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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्
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Thursday, April 1, 2010

खिलौने अकेले में रोते हैं






गुजरा वक़्त कब लौटा है
आंसू बह जाने के बाद


दीवानों के घर नहीं बसते
साकी औ' मयखाने के बाद

खिलौने अकेले में रोते हैं
बच्चों को हंसाने के बाद

पास कोई नज़र नहीं आता
आँखें बूढी हो जाने के बाद

यादों की उमर बढ़ती है
बचपन याद आने के बाद

"सुलभ" किसको क्या मिला
दिल किसी का दुखाने के बाद

(सतरंगी फिलोसफी से कुछ पंक्तियाँ )

Wednesday, December 31, 2008

साल 2008

1.
दिल्ली भी थर्राया, जयपुर बंगलोर भी थर्राई
इस साल खुनी खेल में मुंबई भी नहाई
क्या याद करे क्या बात करे साल 2008 की
जश्न अधुरा नए साल का हर दिल में है खौफ समाई.

2.
इस बीच इंडियन क्रिकेट का ऐसा कायापलट हुआ
ICL और IPL का मुकाबला भी गज़ब हुआ
क्रिकेट के आगे फुटबॉल हॉकी पानी भरते रहे
धोनी नम्बर 1 सीढियाँ ऊपर चढ़ते रहे.

3.
विश्व-अर्थव्यवस्था की बिगड़ी ऐसी चाल
मार्केट गिरा मुंह के बल आया ऐसा भूचाल
आया ऐसा भूचाल अमेरिका भी हारा
रिजर्व बैंक हो या वर्ल्ड बैंक सब बेचारा
कहत सुलभ कविराय कोई उपाय न सूझे
रोजगार के हजारो दीये पलभर में बूझे

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "