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Thursday, November 26, 2009

भारत और आतंकवाद - क्षमादान अब त्यागो


(1)

कभी घुसपैठ कभी जेहाद आतंकवाद
लगे हैं सबके सब करने भारत को बरबाद

भारत को बरबाद रोज हो रहा ख़ूनी खेल
ढुलमुल विदेश नीति की देखो रेलमपेल

हमे बचाया मेजर संदीप ने देकर अपनी जान
करकरे, काम्टे, शर्मा और कितने वीर जवान

कितने वीर जवान अभी और शहीद कहलायेंगे
क्या खौफ के साये में हम दिवाली ईद मनाएंगे

कह 'सुलभ' कविराय क्षमादान अब त्यागो
समय रहते आतंकवाद को जड़ से मिटादो॥

(2)











ये कैसी लड़ाई है कैसा यह आतंकवाद
मासूमो का खून बहाकर बोलते हैं जेहाद

बोलते हैं जेहाद अल्लाह के घर जाओगे
लेकिन उससे पहले तुम जानवर बन जाओगे

बम फटे मस्जिद में तो कहीं देवालय में
दुश्मन छुपे बैठे हैं आतंक के मुख्यालय में

आतंक के मुख्यालय में साजिश वो रचते हैं
नादान नौजवान बलि का बकरा बनते हैं

रो रहा आमिर कासब क्या मिला मौत के बदले
अपने बुढडे आकाओं से हम क्यों मरे पहले ॥

- सुलभ जायसवाल सतरंगी

10 comments:

निर्मला कपिला said...

हमे बचाया मेजर संदीप ने देकर अपनी जान
करकरे, काम्टे, शर्मा और कितने वीर जवान

कितने वीर जवान अभी और शहीद कहलायेंगे
क्या खौफ के साये में हम दिवाली ईद मनाएंगे

कह 'सुलभ' कविराय क्षमादान अब त्यागो
समय रहते आतंकवाद को जड़ से मिटादो॥

बम फटे मस्जिद में तो कहीं देवालय में
दुश्मन छुपे बैठे हैं आतंक के मुख्यालय में
दोनो रचनायें लाजवाब हैं शहीदों को शत शत नमन्

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

किससे कहोगे ? कायर है सुनने वाले,
देश की बात करना इनसे बेईमानी !

सदा said...

कितने वीर जवान अभी और शहीद कहलायेंगे
क्या खौफ के साये में हम दिवाली ईद मनाएंगे !

बहुत ही सुन्‍दर रचनायें, शहीदों की इस कुर्बानी के लिये शत् शत् नमन ।

डॉ टी एस दराल said...

दोनों रचनाएँ बेहद प्रभावशाली।
शहीदों को नमन।

राज भाटिय़ा said...

बम फटे मस्जिद में तो कहीं देवालय में
दुश्मन छुपे बैठे हैं आतंक के मुख्यालय में
भाई आप की दोनो रचनाये एक से बढ कर एक बहुत सुंदर.
धन्यवाद

Amrendra Nath Tripathi said...

अच्छी रचना और सुन्दर भाव
शुक्रिया ,,,,

mark rai said...

अगर तूफ़ान में जिद है ... वह रुकेगा नही तो मुझे भी रोकने का नशा चढा है ।

Urmi said...

बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने ! हर एक पंक्तियाँ सच्चाई बयान करती है! शहीदों को मेरा शत शत नमन!

Unknown said...

शहीद जवानों को शत नमन
लड़ैगै आखिरी दम तक जब तक है दम में दम
वतन ए वास्ते बन्दे सजाये मौत भी है कम....
बस अब तो अमन शांति की दुआ है अपने देश के लए..

लता 'हया' said...

शुक्रिया सुलभ जी ;
कुछ ऐसा ही दर्द आपकी रचना भारत और आतंकवाद में नज़र आता है ; आप तो बेहद हस्सास ,जज्बाती इंसान हैं तो COMPUTER कैसे हो सकते हो ?

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"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "