दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे
राजा कबतक महल में टिकेगा
(दिखावा कबतक चेहरे पे टिकेगा)
(दिखावा कबतक चेहरे पे टिकेगा)
वक़्त के दीमक सब चाट लेंगे
- सुलभ
39 comments:
राजा कबतक महल में टिकेगा
वक़्त के दीमक सब चाट लेंगे
सार्थक नसीहत और रचना
सुन्दर
nice
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
-बेहतरीन!
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
-बेहतरीन!
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे.
वाह!बहुत खूब कहा है यह शेर!
--अच्छे ख्याल हैं .
बहुत खूब ।
दूसरी बन्द तो और भी जबर्दस्त है भाई !
आभार ..!
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
एकदम मस्त लाइने
बहुत खूब कहा भाई आपने ।
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे
हक़ीकत से जुड़े शेर हैं सब ... सुलभ जी आपने सही कहा है .. जीवन को प्यार से ही जिया जा सकता है ...
आसमान से उतर कर देखो, मैं इसे कहता हूँ 'मेरे फ्रेम में आकर देखो/अपने फ्रेम से निकल कर देखो'.
बहुत खूब !
वाह वाह वाह !!!!!!!!!!!!!!!बहुत ही बेहतरीन भाव और ऊपर से ये फोटो मार ही डाला एक तो इतना ऊपर बिठा दिया है फिर कहते हो की खाई गहरी नहीं है.खैर कहते हो तो मान ही लेते हैं हा हा हा .........
सकात्मक सोच से परिपूर्ण रचना।
दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे
एक आशा वादी कविता, प्रकाश की ओर ऊम्मीद की ओर जाती, धन्यवाद
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
bahut sunder panktiya .
pooree rachana aashavadee hai. ati sunder .
अपनापन - दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे...
भरोसा - ज़रा आसमान से उतर कर देखो...
सहयोग - सब अपने ही खेत से निकले हैं...
सच्चाई - राजा कबतक महल में टिकेगा ...
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत ही बेहतरीन भाव.....धन्यवाद!!
आसमान से उतर कर देखो ...
अच्छी कविता ...!!
सुन्दर लिखा...बेहतरीन रचना !!
______________
"पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".
khub achchi baat likhi hai .
राजा कब तक महल मे टिकेगा ..सही सवाल है ।
सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे
बेहतरीन . ऐसी उम्दा सोच को प्रणाम.
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत सुन्दर.
बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!
सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे..
Ekdam sahi kaha aapne...!
दूरियां मिटाती रचना
बहुत ही खूबसूरत और मनभावन रचना ..बधाई .
________
''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने सुलभ जी...बधाई स्वीकार करें...
नीरज
दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे
oye hoye ......!!
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत खूब .....मरने के बाद गुंजारिश ..कर रहे हैं जनाब ...पहले क्यों नहीं पाटि .....????
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत सुन्दर शेर.
Waah !!!! Bahut hi sundar rachna...
Bhaiyya kul milake ee kaha ja sakat ki maja aa gayil!
Waqt ke deemak sab chaat lenge...
Humohun bhi chaat lenge ke???
Bahut umda!
Aaj dobara aapki is rachanaka aanand uthaya!
आपने काव्यांचल पर मेरी रचनाओं की प्रशंसा की इसके लिए आपका आभार
अब काव्यांचल एक वेबसाइट में तब्दील हो गया है।
कृपया इसको और बेहतर बनाने के लिए सुझाव दें
www.kavyanchal.com
are vaah.....kya baat hai.....
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
भावनाओं को आंदोलित करती
कामयाब रचना ....
अभिवादन .
बड़े दिनों से कुछ लिखा नहीं क्या बात है ?
रचना के भाव बेहद जानदार हैं. छोटी बहर में बड़ा कारनामा कर दिखाना शायद इसी को कहते हैं. आप मेहनत कर रहे हैं, लोगों का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, इस बड़ा परमार्थ का कार्य और क्या हो सकता है?
आपके ख्याल में मैं आपसे नाराज़ हो सकता हूँ? क्यों? मेरा आपसे खेत-मेंड़ का कोई विवाद है? मेरे भाई, मैं अपनी परेशानियों-उलझनों में जकड़ा हुआ हूँ. मेरा मन खुद मुझे धिक्कारता है लेकिन रोज़गार एक ऐसा बंधन जो सुलभ से बिहार और सर्वत से गोरखपुर छुड़ा देता है.
मैं कभी किसी से नाराज़ नहीं होता और यही है मेरी 'सुन्दरता' का राज़!!!
ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
और फिर
सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे
लाजवाब
छू लिया दिल को
awaysome ..gahre or asardaar purmaani bhaav
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