आज ठण्ड और कोहरा इतना ज्यादा है की पोस्ट लिखना तो दूर पोस्ट पढना भी मुश्किल हो रहा है.
शुक्र है एक छोटी सी कविता पढने को मिली, तो मैंने भी आज एक छोटी कविता कह दी.
शुक्र है एक छोटी सी कविता पढने को मिली, तो मैंने भी आज एक छोटी कविता कह दी.
सुबह देर तक
बंद रहे किवाड़
ठण्ड में सूरज भी कहाँ निकला
बंद रहे किवाड़
ठण्ड में सूरज भी कहाँ निकला
-सुलभ
21 comments:
अब लेनी होगी सूरज को एक कैजुअल लीव।
सूरज नहीं निकला सुबह यहाँ भी ...!!
वाह, सचमुच छोटी है।
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएँ।
घुघूती बासूती
हाँ ! यहाँ भी नहीं निकला.... फोन किया तो पता चला कि सूरज को भी ठण्ड लग गई है.... ब्लोअर चला के लेटा है....
वाह सुलभ भाई, ललित जी की अर्ध कविता पूर्ण कर दी आपने !
दिनभर अलाव का
करते रहे जुगाड़ !
बादलों के बीच सूरज कब ढला,
पता ही न चला !
बहुत अच्छा लिखा है आपने।
मैं तो एक सप्ताह के 24X7 बोनफायर के बाद आज ही लौटा हूँ. यहाँ वैसी ठंढ नहीं तो मिस कर रहा हूँ :(
बाकी बस अपना भी कुछ चुनिन्दा जगहों पर ही जाना होता है. ये टेम्पलेट बेहतर पठनीय है.
कहीं ऐसा तो नहीं कि पंछी
दाने-दाने को मोहताज हो गए!
आए तो होंगे किवाड़ खुलने के इतंजार में।
---आपकी छोटी कविता और भी बहुत कुछ कहती है।
-बधाई.
नही निकला?? चलो पहले उसे निकालो, यह भी काम चोर होता जा रहा है... हम लोगो को देख कर
चित्र और क्षणिका दोनों ही सुन्दर हैं.
महवीर शर्मा
बहुत बढ़िया!!
अच्छा कहा, आपने दृश्यावली बदल के रख दी......पर मुझे शिल्पकार जी के शब्दों ने गहराई से प्रभावित किया...शुक्रिया एक उम्दा रचना और रचनाकार से परिचित कराने के लिए.
@प्रकाश पाखी जी,
यही तो हमारी ब्लोगरी है. अपना ब्लॉग धर्म.
बाती से बाती जलाते चलो
प्रेम की गंगा बहाते चलो...
तीन पंक्तियों की इस कविता में आपने इतनी बड़ी बात कह दी जो शायद ५ पन्नों में भी कहना मुश्किल होता. मैं बदला नही चुका रहा, शायद आपको स्वयं भी इसका एहसास न हो की आपकी यह रचना कितनी बहु आयामी हो गयी है (मुझे क्षमा कीजिएगा अगर आप आहत हुए हों मेरी बात से) . ऐसी रचनाएँ रची नहीं जातीं बल्कि ऊपर वाला शायद उपहार स्वरूप इन्हें सीधे हमारे दिमाग में उतार देता है.
आप मेरे ब्लॉग पर आये, कमेन्ट दिया और ऐसे अल्फाज़ में तारीफ की कि मैं पानी-पानी हो गया. यार, इतनी तारीफों का हकदार नहीं हूँ मैं. ऐसा न हो कि जब गिरूँ तो कोई सम्भालने वाला भी न हो.
@सर्वात एम. 'जमाल' जी,
आप एक सिद्धहस्त गज़लकार हैं, ऐसा मुझे लगता है. और मैंने जो भी शब्द तारीफ़ में कहे शे'र पढने के बाद वह मेरी प्रथम प्रतिक्रया मात्र थी.
आपको मेरी कविता पसंद आई, बहुत खुश हूँ. आप ठीक कहते हैं, कविता अवतरित होती है. हम हरदिन सोचकर नहीं लिख सकते.
आप जैसे वरिष्ट और अनुभवी साथी हमारे साथ चलेंगे तो सफ़र आसन ही होगा न, गिरने की नौबत नहीं आएगी...हा हा (गुस्ताखी माफ़ हो )
बहुत शुक्रिया आपका.
kya baat kahi hai
kam shabdon mein thand bata di
nav varsh ki hardik shubhkamnaayen
वाह ......... ये ग़ज़ब की रचना है .......... शशक्त लिखा है ......... सुलभ जी ......... नव वर्ष मंगल मे हो .......
कुछ न कहके भी कितना कुछ कह डाला।
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बारिश की वो सोंधी खुश्बू क्या कहती है?
क्या सुरक्षा के लिए इज्जत को तार तार करना जरूरी है?
बहुत सुन्दर.
छोटी सी ठंडी एक कविता..ठिठुरती ठंड वाह .
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