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Sunday, November 15, 2009

कभी नाम था इज्ज़तदार में (शायद एक ग़ज़ल)

यह भी अपने आप में एक ग़ज़ल है जिसे मैंने मोहल्ले में रहने वाले एक बुजुर्ग के लिए लिखा है. और लिखा है देश के उन तमाम बुजुर्गों के लिए जो अकेलेपन का दंश झेल रहे हैं.

कभी नाम था इज्ज़तदार में
अब अकेला बचा हूँ घरबार में

आप दरवाजे पर आये होंगे
बेहोशी में था मैं बुखार में

बेटे सारे पराये हो गए
हद से ज्यादा दुलार में

दुश्मन कौन था मुझे नही पता
धोखा खाये दोस्ती की आड़ में

मैंने ख़रीदा था दुकाँ मैंने बेचा
फुजूल के चर्चे हुए बाज़ार में

एक अदद लाठी का सहारा है
जी रहा हूँ मौत के इंतजार में


रहनेवाला कोई नहीं तो क्या सोचना
जंग लगती रहे पुरखों के दीवार में ||

- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'

16 comments:

डिम्पल मल्होत्रा said...

khoobsurat rachna.....
दुश्मन कौन था मुझे नही पता
धोखा खाये दोस्ती की आड़ में...is shahar me dushman to mera koee nahi tha...fir kisne mujhe katal kiya soch raha hun....

Abhishek Ojha said...

'बेटे सारे पराये हो गए
हद से ज्यादा दुलार में'
ये तो सच था, सच है... हमेशा.

राज भाटिय़ा said...

'बेटे सारे पराये हो गए
हद से ज्यादा दुलार में.....
सही लिखा आप ने धन्यवाद

डॉ टी एस दराल said...

आज के परिवेश में बुजुर्गों की हालत पर एक सार्थक रचना.
विचारनीय.

Mansoor ali Hashmi said...

Tasweer ke saath shabdo ka sundar tal-mel. ghazal se bhi zyada sundar rachna. badhaii.

sandhyagupta said...

Ek anchue se vishay par likhi is sarthak rachna ke liye badhai.

Dr. Shreesh K. Pathak said...

भाई, आपके ब्लॉग तक नहीं पहुँच पाया था..उम्दा लेखनी है आपकी ,,बधाइयाँ...

नीरज गोस्वामी said...

सुलभ जी आपकी रचना बहुत अच्छी और सच्ची है...भले ही ये ग़ज़ल के लिए निर्धारित व्याकरण में सही न बैठती हो लेकिन भाव व्यक्त करने में सक्षम है...आज के दौर में हमारे बुजुर्ग सच ही निंदनीय जीवन जीने को विवश हैं...आप ने अपनी सोच को बहुत इमानदार अभिव्यक्ति दी है...बधाई...
नीरज

Pawan Kumar said...

बहुत ही सुन्दर रचना है आपकी.....बेहतरीन भाव के साथ दिल को छु लेने वाली कविता......हमारे बुजुर्गों को हमारे मानसिक सहारे की ज़रुरत है.

दिगम्बर नासवा said...

आप दरवाजे पर आये होंगे
बेहोशी में था मैं बुखार में

दिल को छु लेने वाली gazal ..बुजुर्गों की हालत KA सार्थक CHITRN HAI ...

निर्मला कपिला said...

एक अदद लाठी का सहारा है
जी रहा हूँ मौत के इंतजार में

रहनेवाला कोई नहीं तो क्या सोचना
जंग लगती रहे पुरखों के दीवार में ||
दिल को छू गयी ये गज़ल शुभकामनायें

स्वप्न मञ्जूषा said...

बेटे सारे पराये हो गए
हद से ज्यादा दुलार में.
sabhi sher lajwaab hain par iski baat juda...
bahut sahi likhte hain app..
aap hamare blog par aaye ...geet aapko pasand aaya ..hriday se aabhari hun ..

स्वप्न मञ्जूषा said...

Pyare Sulabh,
Tumhare comment mein 'Di' kaa sambodhan dekha hi nahi tha...yahan Canada mein abhi raat hi hai...bahut accha laga..
tumhara lekhan bhi prabhavi hai..
aur vaise bhi tum hamre Naihar Bihar ke ho..to bhai ab ban hi gayi..
Khush raho..
Di..

Smart Indian said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति. धन्यवाद!

दीपक 'मशाल' said...

bahut hi kamaal ki rachna likhi hai aapne...
Jai Hind...

राकेश कौशिक said...

सोचने के लिए बाध्य करती मार्मिक रचना. बधाई.

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "