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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Wednesday, December 31, 2014

चार दिन की जवानी लिखेंगे

मित्रों, पेश है एक ग़ज़ल के कुछ शेर - 

चार दिन की जवानी लिखेंगे 
उस में सौ सौ कहानी लिखेंगे 

तुम उसे जिंदगानी समझना  
हम जहाँ आग-पानी लिखेंगे 

ख़ुदकुशी बाद में हम करेंगे 
पहले खेती किसानी लिखेंगे 

तपते सेहरा में जब आ चुके हैं 
रेत पर नौजवानी लिखेंगे 

चाँद की रोशनाई मिली है 
रात को रातरानी लिखेंगे 

घुल रही है मोहब्ब्त फ़ज़ा में 
हमसफ़र जाफरानी लिखेंगे 
 
बेच सकते नहीं हम अना को  
आदतें खानदानी लिखेंगे 

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "