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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, January 8, 2010

"बिक न जाना ओ पहरुवे हाथ में तुम्हारे कलम है" - EK REPORT

दो दिन सात सत्र ३२ घंटे, डूबा रहा मैं कवि संगम में....



वन्दे मातरम् का नारा है
तिरंगा हमको प्यारा है


जो भरा नहीं है भावों से  बहती जिसमे रसधार नहीं
वो ह्रदय नहीं है पत्थर है जिसमे स्वदेश का प्यार नहीं

और......

जो वक़्त की आंधी से खबरदार नहीं है
वो कुछ और ही है वो कलमकार नहीं है




राष्ट्र जारण धर्म हमारा...

जी हाँ, राष्ट्रीयता से ओत प्रोत कुछ ऐसे ही विचारों से शुरू हुआ राजधानी दिल्ली में "राष्ट्रीय कवि संगम का द्वितीय राष्ट्रिय अधिवेशन." गत दिनाक २ - ३ जनवरी २०१० को कुल सात सत्रों में चले कार्यक्रम में देश  के विभिन्न कोनो से आये
६०० से ज्यादा व्यक्तियों ने भागीदारी की जिसमे लगभग ४०० कवि थे. और इस विहंगम सम्मलेन का गवाह बना छतरपुर, महरौली स्थित पावन अध्यात्म साधना केंद्र.

आपका यह ब्लोगर कवि २ जनवरी को प्रातः ९:१५ को पहुँच चुका था. प्रफुल्लित मन के साथ सुलभ जायसवाल ने बिहार प्रांत से प्रतिनिधित्व किया. ठण्ड और शीत के बावजूद दूर दराज से आये कुछ बुजुर्ग कवियों के बीच परिचय का आदान प्रदान हुआ. सभी अतिथि एवं कवि सदस्यों के लिए भवन में समुचित व्यवस्थित थी.

दो लौह पुरुष, जाने माने वरिष्ट कवि आदरणीय श्री जगदीश मित्तल जी (राष्ट्रीय संयोजक) एवं आदरणीय श्री राजेश चेतन जी (राष्ट्रीय सह-संयोजक) ने गज़ब का संयोजन और संचालन कौशल दिखाया और एक यादगार दो दिवसीय सम्मलेन सफलता पूर्वक संपन्न हुआ.
                         (कवि श्री जगदीश मित्तल)

इस राष्ट्रीय कवि संगम के मार्गदर्शक आदरणीय श्री इन्द्रेश जी हैं. इस आयोजन समिति के कर्मठ सदस्यों ने विभिन्न सत्रों में जिस प्रकार दृश्य बदल बदल कर नियमित रूप से सभी कार्यक्रमों में अपनी सक्रीय भूमिका निभाई ये देख वहां पहुंचे सभी आगंतुक गदगद थे. प्रत्येक सत्र अंतराल के बीच अल्पाहार, भोजन एवं चाय पानी भी नियमित रूप से चलता रहा.  स्वागत समिति और आयोजन समिति के सभी सदस्य बधाई के पात्र हैं. सहयोगी संस्था के रूप में अनुव्रत न्यास, संस्कार भारती, मुस्लिम राष्ट्रिय मंच ने अपनी सहभागिता दे कर कार्यक्रम को स्मरणीय और ऐतिहासिक बना दिया.


मुझे जिनका सानिध्य और आशीर्वाद मिला...
 
(के. सी. सुदर्शन)                (बाबा सत्यनारायण मौर्य)       (कवि गजेन्द्र सोलंकी)   (हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा)

(डा. कुंवर 'बेचैन')    (ओज कवि श्री बलबीर सिंह 'करुण') (श्री प्रेम कुमार धूमल)     (श्री सत्यभूषण जैन )     




    (कवि श्री राजेश चेतन)     (कवि श्री इन्द्रेश कुमार )    (कवि श्री जगदीश मित्तल)

प्रथम दिन के मुख्य अतिथि रहे मुनि श्री ताराचंद जी, मुनि श्री सुमित कुमार जी, पूर्व सरसंघचालाक श्री के.सी. सुदर्शन, प्रसिद्ध हास्यकवि सुरेन्द्र शर्मा, सरदार प्रताप फौजदार(लाफ्टर चैम्पियन), डा. विनय विश्वास,  बाबा सत्यनारायण मौर्य, श्री कृष्ण मित्र, बलबीर सिंह 'करुण' (ओज के कवि)
संचालन : श्री राजेश चेतन, श्री गजेन्द्र सोलंकी, प्रो. अशोक बत्रा 


प्रथम दिवस के आकर्षण - 
  • वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कवियों की भूमिका 
  • पुस्तक विमोचन 
                १. अनुभव के बोल (आचार्य महाप्रज्ञ जी की रचना)
               २. कवि संगम निर्देशिका २०१०
(नोट: इस निर्देशिका का मूल्य है १५० रु. है इसमें हिन्दी के भारतीय कवियों के नाम, पते फोन, इमेल हैं. यदि आप इसे प्राप्त करना चाहते हैं तो मेल करे, आप ब्लोगर साथियों को यह मात्र १०० रु. में मुफ्त डाकखर्च के साथ मैं भेज दूंगा.)
  • कविता का भविष्य - भविष्य की कविता
    "बिक न जाना ओ पहरुवे
    हाथ में तुम्हारे कलम है" -
    कवि श्री रविन्द्र शुक्ल

    एक विस्तृत शोध रिपोर्ट द्वारा डा. विनय विश्वाश (विशिष्ट वक्ता, कवि समीक्षक एवं समालोचक)

    कविता को लेकर एक गभीर चिंतन द्वारा श्री सुरेन्द्र शर्मा (विख्यात हास्यकवि)

  • कविता में राष्ट्रीयता
    राष्ट्र वंदना राष्ट्र भक्ति को समर्पित विशेष प्रस्तुति द्वारा बाबा श्री सत्यनारायण मौर्य

  • मुक्त चिंतन (विशेष प्रस्तुति द्वाराश्री इन्द्रेश कुमार )
  • काव्य प्रस्तुति (चार भागों में चली देर रात्री तक) 


विशेष आभार: श्री संपतमल नाहटा (अनुव्रत न्यास)

द्वितीय दिवस के आकर्षण - 

कविता में छंद और शिल्प का महत्व
विशेष प्रस्तुति -  वरिष्ट शायर व गीतकार डा. कुंवर बेचैन, श्री नरेश शांडिल्य (सम्पादक, अक्षरम गोष्ठी),  डा. लक्ष्मी शंकर वाजपेयी(निदेशक, आकाशवाणी), श्री राजगोपाल सिंह(वरिष्ट गीतकार)

मौन ओढ़े हैं सभी तैयारियां होंगी जरुर 
राख के नीचे दबी चिंगारियां होंगी जरुर.... इस गीत को गया राजगोपाल सिंह जी ने.

डा. लक्ष्मी वाजपेयी ने एक खुबसूरत नज्म. गाया... कितना बेगाना उसे अपना घर लगता है...

इसी बीच डा. कुंवर 'बेचैन' ने एक ग़ज़ल गाकर सभी की मंत्रमुग्ध कर दिया...
जिंदगी यूँ ही चली, यूँ ही चली मीलों तक 
चांदनी चार कदम, धूप चली मीलों तक.....

इस ब्लोगर कवि की खोजी दृष्टि में एक वाकया हुआ, एक वयोवृद्ध कन्नड़ कवि श्री पल्लारामाया कर्नाटक से बड़े कष्टमय यात्रा के साथ दुसरे दिन दिल्ली पहुंचे यह राष्ट्रभक्ति का जूनून ही था जो उन्होंने अपनी मातृ  भाषा कन्नड़ में लिखी कविता की कुछ प्रतियां लेकर आये और मुझसे बोले किसी भी तरह संचालक तक यह पहुंचा दे.  संचालक श्री राजेश चेतन जी ने अति व्यस्त समय में भी कुछ मिनट विस्तार कर तीन अहिन्दी भाषी कवियों को मंच पर ससम्मान बुलाया . और समस्त आंगतुकों को यह बताना जरुरी था की किस प्रकार कवि और कविता के भाव सदैव एक ही रहते हैं, चाहे भाषा कुछ भी हो. श्री पल्लारामया जी ने संस्कार भारती संगठन का प्रतिनिधित्व करते हुए. मातृ वंदना में  अखंड भारत को समर्पित एक सुन्दर पाठ किया. उनके हिन्दी अनुवाद यहाँ है...(लिंक)

राष्ट्र जागरण धर्म हमारा व सम्मान समारोह


श्री इन्द्रेश कुमार (एक विस्तृत व्याख्यान और संस्मरण सुनाये)
श्री प्रेम कुमार धूमल (हिमाचल के मुख्य मंत्री श्री धूमल ने सीमा पर चली लड़ाई और प्रदेश के वीर सपूतों की शौर्यगाथाये सुनाई. साथ ही उन्होंने महाभारत काल और आज कलयुग के सन्दर्भ में रोचक और प्रेरणादायी कथा भी सुनाये.)

