आज के लिए अपनी कोई मौलिक रचना नहीं सो एक पुरानी कथा सुनाता हूँ...
एक लोकप्रिय प्रेरक वक्ता अपने श्रोताओं का मनोरंजन कर रहा था, उसने कहा: "मेरे जीवन का सबसे अच्छा साल वो था जो मैंने एक औरत की बाहों में खर्च किया जो मेरी पत्नी नहीं थी!"
सभी श्रोता मौन रहे और एक दुसरे को सदमे भरे निगाह से देखने लगे. वक्ता ने आगे जोड़ा "और वह औरत मेरी माँ थी!"
जोरदार तालियां की गरगराहट और हंसी से हाल गूंज गया.
एक सप्ताह बाद, एक प्रबंधक जो अपने कार्यालय में उसी वक्ता को सुन चुका था, अपने घर पर प्रभावी मजाक करने की कोशिश की. नया नया प्रशिक्षित वह मैनेजर अतिउत्साहित होकर जोर से बोलने लगा...
"मेरे जीवन का सबसे बड़ा साल वो जिसे मैंने एक औरत की बाहों में खर्च किया जो मेरी पत्नी नहीं थी! "
तक़रीबन 3० सेकेण्ड खामोश रहने के बाद वो मैनेजर झुंझलाते हुए बोला "....और मुझे याद नहीं की वह कौन थी!"
पत्नी और घर के अन्य सदस्य भयानक गुस्से में आ गए.
कहानी का नैतिक सार: DON'T COPY IF YOU CAN'T PASTE !!
चलते चलते एक शे'र अर्ज है...
'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए
24 comments:
:)
कोई साहित्यकार ही रहा होगा ! आपने शायद महादेवी वर्मा जी का वह एक चर्चित वाकया सुना ही होगा कि एक बार वे काव्यगोष्ठी में लेट पहुची तो मौजूद सभी कविगण उनसे खपा थे ! उन्होंने स्टेज पर जाकर कहा ;
मैं लेट हुई मैं लेटी थी,
वह मेरे ऊपर लेता था !
यह सुन सभी कवियो और श्रोताओं की भौंवे तन गई, वे फिर धीरे से मुस्कुराते हुए बोली ;
मैं प्यार में कुछ कह न सकी
क्योंकि वह मेरा बेटा था !!
हा !हा !!
सुलभ जी...
क्या कोपी की है...मजा आगया...काफी दिनों बाद ब्लॉग पर हंसने का मौका मिला है.!
:))
बहुत खूब. मज़ाक का मज़ाक और इतनी बड़ी बात.
बहुत खूब. .....
हा हा हा ! बेचारे से भयानक भूल हो गई।
'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए
..........bahut khoob
वाह
ha ha ha!!
sahi kahaa 'nakal ke liye bhi akal chaheeye'...
बहुत सुंदर बात कही , मजे दार ओर बहुत गहरे भाव वाली लेकिन नकल के लिये भी तो भेजा चाहिये ना:)
बहुत खूब। मज़ेदार।
इस पोस्ट को पढ़ कर क्रोध आ रहा है
अपने पर
कि अब तक क्यों नहीं पढ़ा
मैंनें आपको
बहुत गंभीर बात कह दी हंसी हंसी में, एक बहुत अच्छा कटाक्ष .बधाई स्वीकारें
'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए ..
आपका ये शेर भी कमाल का है सुलभ जी .... और किसा भी लाजवाब .....
आज कल कुछ ज़्यादा व्यस्त लग रहे हैं आप ...
वाह बहुत ही बढ़िया, मज़ेदार और सही बात कहा है आपने! बहुत खूब!
सच कहा सुलभ...और इस "शब्द बीनते हुये भटकने" की अदा पर मोहित हो गये हम तो....
सुलभ जी ,
हमें तो आपका अंदाज़ चुराने का मन करता है :):) .
बिलकुल सच कहा सुन्दर पोस्ट
आभार...........
शायद यही अंतर है किताबी प्रशिक्षित मैनेजर और अनुभवी मैनेजर में, एक कट, कापी और पेस्ट में माहिर और दूसरा आसरों के सहारे...........
पसंद आया आपका यह कथा वाचन और सही सटीक नैतिक सार.
चन्द्र मोहन गुप्त
खूब कहा इन्टरनेट का इंद्रजाल बन गया है , भागे जा रहे शब्दो के इस महाजाल में !
याद न आए तो सफाई मान ली जानी चाहिए कि कापी ही था जो पेस्ट नहीं हो पा रहा है.
Interesting indeed !...Smiles...
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