"अंकल आ गए... अंकल आ गए... " घर पहुँचते ही पांच वर्षीय भतीजा सोनू ख़ुशी से चहक उठा. सोनू के प्यारे अंकल रमन ने भी सोनू को गोद में उठाकर अपने कमरे में ले आए और पुचकारते हुए कहा "हाँ ! तुम्हारे अंकल आ गए और तुम्हारे लिए एक खिलौना लाये हैं... ये देखो सायकिल" खिलौना पाकर सोनू बहुत खुश हुआ. लेकिन तुरंत बोल उठा "अंकल ये तो छोटा है मैं इसे कैसे चलाऊंगा."
"अरे सोनू अभी तुम भी तो छोटे हो, थोड़े और बड़े हो जाओगे तो मैं तुम्हे सचमुच की साइकिल ला दूंगा. फिर मेरा सोनू बेटा, साइकिल से स्कूल जाएगा. है न." रमन ने हँसते हुए उसके सर पे हाथ फेरे. "अब तो मुझे नौकरी भी मिल गयी है कुछ ही दिनों में मैं दुसरे शहर चला जाऊँगा. फिर तुम मेरे इस कमरे में ही खेलना...पढना... और सोना.. ठीक है" रमन ने मुस्कराते हुए कहा. अभी उठ कर फ्रेश होने के लिए उसने तौलिया उठाया ही था, की आवाज आई. "अंकल... पर पापा तो मम्मी से कह रहे थे की जब रमन नौकरी के लिए दुसरे शहर चला जाएगा तब हम इस कमरे को किराए पर लगा देंगे...कुछ पैसे आ जायेंगे हाथ में" मासूम भतीजे के मुंह से यह बात सुन, रमन थोड़ी देर के लिए वहीं ठूँठ सा खड़ा रह गया.
"अरे सोनू अभी तुम भी तो छोटे हो, थोड़े और बड़े हो जाओगे तो मैं तुम्हे सचमुच की साइकिल ला दूंगा. फिर मेरा सोनू बेटा, साइकिल से स्कूल जाएगा. है न." रमन ने हँसते हुए उसके सर पे हाथ फेरे. "अब तो मुझे नौकरी भी मिल गयी है कुछ ही दिनों में मैं दुसरे शहर चला जाऊँगा. फिर तुम मेरे इस कमरे में ही खेलना...पढना... और सोना.. ठीक है" रमन ने मुस्कराते हुए कहा. अभी उठ कर फ्रेश होने के लिए उसने तौलिया उठाया ही था, की आवाज आई. "अंकल... पर पापा तो मम्मी से कह रहे थे की जब रमन नौकरी के लिए दुसरे शहर चला जाएगा तब हम इस कमरे को किराए पर लगा देंगे...कुछ पैसे आ जायेंगे हाथ में" मासूम भतीजे के मुंह से यह बात सुन, रमन थोड़ी देर के लिए वहीं ठूँठ सा खड़ा रह गया.
27 comments:
बच्चों का बचपना और बड़ों का बड़प्पन !!!सभी कुछ सामने आ गया इस छोटी सी कहानी में
badi hi maarmik...sach hai damdi ne insaan se uska sukoon cheen liya...
कभी कभी बच्चे ऐसी बात कह देते हैं कि इंसान की सोच से परे होती है ...
अच्छी लघुकथा
बच्चे मन के सच्चे होते है, फ़िर हम उन्हे झुठ बोलना सीखाते है
बहुत सुन्दर लघु कथा ... दिल को छुं गया .. खैर यही जीवन का सत्य है ...
आपकी शुभकामनायों के लिए धन्यवाद !
और हाँ, कभी आपके उन यादों के बारे में भी बताइयेगा ... (कटिहार टी.वी. स्टेशन और कर्स्यांग टी.वी. स्टेशन नेपाल टी.वी. बहुत कुछ याद आ गए)
गहरे भाव लिये बेहतरीन प्रस्तुति ।
ऐसा ही होता है
मध्यमवर्गी परिवार की मजबूरियों को भोला बचपन भी समझने लगा है ... कुछ ही शब्दों में इस त्रासदी को प्रभावी तरीके से लिख दिया है आपने ....
मद्यम्वर्गीय कडवी सच्चाई !
उम्दा सोच और सार्थक प्रस्तुती / सुलभ जी हम आपके सोच और हर सार्थक मुहीम में निडरता से साथ चलने के जज्बा का हार्दिक आदर करते हैं / ऐसे ही सोच को और लोगों में जगाने का प्रयास कीजिये /
यह भी एक कडवी सच्चाई है ।
संवेदनशील लघु कथा।
यह लघुकथा सच्चाई को बयाँ करतीं....बहुत अच्छी लगी...
वाह सुलभ जी बहुत खूब एक बढ़िया और गंभीर भाव प्रस्तुत किया आपने...लघुकता बढ़िया लगी..बधाई
यही सच है!
22.05.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
बहुत ही बढ़िया, मार्मिक और सच्चाई बयान करती हुई उम्दा लघुकथा प्रस्तुत किया है आपने! बधाई!
बच्चा का सपना और परिवार का दुनो सिरा मिलाने का मसक्कत अउर दुनो के बीच का द्वन्द, बहुत सच्चाई से देखाए हैं आप..
sab bazar ki maya hai.prabhavi laghukatha.
प्रभावी लघुकथा.
एक सच जिससे रिश्तों का अलग ही रूप नज़र आया.
ये रिश्तों के बदलते मूल्य हैं .
भौतिकवाद ने न जाने कितने रिस्तों का कत्ल किया है
यथार्थ अब खो चुके हैं मासूमियत जो कभी बच्चों सी लगती थी..ज़मीनी हकीकत वही है जो आपने दिखाया है..
बच्चे मन के सच्चे!
दिन भर कि छोटी-मोटी घटनाये गहरा छाप छोड़ जाती है. बच्चे तो मन के सच्चे होते है वो क्या समझे दुनियादारी.
....क्योंकि बच्चे झूठ नहीं बोलते... यही सच्चाई है ज़िन्दगी की.
Bahut achchi laghukatha hai ---haqikat ki tasveer----
सुलभ भाई इसे जिंदगी की जरूरतें समझें या व्यावसायिक होते सम्बन्धों की बेचारगी.......बहरहाल लघु कथा बड़े सन्देश देने में समर्थ है....!
bache sach ka aayina hote hai..jo aapki kahanai se jhalakta hai. acchhi kahani.
madhyam vargiya jeevan ki kadvi sachchai ek bachche se sunana ...achchhi laghukatha...
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