सत्यभूषण जैन (मुख्य निदेशक, API  ग्रुप, ने सभी सहयोगियों का अभिवादन किया)
श्री आर. के. अग्रवाल (मुख्य निदेशक, MICRON GROUP)
नरेश शांडिल्य (सम्पादक, अक्षरम गोष्ठी)
श्री सत्यनारायण जटिया (वरिष्ट कवि एवं पूर्व मंत्री )

सम्मान समारोह: 
इस अवसर पर काव्य एवं राष्ट्र भक्ति के क्षेत्र में विशिष्ट योगदानकर्ताओं को सम्मानित किया गया.
वाल्मीकि सम्मान से बाबा सत्यनारायण मौर्य (मुंबई) को.
रसखान सम्मान से दीन मोहम्मद दीन (मैनपुरी) को.
मीराबाई सम्मान से डा. मनोरमा मिश्र (म.प्र.) को.

विशेष आमंत्रित: श्री बांकेलाल गौड़, श्री नंदकिशोर गर्ग, श्री रमेश अग्रवाल
संचालन:  श्री कमलेश मौर्य 'मृदु'
षष्टम सत्र में युवा कवि श्री चिराग जैन ने मंच संचालन कर अपनी सक्रिय भूमिका सिद्ध की. 
विशेष आभार: श्री जगदीश मित्तल 

कलम आज उनकी जय बोल - जय हिंद - जय भारत 
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काव्य प्रस्तुति

संध्या ८ बजे रात्रिभोज के पश्चात शुरू हुआ प्रतीक्षित काव्य पाठ. तकरीबन ३०० कवि मित्रो द्वारा चार सभागार में  अपनी संक्षिप्त प्रस्तुति की गयी.  


 
(बाबा सत्यनारायण 'मौर्या' एवं वरिष्ट कवि श्री देवेन्द्र देव के साथ )

 

इस प्रथम भाग के संचालक रहे कवि श्री अम्बर खरबंदा और अध्यक्षता की श्री देवेन्द्र देव जी ने. कोलकाता से आई  डा. सुष्मिता भट्टाचार्य ने "पुरोषोत्तम पांच" शीर्षक से एक मार्मिक कविता का पाठ किया. संगम विहार दिल्ली के कवि श्री नागेश चंद्रा जी ने खुबसूरत नज़्म कही. उत्तराखंड से आई डा. लक्ष्मी भट्ट ने अपनी मधुर आवाज में एक गढ़वाली गीत सुनाकर सभी को अभिभूत किया. कवि अम्बरीश श्रीवास्तव जी ने अपने अनुभव बांटे. अन्य बहुत से कवियों ने अपनी प्रस्तुति दी.  
चूँकि समयाभाव के कारण सभी ने केवल एक ही रचना सुनाये . रात्री १०:३०  बजे अंतत: वह क्षण भी आया जब मैंने अपनी रचना का पाठ किया और लगभग  १०० श्रोता जिनमे ६५ कवि थे, उनकी दाद बटोरने में कामयाब रहा..

अपने ब्लोगर साथियों के लिए यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ....

फैसले हुए हैं बवालों के बीच
झूटे सबूत सवालों के बीच 



देशी खज़ाना विदेश पहुंचा
सरकारी दौरा हवालों के बीच 



कैसे कैसे सौदे होते हैं यहाँ
जिस्म और दलालों
के बीच 


आगे सुनिए....


आये दिन मज़हबी फसाद
रंजिश सियासी चालों
के बीच 



बेबस आंसू सूखते गए
गालों से रुमालों
के बीच 


और शे'र सुनिए........


तनहा जिंदगी की रातें रौशन है
तेरे यादों के उजालों
के बीच 


और ये आखरी पंक्तियाँ....


'सुलभ' परेशां आजकल है
चंद उलझे ख्यालों के बीच


शुक्रिया..
- सुलभ




26 comments:

डॉ टी एस दराल said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति की है , कवि संगम की।
सोच कर ही लग रहा है की कितना शानदार समागम रहा होगा।
आने का तो अपना भी बड़ा मूड था , लेकिन ठीक उसी समय एक अंतर्राष्ट्रीय मेडिकल कौन्फेरेंस में होने की वज़ह से आ नहीं सका।
फिलहाल, आपसे ही विवरण सुनकर संतुष्टि कर लेंगे।
जगदीश मित्तल जी और राजेश चेतन जी को हार्दिक बधाई।

Mithilesh dubey said...

भाई आपकी प्रस्तुति लाजबाव रही , पर शिकायत ये है इसकी सूचना पहले दी होती तो नहीं कुछ तो सुनने तो जरुर पहुचा जाता।

रविकांत पाण्डेय said...

विवरण पढ़कर अच्छा लगा। ठंड के बावजूद कार्यक्रम सफ़ल रहा, ऐसी निष्ठा प्रसंशनीय है।

अजय कुमार said...

अच्छी कविता तथा बहुत अच्छी रिपोर्ट

Mansoor ali Hashmi said...

'सुलभ' कैसे तुम इतने हैरान हो?
शेअर , सोना-चांदी उछालो के बीच!

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर ढंग से आप ने सारी रिपोर्ट दी, बहुत अच्छा लगा. धन्यवाद

गौतम राजऋषि said...

दिलचस्प रपट सुलभ जी...कुछ रिकार्डिंग भी लगा देते तो मजा आ जाता...!

Udan Tashtari said...

बहुत विस्तृत रिपोर्ट और आपकी रचना एवं चित्र देख आनन्द आ गया. आभार.

संगीता पुरी said...

इतनी विस्‍तृत रिपोर्ट के साथ इस कार्यक्रम को साझा करने के लिए आपका धन्‍यवाद !!

मनोज कुमार said...

वाह..बहुत खूव सतरंगी भाई। छा गए। अच्छी रपट। कई लोगों से चित्रों के माध्यम से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। और आपकी ग़ज़ल .. लाजवाब।

Khushdeep Sehgal said...

सुलभ भाई,
सतरंगी रिपोर्टिंग के लिए साधु-साधु...

जय हिंद...

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छा विवरण।

Ambarish Srivastava said...

प्रिय मित्र सुलभ जायसवाल जी,
राष्ट्रीय कवि संगम के द्वितीय राष्ट्रीय अधिवेशन पर इतनी प्रभावी व सार्थक रिपोर्ट प्रकाशित करने के लिए बहुत-बहुत बधाई व साधुवाद!
प्रतिक्रिया स्वरुप .........
नित नव पंख लगें तुम्हें, उड़ो गगन भरपूर,
सरस्वती की हो कृपा लक्ष्य रहे ना दूर........

हमने वहां पर काव्य सत्र में नव वर्ष की शुभकामनायें छंदबद्ध दोहों के माध्यम से प्रस्तुत की थीं उन्हें आपको प्रेषित कर रहा हूँ |

“स्वागत है नव वर्ष का”
ज्यों वृक्षों की डालियाँ, कोपल जनैं नवीन |
आये ये नव वर्ष त्यों , जैसे मेघ कुलीन || 1

उजियारा दीखे वहाँ, जहाँ जहाँ तक दृष्टि |
सरस वृष्टि होती रहें, हरी भरी हो सृष्टि || 2

सपने पूरे हों सभी, मन में हो उत्साह |
अलंकार रस छंद का, अनुपम रहें प्रवाह || 3

अभियंत्रण साहित्य संग, सबल होय तकनीक |
मूल्य ह्रास अब तो रुके, छोड़ें अब हम लीक || 4

गुरुजन गुरुतर ज्ञान दें, शिष्य गहें भरपूर |
सरस्वती की हो कृपा, लक्ष्य रहें ना दूर || 5

सबको सब सम्मान दें, जन जन में हो प्यार |
मातु पिता से सब करें, सादर नेह दुलार || 6

बड़े बड़े सब काज हों, फूले फले प्रदेश |
दुनिया के रंगमंच पर, आये भारत देश || 7

कार्य सफल होवें सभी, आये ऐसी शक्ति |
शिक्षित सारे हों यहाँ, मुखरित हो अभिव्यक्ति|| 8

बैर भाव सब दूर हों, आतंकी हों नष्ट |
शांति सुधा हो विश्व में , दूर रहें सब कष्ट || 9

प्रेम सुधा रस से भरे, राजतन्त्र की नीति |
दुःख से सब जन दूर हों, सुख की हो अनुभूति|| 10

सुरभित होवें जन सभी, अपनी ये आवाज़ |
स्वागत है नव वर्ष का, नित नव होवें काज || 11

अंत में सभी के लिए संदेश........

अपने इस नववर्ष में, हम सब आयें संग |
बैर द्वेष दुर्भाव से, मिलकर छेड़ें जंग || 12

अनुपम आये वर्ष ये, अम्बरीष की आस ||
अब सब कुछ है आप पर, मिलकर करें प्रयास || 13

--अम्बरीष श्रीवास्तव
९१, आगा कालोनी , सिविल लाइंस
सीतापुर २६१००१
9415047020

email : ambarishji@gmail.com

website : www.ambarishsrivastava.com

अविनाश वाचस्पति said...

काव्‍यरंगी रिपोर्ट सुलभ कराने के लिए धन्‍यवाद सतरंगी। विवरण लुभा गया, हमें वहां पहुंचा गया। बिना गये ही आनंद आ गया। जबकि व्‍यस्‍ततावश पहुंचना संभव नहीं हो सका था बिल्‍कुल समीप होते हुए भी।

Asha Joglekar said...

राष्ट्रभाषा और राष्ट्र प्रेम से ओत प्रोत इस अनूय़े कवि सम्मेल न की रिपोर्ट चेतन जी के ब्लॉग पर भी पढी ।

राख के नीचे दबी चिंगारियों को हवा लगने दो
बहुत रख चुके मौन अब मुखर होने दो ।
आपकी कविता भी बहुत अच्छी लगी

फैसले हुए हैं बवालों के बीच
झूटे सबूत सवालों के बीच
देशी खज़ाना विदेश पहुंचा
सरकारी दौरा हवालों के बीच

Unknown said...

JAAN KAR ACHHA LAGA

ज़मीर said...

Namaskar bhai, ghar baithe maine bi sara vivran jaan liya. Apko anek dhanyawad .

शमीम said...

बहुत बढ़िया प्रस्तुति । आभार ।

Satish Saxena said...

लीक से हटकर, आपकी परिश्रमपूर्ण इस पोस्ट के लिए शुभकामनायें !

दिगम्बर नासवा said...

सुलभ जी ......... आपने इतना विहंगम दृश्य खैंचा है इस कवि सम्मेलन का ....... सोच कर रोमांचित हो रहा हूँ ........ इतने सारे दिग्गज एक ही मंच पर ......... सच में समा बँध गया होगा ....... और आपने भी बाहित लाजवाब रचना पढ़ी है ....... इतने बेहतरीन शेरॉन को दाद तो मिलनी ही है .........

रचना दीक्षित said...

कवि सम्मलेन का इतना अच्छा विवरण दिया है की ठण्ड में घर बैठे बैठे ही वहां का सारा हाल जन लिया यही तो फ़ायदा है ब्लोगर बंधुयों का आभार

नीरज गोस्वामी said...

सुलभ जी मैंने इस सम्मलेन के बारे में पहले भी कहीं पढ़ा था लेकिन आपने बहुत विस्तृत जानकारी दी. खुश किस्मत हैं आप जो इन साहित्य सेवकों के बीच दो दिन रहे उन्हें देखा, सुना और मिले...अंत में आपकी लिखी ग़ज़ल आज के परिवेश का कच्चा चिठ्ठा है... हर शेर अपने आप एक कहानी समेटे हुए है...बहुत बहुत बधाई...
नीरज

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

कवि संगम के बारे में जानकर वहाँ न पहुंचपाने का दुख सा हो रहा है।

--------
अपना ब्लॉग सबसे बढ़िया, बाकी चूल्हे-भाड़ में।
ब्लॉगिंग की ताकत को Science Reporter ने भी स्वीकारा।

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत शानदार रपट.

RAJ SINH said...

राष्ट्र धर्म ही जहां प्रेरणा हो और उद्देश भी ................ऐसा आयोजन .
रपट के लिए धन्यवाद और आपकी कविता बहुत ही खास लगी . आज तो पूरा देश इन्हीं सवालों से जूझ रहा है .

हरकीरत ' हीर' said...

सुलभ जी यह तो बहुत बड़ा समागम था .....४०० कवि .....और ऐसे महारथियों के बीच कविता पाठ का सौभाग्य मिलना गौरव की बात है .....आपकी ग़ज़ल भी माशाल्लाह है तो क्यों न दाद मिले .....बहुत बहुत बधाई ......!!

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "