिका भी हारा
रिजर्व बैंक हो या वर्ल्ड बैंक सब बेचारा
कहत सुलभ कविराय कोई उपाय न सूझे
रोजगार के हजारो दीये पलभर में बूझे
दिल्ली भी थर्राया, जयपुर बंगलोर भी थर्राई
इस साल खुनी खेल में मुंबई भी नहाई
क्या याद करे क्या बात करे साल 2008 की
जश्न अधुरा नए साल का हर दिल में है खौफ समाई.
2.
इस बीच इंडियन क्रिकेट का ऐसा कायापलट हुआ
ICL और IPL का मुकाबला भी गज़ब हुआ
क्रिकेट के आगे फुटबॉल हॉकी पानी भरते रहे
धोनी नम्बर 1 सीढियाँ ऊपर चढ़ते रहे.
3.
विश्व-अर्थव्यवस्था की बिगड़ी ऐसी चाल
मार्केट गिरा मुंह के बल आया ऐसा भूचाल
आया ऐसा भूचाल अमेरिका भी हारा
रिजर्व बैंक हो या वर्ल्ड बैंक सब बेचारा
कहत सुलभ कविराय कोई उपाय न सूझे
रोजगार के हजारो दीये पलभर में बूझे
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
4:34 PM
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Tuesday, December 23, 2008
सुप्रभात (Good Morning)

सूर्य की पहली किरण से आज मैंने साक्षात्कार किया
बिखड़े आत्मविश्वास को समेट पुनः विचार किया
हे परमात्मा, मेरे दृढ़ इच्छाशक्ति को बनाए रखना
रहूँ सदा कर्तव्यपरायण ऐसा सदविचार किया .
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
9:09 AM
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Thursday, December 11, 2008
मुख्यमंत्री चुनाव December 2008
आये दिन सियासत में अफ़साने बहुत हैं
खेल दावपेंच के आजमाने बहुत हैं.
कुर्सी की दौर में सभी पागल से हुए हैं
इक़ नाजनीन और दीवाने बहुत है .
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
11:14 PM
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Monday, December 8, 2008
देश बेहाल है
हर विभाग आज सुस्त और बेहाल है
काम कुछ नही सिर्फ़ हड़ताल है ।
भ्रष्ट्राचार का तिलक सबके भाल है
भेड़िये ओढे भेड़ की खाल है।
उपरवाले तो तर मालामाल है
हमारे खाते में आश्वासनों का जाल है।
घोटालो से त्रस्त देश कंगाल है
नेता बजा रहें सिर्फ़ गाल है।
लोकतंत्र की बिगड़ी ऐसी चाल है
ईमानदार मेहनती जनता फटेहाल है।
चोर पुलिस नेता की तिकरी कमाल है
राजनीति जैसे लुटेरों का मायाजाल है।
Wednesday, December 3, 2008
आतंक का दर्द - एक सच्चाई
ये कैसी लड़ाई है कैसा ये आतंकवाद
मासूमो का खून बहाकर बोलते हैं जेहाद
बोलते हैं जेहाद अल्लाह के घर जाओगे
लेकिन उससे पहले तुम जानवर बन जाओगे
बम फटे मस्जिद में तो कभी देवालय में
महफूज़ छुपे बैठे हैं जो आतंक के मुख्यालय में
आतंक के मुख्यालय में साजिश वो रचते हैं
नादान नौजवान बलि का बकरा बनते हैं
रो रहा आमिर कासव क्या मिला मौत के बदले
अपने बुढडे आकाओं से हम क्यों मरे पहले ॥
मासूमो का खून बहाकर बोलते हैं जेहाद
बोलते हैं जेहाद अल्लाह के घर जाओगे
लेकिन उससे पहले तुम जानवर बन जाओगे
बम फटे मस्जिद में तो कभी देवालय में
महफूज़ छुपे बैठे हैं जो आतंक के मुख्यालय में
आतंक के मुख्यालय में साजिश वो रचते हैं
नादान नौजवान बलि का बकरा बनते हैं
रो रहा आमिर कासव क्या मिला मौत के बदले
अपने बुढडे आकाओं से हम क्यों मरे पहले ॥
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
11:22 AM
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Monday, December 1, 2008
विश्व एड्स दिवस - 1 दिसम्बर

एड्स एड्स एड्स विश्व जगत में हो रहा चर्चा
रोग ये लाईलाज़ है करवा दे लाखो खर्चा
करवा दे लाखो खर्चा नही कोई बात बनेगी
जबतक शिक्षा की मशाल हर कोने में न जलेगी
भेदभाव, लज्जा, भय मन मस्तिष्क से तुम मिटा दो
स्वच्छ समाज निर्माण में सबको जीने की राह दिखा दो.
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
11:36 AM
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Friday, November 28, 2008
भारत और आतंकवाद - लगता है हम असहाय हैं ...
Wednesday, October 22, 2008
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसके अन्दर महाराष्ट्र है।
भारत एक ऐसा राष्ट्र है जिसके अन्दर महाराष्ट्र है
मराठियों का सम्मान कैसे जब वहां ठाकरे राज है।
लगाया आग क्षेत्रवाद का फिर से जलने के लिए
टुटा मेरा सपना अखंड भारत पर मरने के लिए।
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
10:45 AM
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Monday, August 25, 2008
त्रासदी (भ्रष्ट्र तंत्र के ख़िलाफ़ आवाज़ )

उत्तर से लेकर दक्षिण तक
पूरब से लेकर पश्चिम तक
भिन्न भिन्न लोग हैं, मौसम है और
बहुत सी संस्कृति है.
विविधताओं से भरी अपने देश की धरती है.
फिर राजनीति के क्यूँ एक जैसे रंग हैं.
सबके इरादे नेक हैं.
जमकर खाइए, उनकी नीति एक है.
जब भी देश में कोई आपदा आई है
राहत के नाम पर हमारे नेताओं, अफसरों ने
अपनी जेबों में चांदी उगाई है.
न्याय के लिए तरसते गरीब रहे सदा भूखे.
चाहे बिहार में आई हो बाढ़
या गुजरात में पड़े सूखे !!
Tuesday, May 8, 2007
1857 के विद्रोह के 150 साल (देखिए रेखाचित्र के माध्यम से )

1. इलाहाबाद में विद्रोहियों पर हमला. तारीख- 13 जून, 1857

2. लखनऊ में 25 सितंबर, 1857 को रेजीडेंसी के पास विद्रोहियों और अंग्रेज़ों के बीच हुआ संघर्ष

3. 14 सितंबर, 1857 को अंग्रेज़ों ने दिल्ली के कश्मीरी गेट पर हमला किया
(साभार- भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद)
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
11:07 PM
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