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Friday, May 28, 2010

शुरू करो उपवास रे जोगी



जब तक चले श्वास रे जोगी
रहना नज़र के पास रे जोगी

बंधाकर सबको आस रे जोगी 

कौन चला  बनवास रे जोगी

हर सू फ़र्ज़ से सुरभित रहे

घर दफ्तर न्यास रे जोगी

सदियों तक ना प्यास जगे

यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे

खोना मत विश्वास रे जोगी

जो भी पहना दिखता सुन्दर

तहजीब का लिबास रे जोगी

वही  पुराने  भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी

प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी

-सुलभ

37 comments:

संजय कुमार चौरसिया said...

vakai main upvas ab rakhna padega

http://sanjaykuamr.blogspot.com/

honesty project democracy said...

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
वाह सुलभ जी बहुत दिनों बाद आपने लिखा लेकिन एकदम ठीक लिखा जब आपने सोच लिया है ,तो हमसब भी इस देश और समाज के लिए उपवास कर लेंगे आपके साथ !!

राज भाटिय़ा said...

अजी गरीब तो हर रोज ही उपवास करता है, अब उपवास नही हक की बात करो रे योगी, बहुत सुंदर ओर ऊमदा रचना.
धन्यवाद

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

शब्द पिरोये ख़ास रे जोगी
खूब लिखा शाबाश रे जोगी

kshama said...

जो भी पहना दिखता सुन्दर
तहजीब का लिबास रे जोगी

Sundar to sbhi panktiyan hain,par yah kuchh khaas lagi!

M VERMA said...

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
यही तो मूल मंत्र है सुलभ जी
सटीक

Unknown said...

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
Thanks

सम्वेदना के स्वर said...

अच्छी एवं नूतन अभिव्यक्ति...

अर्चना तिवारी said...

वाह ! क्या बात है जोगी
लिखी पते की बात है जोगी

Mansoor ali Hashmi said...

सुन्दर विचार, आस बंधाती, विश्वास जगाती रचना.

"प्रेम के ढाई अक्षर साचे,
बाकी सब बकवास रे जोगी."

mansoorali hashmi

Alpana Verma said...

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी

जो भी पहना दिखता सुन्दर
तहजीब का लिबास रे जोगी

वाह! वाह!क्या बात है !
कितनी सुन्दर बात कह दी हैं इन में !
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है!

Mithilesh dubey said...

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी

लाजवाब ।

Vinay said...

वाह-वा!

Ra said...

ऐसी ही धुन पर माननीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी की एक ग़ज़ल पढ़ी थी बड़ी कशिश लिए थी उसने भी दीवाना बनाया ...आज आपकी पढ़ी ..आपकी ग़ज़ल ने मन खुश कर दिया sadha शब्दों की सुन्दरता के साथ एक चिंतन भी है ,,,गागर में सागर जो सरहानीय है ....

Anonymous said...

सदियों तक ना प्यास जगे
यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
हर लिहाज से सुंदर रचना

Arvind Mishra said...

आत्म -आह्वान !

Dr.R.Ramkumar said...

वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी

प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी


अच्छे शेर हैं सतरंगी जी! बधाई

संजय भास्‍कर said...

वाह! वाह!क्या बात है !
कितनी सुन्दर बात कह दी हैं इन में !
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है!

दिगम्बर नासवा said...

सदियों तक ना प्यास जगे
यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी

टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी

बहुत अच्छे शेर निकाले हैं सुलभ जी ... सामाजिक स्थिति पर ... दर्शन पर ... हालात पर .. अनेक विषयों को चुवा है आपने अपने शेरों के माध्यम से ... बहुत खूब लिखा है ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत बढ़िया...मंहगाई पर अच्छी रचना..

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, सुलभ!

रचना दीक्षित said...

सुन्दर भाव बेहतरीन शब्द संयोजन.जीवन के सत्य का एक पहलू. बेहतरीन अभिव्यक्ति

लल्लन की कलम से said...

इस रचना को पढ़ कर धन्य हुए हम.

अरुणेश मिश्र said...

अति सुन्दर ।

Himanshu Mohan said...

अच्छा है।

Prem Farukhabadi said...

वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी

प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी

बहुत सुंदर रचना.

Satya Vyas said...

बहुत सुन्दर सुलभ..... और हाँ सप्ने बिल्कुल उसी वजह से अभिसप्त है जिस कारण यहं यादोँ का इन्द्र जाल है

लता 'हया' said...

शुक्रिया ,
आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आई तो एक साथ कई रचनाएं पढ़ डालीं , जोगी अच्छे भाव लिए है ,लघु कथा और मर नहीं सकते ने जैसे ही द्रवित किया वैसे ही husband wife chatting ने हंसा दिया .अपनी तकनीकी जानकारी को रचना में ढालना .........सार्थक प्रयोग है .

कुमार राधारमण said...

न वे लोग रहे न वह जीवन-शैली। कितना कुछ बदल गया है-कुछ अनचाहे,कुछ मज़बूरन।

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर गजल सजाई जोगी।
--------
रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?

Rohit Singh said...

पूर्वजों ने अध्यात्म के साथ-साथ कम से कम हफ्ते में एक दिन समाज को स्वस्थ्य रखने औऱ ज्यादा खाने की आदत से बचाए रखने के लिए ही उपवास की नींव रखी थी। पर अब सरकार रोज रोज ही उपवास रखने की आदत समाज के उच्च वर्ग के छोड़कर सबको डालने की नींव रख रही है। वैसै भी हमारे देश में जब 40 फीसदी रोटी के लिए तरसते हैं तो हमारे गले से रोटी नीचे कैसे उत रही है। सरकार यही सोच रही है। यानि हमारे लिए तो यही होने जा रहा है कि कुएं में गिर गए हैं तो जरा सा नहा भी लिया जाए वाली होने जा रही है।

Satish Saxena said...

कमाल कर दिया !! वाकई लिखी पते की बात है जोगी !!

Urmi said...

बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

आज यह गजल दुबारा पढी, तो फिर बधाई दिये बिना रहा न गया।
--------
ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?

Unknown said...

सपनो को फल मिलेगा बस रख ले ..ये विश्वास रे जोगी

Mumukshh Ki Rachanain said...

प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी

उपवास का ये बहाना भी उम्दा है...........

अति सुन्दर प्रयास.

हार्दिक बधाई..........

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर

निर्मला कपिला said...

वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी

प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी
वाह वाह बहुत खूब । शुभकामनायें

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "