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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Monday, September 28, 2009

विजय दशमी की बधाई!

असत्य पर सत्य की जीत हो
मित्रता और प्रेम के गीत हो !

समय रहते अन्दर के रावण को मारना होगा
भ्रष्ट-असमाजिक तत्वों को पराजित कर,
रामराज्य के सुन्दर अस्तित्व को स्वीकारना होगा !!

Sunday, September 20, 2009

चाँद भी सजदे में है (ग़ज़ल)

आज रमजान का महिना भी गुजर गया और दशहरा प्रगति पर है। घर से दूर अकेले नए जगह में त्यौहार के रोमांच का पता न चला। हाँ यदि घर पर होता तो ईद साथियों के साथ खूब जमती । ख़ैर आज इस मौके पे आप सभी के खिदमत में एक ग़ज़ल अर्ज़ करता हूँ।

रं ओ गम अपने सारे भुला दो भाई
किसी से नफरत नही है बता दो भाई।

अपने वतन के वास्ते कितने वफादार हैं
राह में आए गद्दारों को यह दिखा दो भाई।

जब गूंजती हो शहनाई पड़ौसी के आँगन में
गीत तुम भी एक कोई गुनगुना दो भाई ।

झूटे नही थे बचपन की सेवइयां और मेले
गले लगके चाचा के अदावतें मिटा दो भाई।

बेहद पाक मंजर है, चाँद भी सजदे में है
शम्मा मुहब्बत का तुम भी जला दो भाई।।


Monday, September 7, 2009

आंखों में आज फिर सैलाब आया (ghazal)


अचानक एक और चुनाव आया
खर्च फिर से बेहिसाब आया।

हर रोज़ होते हैं सिर्फ यहाँ जलसे
ज़म्हूर मे कैसा यह रिवाज़ आया।

पूछा था हमने कभी उनसे खैरियत
बरसों बाद आज जवाब आया।

ज़ख्म ताजे हैं दिल के अब अभी
आंखों में आज फिर सैलाब आया।

बेकरारी है बहुत की अपनों से मिलूं
आज जब मैं अपने गाँव आया

Wednesday, September 2, 2009

इक जरूरी सवाल मियाँ (ग़ज़ल)


ज़रा भीड़ से हट कर तो देखो हाल मियाँ
तेज बहुत हो गयी है जमाने की चाल मियाँ

बेइंतिहा लगे हैं दौर में बाजारों को समेटने
पर घर में नहीं महफूज़ किसी का माल मियाँ

सियासत में कदम रखा और जादूगर बन गए
दिखा रहे हैं एक से बढ़कर एक कमाल मियाँ


कितने छाले पड़े हाथों में अब दिखा रौनके-ए-चमन
एक फूल आज तोड़ी तो उस पे हुआ बवाल मियाँ

अब चराग ढूँढता हूँ के थोड़ी रौशनी मिले
अँधेरे में खो गया इक जरूरी सवाल मियाँ

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "