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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Monday, February 27, 2012

केवल बारह आने निकले

कल दिल्ली के मोलारबंद गाँव से गुजर  रहा था   बच्चो की टोली ने पानी फेंककर  मुझे होली की हुल्लर बधाई दी. मौसम बदल रहा है तो बहुत कुछ बदल रहा है. कुछ पुराने दर्द में कमी हुई तो कुछ नए दर्द में इजाफा भी हो रहा है. बाकी सब नोर्मल है...

हम जिसे समझाने निकले
वो ही हमे घुमाने निकले

क़र्ज़ किसी ने नहीं लौटाया
तकादा की तो बहाने निकले

टच-मी किस-मी गीत बने
बच्चे बच्चे गाने निकले

जिसने दिया था हक हमको
आज माँगा तो ताने निकले

सुब्ह शाम क्रिकेट में डूबे  
कैसे कैसे दीवाने निकले

एक रुपया कमा कर आया
केवल बारह आने निकले 

बिखरे सारे तिनके चुनकर
सपने फिर से सजाने निकले  


लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "