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Sunday, December 6, 2009

राह चलते एक छोटी सी ग़ज़ल




आंधियां जब तेज रही थी
टहनियों में खलबली थी

दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी

खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी

एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो  बड़ी हसीं थी 

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी

सब ने  अपने  होश गंवाये 
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी 

तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब  एक सड़क खुली थी


- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी' 
(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है)

34 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी

तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी

बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ......

संगीता पुरी said...

बहुत खूबसूरत रचना !!

अनिल कान्त said...

उस हुस्न वाली की बातें मियाँ बड़ी पसंद आईं और उसके रूप सौंदर्य का उल्लेख आपने कमाल किया है.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
--वाह! क्या खूब..

Ambarish said...

antim do lines achhi lagi...

दिगम्बर नासवा said...

आंधियां जब तेज रही थी
टहनियों में खलबली थी

दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी

ग़ज़ब के शेर सुलभ जी ........... पहले दोनो शेर कमाल हैं .... सच कहा है आँडयान जब चलती हैं अच्छे अच्छों को उखाड़ देती हैं .... फिर चाहे वो व्क़्त की आँधी ही क्यों ना हो .........

स्वप्न मञ्जूषा said...

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी

सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी

तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी

are sabhi sher kamaal ke lage...are bas kamaal kiya tumne sulabh...
mere paas dekho na tareef ke liye shabd kam pad rahe hain...
sahaj shabdon mein sahaj baatein kah gaye ho jo bas dil mein utar gayi hain...
lajwaab ..
khush raho...
didi...

राज भाटिय़ा said...

सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी

तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
क्या बात है जी बहुत जोर दार

Mansoor ali Hashmi said...

छोटी ग़ज़ल में बात बड़ी है,
शाखाएँ फ़लक पे जड़ें जमी में.

[[यानि मत्ला फ़लक पे मक्ता जमी में.]]

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@Mansoor Ali

वाह! मंसूर हाशमी जी,
आप भी न अपने अंदाज में
नब्ज टटोलते हैं.

मनोज कुमार said...

बहुत खूबसूरत

Rajeysha said...

(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है) हमें आपकी यह पंक्‍ि‍त बहुत भली लगी क्‍योंकि‍ यही हमारा हाल है।

Dr. kavita 'kiran' (poetess) said...

(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है) ye caption jald hate hum yahi dua karte hain sulabh.hamare blog per aane ka shukriya.aage bhi aate rahen.

Urmi said...

एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी..
वाह वाह क्या बात है! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

रंजू भाटिया said...

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी

बहुत सुन्दर गजल लगी यह शेर विशेष रूप से पसंद आया ..शुक्रिया

डॉ टी एस दराल said...

आंधियां जब तेज रही थी
टहनियों में खलबली थी

दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी

बहुत खूब।

Mohammed Umar Kairanvi said...

मैं आपकी निम्‍न पंक्तियों को बार-बार पढ रहा हूँ, लगता है मैं कही खो गया, ऐसा क्‍यूँ हो रहा है मेरे साथ समझ नहीं पा रहा,

खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी

रंजना said...

WAAH !!! BAHUT BAHUT SUNDAR MANOHARI RACHNA.....HAR SHER KHOOBSOORAT !!

हरकीरत ' हीर' said...

खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी

ओये होए ....बहुत खूब.....!!

एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी

वाह जी मुबारकां ......!!

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी

सूरज को भी बधाई जी डूबने के लिए ....और आपको भी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए .....!!

नीरज गोस्वामी said...

सुलभ जी अच्छा प्रयास है...रदीफ़ और काफिये का खूब निर्वाह हुआ है...भाव बढ़िया हैं ...लिखते रहें बहर का भी अनुमान हो जायेगा...जब आप लिखते हैं तो उसे किसी धुन में पिरो कर गायें, जहाँ बे बहर होंगे पता लग जायेगा...
नीरज

alka mishra said...

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी

ye sher sabse achchhaa hai

सदा said...

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी !

हर शब्‍द अपना ओज लिये हुये, हर पंक्ति निखरी हुई एक बेहतरीन गजल, शुभकामनायें ।

shama said...

Dua karti hun,aisee khuli sadak hamesha nazar aa jay!

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

"अर्श" said...

बह'र का इल्म ना होते हुए भी जिस तरह से आपने ग़ज़ल में रदीफ़ और काफीये का निर्वाह किया है .. और कहन में जो खूबी पैदा की है वो काबिले गौर और तारीफ की बात है ... निरंतर लिखते रहें ,... बहा'र में खुद आयेंगे ... जैसा की ऊपर नीरज जी ने कहा है वेसे करें और खुछ हो तो आप अभी छोटी बह'रों पे खूब शे'र कहें और बराबर कहें... आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता ...

ग़ज़ल अछि लगी मुझे

अर्श

Nirbhay Jain said...

खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी

एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी

bahut hi sundar gazal

Chandan Kumar Jha said...

बहुत सुन्दर !!!!!!!!!!

Prem Farukhabadi said...

दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी

बहुत खूब!!

Prem Farukhabadi said...

दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी

बहुत खूब!!

NISHEETH KAVI said...

Gazal achchi hai, jahan tak bahar ki baat hai-vaise main bhi koi master nahi hon par dhyan rahe ki agar gungunane men khinch-tan na karni pade to janiye bahar men hi hogi.Doosra dhayan rahe ki laghu(jaise"ki") ki 1 matra deergh (jaise"kee")ki 2 matra jodte huye sabhi laino ki matraen gine barabar hona chahiye.Akhiri sher men pahli lain men- 2+1+1+1+2+2+1+1+2+1+1+2=17
2+2+1+1+2+1+1+1+1+1+2+2=17 tathapi gungunanen men atakti hai.
shesh kisi mahir ki salah le sakte hain.

Alpana Verma said...

सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी

waah!waah!
taajub hai..main ne yah gazal kaise nahin padhi thi ab tak.
bahut achche sher hain.

Unknown said...

दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
बहुत खूब बारीकी भरा आकलन !

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

सुलभ जी,
यहां ज्यादातर तो बहर में ही नज़र आ रहा है.
फिर भी मुकम्मल नालिज़ के लिये
उस्ताद से मश्वरा कर लेने में कोई हर्ज़ नही है
ये शेर खूबसूरत है-
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
और-
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
इस शेर को चाहें तो यूं करके बहर में कर सकते हैं-
सुबह देर तक सोया सूरज, जाड़े की एक रात बड़ी थी
या
सुबह देर से आया सूरज, जाड़े की एक रात बड़ी थी

शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

gumnaam pithoragarhi said...

bahut achchhe bhav bhare hain rachna me............ par gazal ke liye bahr hona hi chahiy kya ....
bhaav ya bahar

gumnaam pithoragarhi said...

bahut achchhe bhav bhare hain rachna me............ par gazal ke liye bahr hona hi chahiy kya ....
bhaav ya bahar

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "