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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, May 21, 2010

नौकरी (लघुकथा - सुलभ)

"अंकल आ गए... अंकल आ गए... " घर पहुँचते ही पांच वर्षीय भतीजा सोनू ख़ुशी से चहक उठा. सोनू के प्यारे अंकल रमन ने भी सोनू को गोद में उठाकर अपने कमरे में ले आए और पुचकारते हुए कहा "हाँ ! तुम्हारे अंकल आ गए और तुम्हारे लिए एक खिलौना लाये हैं... ये देखो सायकिल"  खिलौना पाकर सोनू बहुत खुश हुआ. लेकिन तुरंत बोल उठा "अंकल ये तो छोटा है मैं इसे कैसे चलाऊंगा."
"अरे सोनू अभी तुम भी तो छोटे हो, थोड़े और बड़े हो जाओगे तो मैं तुम्हे सचमुच की साइकिल ला दूंगा. फिर मेरा सोनू बेटा, साइकिल से स्कूल जाएगा. है न." रमन ने हँसते हुए उसके सर पे हाथ फेरे.  "अब तो मुझे नौकरी भी मिल गयी है कुछ ही दिनों में मैं दुसरे शहर चला जाऊँगा. फिर तुम मेरे इस कमरे में ही खेलना...पढना... और सोना.. ठीक है"  रमन ने मुस्कराते हुए कहा. अभी उठ कर फ्रेश होने के लिए उसने तौलिया उठाया ही था, की आवाज आई. "अंकल... पर पापा तो मम्मी से कह रहे थे की जब रमन नौकरी के लिए दुसरे शहर चला जाएगा तब हम इस कमरे को किराए पर लगा देंगे...कुछ पैसे आ जायेंगे हाथ में"   मासूम भतीजे के मुंह से यह बात सुन, रमन थोड़ी देर के लिए वहीं ठूँठ सा खड़ा रह गया. 



27 comments:

रचना दीक्षित said...

बच्चों का बचपना और बड़ों का बड़प्पन !!!सभी कुछ सामने आ गया इस छोटी सी कहानी में

दिलीप said...

badi hi maarmik...sach hai damdi ne insaan se uska sukoon cheen liya...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कभी कभी बच्चे ऐसी बात कह देते हैं कि इंसान की सोच से परे होती है ...
अच्छी लघुकथा

राज भाटिय़ा said...

बच्चे मन के सच्चे होते है, फ़िर हम उन्हे झुठ बोलना सीखाते है

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बहुत सुन्दर लघु कथा ... दिल को छुं गया .. खैर यही जीवन का सत्य है ...
आपकी शुभकामनायों के लिए धन्यवाद !
और हाँ, कभी आपके उन यादों के बारे में भी बताइयेगा ... (कटिहार टी.वी. स्टेशन और कर्स्यांग टी.वी. स्टेशन नेपाल टी.वी. बहुत कुछ याद आ गए)

सदा said...

गहरे भाव लिये बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

M VERMA said...

ऐसा ही होता है

दिगम्बर नासवा said...

मध्यमवर्गी परिवार की मजबूरियों को भोला बचपन भी समझने लगा है ... कुछ ही शब्दों में इस त्रासदी को प्रभावी तरीके से लिख दिया है आपने ....

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

मद्यम्वर्गीय कडवी सच्चाई !

honesty project democracy said...

उम्दा सोच और सार्थक प्रस्तुती / सुलभ जी हम आपके सोच और हर सार्थक मुहीम में निडरता से साथ चलने के जज्बा का हार्दिक आदर करते हैं / ऐसे ही सोच को और लोगों में जगाने का प्रयास कीजिये /

डॉ टी एस दराल said...

यह भी एक कडवी सच्चाई है ।
संवेदनशील लघु कथा।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

यह लघुकथा सच्चाई को बयाँ करतीं....बहुत अच्छी लगी...

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह सुलभ जी बहुत खूब एक बढ़िया और गंभीर भाव प्रस्तुत किया आपने...लघुकता बढ़िया लगी..बधाई

मनोज कुमार said...

यही सच है!

मनोज कुमार said...

22.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

Urmi said...

बहुत ही बढ़िया, मार्मिक और सच्चाई बयान करती हुई उम्दा लघुकथा प्रस्तुत किया है आपने! बधाई!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बच्चा का सपना और परिवार का दुनो सिरा मिलाने का मसक्कत अउर दुनो के बीच का द्वन्द, बहुत सच्चाई से देखाए हैं आप..

sandhyagupta said...

sab bazar ki maya hai.prabhavi laghukatha.

Alpana Verma said...

प्रभावी लघुकथा.
एक सच जिससे रिश्तों का अलग ही रूप नज़र आया.
ये रिश्तों के बदलते मूल्य हैं .

Unknown said...

भौतिकवाद ने न जाने कितने रिस्तों का कत्ल किया है

सम्वेदना के स्वर said...

यथार्थ अब खो चुके हैं मासूमियत जो कभी बच्चों सी लगती थी..ज़मीनी हकीकत वही है जो आपने दिखाया है..

Anonymous said...

बच्चे मन के सच्चे!

दिन भर कि छोटी-मोटी घटनाये गहरा छाप छोड़ जाती है. बच्चे तो मन के सच्चे होते है वो क्या समझे दुनियादारी.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

....क्योंकि बच्चे झूठ नहीं बोलते... यही सच्चाई है ज़िन्दगी की.

kumar zahid said...

Bahut achchi laghukatha hai ---haqikat ki tasveer----

Pawan Kumar said...

सुलभ भाई इसे जिंदगी की जरूरतें समझें या व्यावसायिक होते सम्बन्धों की बेचारगी.......बहरहाल लघु कथा बड़े सन्देश देने में समर्थ है....!

अनामिका की सदायें ...... said...

bache sach ka aayina hote hai..jo aapki kahanai se jhalakta hai. acchhi kahani.

kavita verma said...

madhyam vargiya jeevan ki kadvi sachchai ek bachche se sunana ...achchhi laghukatha...

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "