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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Thursday, April 9, 2009

दुल्हे की खरीद-फरोख्त (Hindi Hasya Vyangya)

हर लम्हा कट रहा है अब नीलामी के इंतिजार में
बेमेल रिश्ते बेहिसाब कीमत अपनों के बाज़ार में
कैसा ज्ञान कैसी तुलना अब लेन-देन की बात है
मारा गया कवि आज उम्मीदों के संसार में ॥


लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "