जब तक चले श्वास रे जोगी
रहना नज़र के पास रे जोगी
बंधाकर सबको आस रे जोगी
कौन चला बनवास रे जोगी
हर सू फ़र्ज़ से सुरभित रहे
घर दफ्तर न्यास रे जोगी
सदियों तक ना प्यास जगे
यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
जो भी पहना दिखता सुन्दर
तहजीब का लिबास रे जोगी
वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी
प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी
-सुलभ
37 comments:
vakai main upvas ab rakhna padega
http://sanjaykuamr.blogspot.com/
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
वाह सुलभ जी बहुत दिनों बाद आपने लिखा लेकिन एकदम ठीक लिखा जब आपने सोच लिया है ,तो हमसब भी इस देश और समाज के लिए उपवास कर लेंगे आपके साथ !!
अजी गरीब तो हर रोज ही उपवास करता है, अब उपवास नही हक की बात करो रे योगी, बहुत सुंदर ओर ऊमदा रचना.
धन्यवाद
शब्द पिरोये ख़ास रे जोगी
खूब लिखा शाबाश रे जोगी
जो भी पहना दिखता सुन्दर
तहजीब का लिबास रे जोगी
Sundar to sbhi panktiyan hain,par yah kuchh khaas lagi!
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
यही तो मूल मंत्र है सुलभ जी
सटीक
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
Thanks
अच्छी एवं नूतन अभिव्यक्ति...
वाह ! क्या बात है जोगी
लिखी पते की बात है जोगी
सुन्दर विचार, आस बंधाती, विश्वास जगाती रचना.
"प्रेम के ढाई अक्षर साचे,
बाकी सब बकवास रे जोगी."
mansoorali hashmi
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
जो भी पहना दिखता सुन्दर
तहजीब का लिबास रे जोगी
वाह! वाह!क्या बात है !
कितनी सुन्दर बात कह दी हैं इन में !
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है!
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
लाजवाब ।
वाह-वा!
ऐसी ही धुन पर माननीय राजेन्द्र स्वर्णकार जी की एक ग़ज़ल पढ़ी थी बड़ी कशिश लिए थी उसने भी दीवाना बनाया ...आज आपकी पढ़ी ..आपकी ग़ज़ल ने मन खुश कर दिया sadha शब्दों की सुन्दरता के साथ एक चिंतन भी है ,,,गागर में सागर जो सरहानीय है ....
सदियों तक ना प्यास जगे
यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
हर लिहाज से सुंदर रचना
आत्म -आह्वान !
वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी
प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी
अच्छे शेर हैं सतरंगी जी! बधाई
वाह! वाह!क्या बात है !
कितनी सुन्दर बात कह दी हैं इन में !
बहुत ही अच्छी गज़ल कही है!
सदियों तक ना प्यास जगे
यूँ बुझाओ प्यास रे जोगी
टूटे हिम्मत फिर से जुड़ेंगे
खोना मत विश्वास रे जोगी
बहुत अच्छे शेर निकाले हैं सुलभ जी ... सामाजिक स्थिति पर ... दर्शन पर ... हालात पर .. अनेक विषयों को चुवा है आपने अपने शेरों के माध्यम से ... बहुत खूब लिखा है ...
बहुत बढ़िया...मंहगाई पर अच्छी रचना..
बहुत बढ़िया, सुलभ!
सुन्दर भाव बेहतरीन शब्द संयोजन.जीवन के सत्य का एक पहलू. बेहतरीन अभिव्यक्ति
इस रचना को पढ़ कर धन्य हुए हम.
अति सुन्दर ।
अच्छा है।
वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी
प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी
बहुत सुंदर रचना.
बहुत सुन्दर सुलभ..... और हाँ सप्ने बिल्कुल उसी वजह से अभिसप्त है जिस कारण यहं यादोँ का इन्द्र जाल है
शुक्रिया ,
आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आई तो एक साथ कई रचनाएं पढ़ डालीं , जोगी अच्छे भाव लिए है ,लघु कथा और मर नहीं सकते ने जैसे ही द्रवित किया वैसे ही husband wife chatting ने हंसा दिया .अपनी तकनीकी जानकारी को रचना में ढालना .........सार्थक प्रयोग है .
न वे लोग रहे न वह जीवन-शैली। कितना कुछ बदल गया है-कुछ अनचाहे,कुछ मज़बूरन।
सुंदर गजल सजाई जोगी।
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रूपसियों सजना संवरना छोड़ दो?
मंत्रो के द्वारा क्या-क्या चीज़ नहीं पैदा की जा सकती?
पूर्वजों ने अध्यात्म के साथ-साथ कम से कम हफ्ते में एक दिन समाज को स्वस्थ्य रखने औऱ ज्यादा खाने की आदत से बचाए रखने के लिए ही उपवास की नींव रखी थी। पर अब सरकार रोज रोज ही उपवास रखने की आदत समाज के उच्च वर्ग के छोड़कर सबको डालने की नींव रख रही है। वैसै भी हमारे देश में जब 40 फीसदी रोटी के लिए तरसते हैं तो हमारे गले से रोटी नीचे कैसे उत रही है। सरकार यही सोच रही है। यानि हमारे लिए तो यही होने जा रहा है कि कुएं में गिर गए हैं तो जरा सा नहा भी लिया जाए वाली होने जा रही है।
कमाल कर दिया !! वाकई लिखी पते की बात है जोगी !!
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
आज यह गजल दुबारा पढी, तो फिर बधाई दिये बिना रहा न गया।
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ब्लॉगवाणी माहौल खराब कर रहा है?
सपनो को फल मिलेगा बस रख ले ..ये विश्वास रे जोगी
प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी
उपवास का ये बहाना भी उम्दा है...........
अति सुन्दर प्रयास.
हार्दिक बधाई..........
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
वही पुराने भाषण मुद्दे
कुछ भी नहीं ख़ास रे जोगी
प्याज-चीनी सब महंगा है
शुरू करो उपवास रे जोगी
वाह वाह बहुत खूब । शुभकामनायें
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