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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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Sunday, November 7, 2010

दास्ताँ-ए-इश्क दौरान-ए-ग़ज़ल

युनिवर्सल ट्रूथ की तरह कुछ पंक्तियाँ अजर अमर है, जैसे ये शेर  "ये इश्क नही आसां इतना समझ लिजिये, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है." जहाँ इश्क इबादत है वहीं कुछ परंपराएं भी हैं.
इन दिनो ग़ज़लों का मौसम है, मन मे उत्साह है. प्रस्तुत है कुछ पंक्तियां जिसे "दास्ताने इश्क दौराने ग़ज़ल" कह सकते हैं.


तोबा  ये  तकरार  की बातें
इश्क मे जित-हार की बातें


हुस्न शोला, है अदा कातिल
इश्क  मे  हथयार की बातें


जिगर यारों थाम के रखना
इश्क  मे  इन्कार की बातें


जुबाँ चुप औ' दिल है बेकाबू
इश्क मे  इज़हार की बातें


सोना चाँदी  ना मोती मूंगा 
इश्क  मे दिलदार की बातें


वफ़ा  वादे  दोस्ती  कसमे
इश्क  मे ऐतबार की बातें


सनम की यादे गमे-जुदाई
इश्क मे इंतजार की बातें


सितमग़र जुल्मी बेवफाई
इश्क मे  हैं ख़ार की बातें


लैला मजनूँ फ़रहाद शीरी
इश्क में किरदार की बातें


 - सुलभ 

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "