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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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Friday, October 16, 2009

दिवाली में साम्य (क्षणिकाएं)




घर में श्रीमती के हाथो फूल-पत्ते गूँथ कर
श्रद्धा के सहारे लक्ष्मी को बुलाया जा रहा है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

बाहर श्रीमान के हाथो 'फुल पत्ते' पीस कर
संयोग के सहारे लक्ष्मी को बुलाया जा रहा है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~



~~~~~प्रकाशपर्व मंगलमय हो!~~~~~~

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "