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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Sunday, November 1, 2009

सतरंगी परिभाषा - 1 "जिंदगी"

जिन्दगी क्या हुई
जैसे
शतरंज की बिसात

जो दिमाग से चले
तो लगी शह
जहाँ दिल पे लिया
तो हुई मात

6 comments:

Asha Joglekar said...

जो दिमाग से चले
तो लगी शह
जहाँ दिल पे लिया
तो हुई मात।
क्या बात है

Urmi said...

बहुत सुंदर भाव के साथ आपने उम्दा रचना
लिखा है !
मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

Urmi said...

बहुत सुंदर भाव के साथ आपने उम्दा रचना
लिखा है !
मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

डॉ टी एस दराल said...

जो दिमाग से चले
तो लगी शह
जहाँ दिल पे लिया
तो हुई मात।

वाह, बहुत खूब कहा.
दिलचस्प.

Crazy Codes said...

dimag confuse karti hai.. dil raasta dikhata hai... waise aapki kavitaon ki lines bahut achhi hai...

Alpana Verma said...

yah to apne aap mein poori kavita hai!

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "