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Saturday, April 24, 2010

तोहरा से नज़र मिलाईं कईसे (भोजपुरी ग़ज़ल)


देखाईं कईसे  जताईं कईसे
हमरो अकिल बा बताईं कईसे

नासमझ के समझाईं कईसे

आँख खुलल बा जगाईं कईसे

अकेले सफ़र में गाईं कईसे

उदास मन बा  खाईं कईसे

घाव करेजा के छुपाईं कईसे

पुरनका याद  भुलाईं कईसे

  तोहरा से नज़र मिलाईं कईसे

'सुलभ' झूट शान देखाईं कईसे 

(अकिल=अक्ल, करेजा=दिल)

24 comments:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

नासमझ के समझाईं कईसे
आँख खुलल बा जगाईं कईसे

Bahut khoob!

उम्मतें said...

अरे ऐसा क्या कर दिया आपने जो उससे नज़र भी नहीं मिला पायेंगे :)

ग़ज़ल अच्छी लगी !

स्वप्निल तिवारी said...

बहुत बढ़िया ग़ज़ल लागल राउर... भाव तनी और निम्मन हो सकत रहे..

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

बढ़िया भोजपुरी ग़ज़ल है भाई .... मज़ा आ गईल !

Taarkeshwar Giri said...

Are jiya ho kareja jiya. Lagal raha.

36solutions said...

घाव करेजा के छुपाईं कईसे
पुरनका याद भुलाईं कईसे

धन्‍यवाद सतरंगी जी

रचना दीक्षित said...

घाव करेजा के छुपाईं कईसे
पुरनका याद भुलाईं कईसे

वाह !!!!!!!!! क्या बात है.....

M VERMA said...

नासमझ के समझाईं कईसे
आँख खुलल बा जगाईं कईसे
हमके नाही मालूम रहल आपो भोजपुरी क रचनाकार हऊआ.
बहुत बढिया गजल हौ, बधाई

राज भाटिय़ा said...

तोहरा से नज़र मिलाईं कईसे
'सुलभ' झूट शान देखाईं कईसे
भोज पुरिया पढ वाई कईसै
मजे दार जी

मनोज कुमार said...

ग़ज़ल अच्छी लगी !

विनोद कुमार पांडेय said...

वाह भाई..भोजपुरी तो हमारे घर की भाषा है और अपने बोलचाल की भाषा में इतनी सुंदर ग़ज़ल आज पहली बात पढ़ने को मिली....बहुत बढ़िया और प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार सुलभ जी

Udan Tashtari said...

हा हा!

देखाईं कईसे जताईं कईसे
हमरो अकिल बा बताईं कईसे


कर्मों से समझ आ जायेगा. :)


बहुत बेहतरीन प्रयास...मजा आया.

Anonymous said...

"तोहरा से नज़र मिलाईं कईसे
'सुलभ' झूट शान देखाईं कईसे"
बहुत खूब - भोजपुरी में होते हुए भी पूरी तरह से समझी जा सकती है.

Abhishek Ojha said...

कातना नीमन बा बताईं कईसे.

दिगम्बर नासवा said...

वाह सुलभ जी ... आप तो मास्टर हैं ग़ज़ल के और इस भोजपुरी ग़ज़ल ने तो दिल लूट लिया ... अपने आँचल की भाषा में कहना और पढ़ना दोनो ही अच्छा लगता है और भोजपुरी तो बहुत ही मीठी भाषा है ...

एक शेर हमारी तरफ से भी ... भाषा का सुधार आप कर दें ...

तोहरे ग़ज़ल की थाह पाई कैसे
ईमा इतना दर्द समाई कैसे

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@दिगंबर जी,
आपके प्रोत्साहन के लिए शुक्रिया...
आपने भाव समझा और प्रतिक्रया करी, शेर कही. मेरा दिल खुश हो गया..सचमुच(हमर जी खुश हो गईल...साँचो)... यह बताता है की आप मेरे जैसे साधारण रचनाकार की कितनी इज्ज़त करते हैं.
आपके शेर,,,,

तोहर ग़ज़ल की थाह पाई कईसे
एमे एतना दरद समाई कईसे
(आप दो लाइन और जोड़ सकते हैं)

kshama said...

नासमझ के समझाईं कईसे
आँख खुलल बा जगाईं कईसे
Wah..maza aa gaya!

Alpana Verma said...

bhojpuri badi meethi boli hai...

us mein aap kee yeh ghazal padhi ..waah!waah! waah!
kya baat hai!

[kabhi apni awaaz mein ise post kareeye.]

Dimple said...

Bahut hi badiya!!

Regards,
Dimple
http://poemshub.blogspot.com

mridula pradhan said...

bahot achche.

सदा said...

घाव करेजा के छुपाईं कईसे
पुरनका याद भुलाईं कईसे ।

बेहतरीन शब्‍द रचना ।

रश्मि प्रभा... said...

waah.... bhojpuri kee mithaas

kshama said...

Padh chuki thi..lekin dobara padhne ka lutf uthaya..mazedar to haihi..isme lay bhi badi achhee hai!

S.M.Masoom said...

नासमझ के समझाईं कईसे
आँख खुलल बा जगाईं कईसे
भोजपुरी की मिठास ही और है. लिखते रहे

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "