आंधियां जब तेज रही थी
टहनियों में खलबली थी
दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'
(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है)
(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है)
34 comments:
सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ......
बहुत खूबसूरत रचना !!
उस हुस्न वाली की बातें मियाँ बड़ी पसंद आईं और उसके रूप सौंदर्य का उल्लेख आपने कमाल किया है.
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
--वाह! क्या खूब..
antim do lines achhi lagi...
आंधियां जब तेज रही थी
टहनियों में खलबली थी
दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
ग़ज़ब के शेर सुलभ जी ........... पहले दोनो शेर कमाल हैं .... सच कहा है आँडयान जब चलती हैं अच्छे अच्छों को उखाड़ देती हैं .... फिर चाहे वो व्क़्त की आँधी ही क्यों ना हो .........
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
are sabhi sher kamaal ke lage...are bas kamaal kiya tumne sulabh...
mere paas dekho na tareef ke liye shabd kam pad rahe hain...
sahaj shabdon mein sahaj baatein kah gaye ho jo bas dil mein utar gayi hain...
lajwaab ..
khush raho...
didi...
सब ने अपने होश गंवाये
ऐसी तो उसकी जादूगरी थी
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
क्या बात है जी बहुत जोर दार
छोटी ग़ज़ल में बात बड़ी है,
शाखाएँ फ़लक पे जड़ें जमी में.
[[यानि मत्ला फ़लक पे मक्ता जमी में.]]
@Mansoor Ali
वाह! मंसूर हाशमी जी,
आप भी न अपने अंदाज में
नब्ज टटोलते हैं.
बहुत खूबसूरत
(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है) हमें आपकी यह पंक्ित बहुत भली लगी क्योंकि यही हमारा हाल है।
(लेखक को gazal बहर की जानकारी का अभाव है) ye caption jald hate hum yahi dua karte hain sulabh.hamare blog per aane ka shukriya.aage bhi aate rahen.
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी..
वाह वाह क्या बात है! बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
बहुत सुन्दर गजल लगी यह शेर विशेष रूप से पसंद आया ..शुक्रिया
आंधियां जब तेज रही थी
टहनियों में खलबली थी
दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
बहुत खूब।
मैं आपकी निम्न पंक्तियों को बार-बार पढ रहा हूँ, लगता है मैं कही खो गया, ऐसा क्यूँ हो रहा है मेरे साथ समझ नहीं पा रहा,
खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी
WAAH !!! BAHUT BAHUT SUNDAR MANOHARI RACHNA.....HAR SHER KHOOBSOORAT !!
खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी
ओये होए ....बहुत खूब.....!!
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी
वाह जी मुबारकां ......!!
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
सूरज को भी बधाई जी डूबने के लिए ....और आपको भी इस सुंदर ग़ज़ल के लिए .....!!
सुलभ जी अच्छा प्रयास है...रदीफ़ और काफिये का खूब निर्वाह हुआ है...भाव बढ़िया हैं ...लिखते रहें बहर का भी अनुमान हो जायेगा...जब आप लिखते हैं तो उसे किसी धुन में पिरो कर गायें, जहाँ बे बहर होंगे पता लग जायेगा...
नीरज
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
ye sher sabse achchhaa hai
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी !
हर शब्द अपना ओज लिये हुये, हर पंक्ति निखरी हुई एक बेहतरीन गजल, शुभकामनायें ।
Dua karti hun,aisee khuli sadak hamesha nazar aa jay!
http://shamasansmaran.blogspot.com
http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com
बह'र का इल्म ना होते हुए भी जिस तरह से आपने ग़ज़ल में रदीफ़ और काफीये का निर्वाह किया है .. और कहन में जो खूबी पैदा की है वो काबिले गौर और तारीफ की बात है ... निरंतर लिखते रहें ,... बहा'र में खुद आयेंगे ... जैसा की ऊपर नीरज जी ने कहा है वेसे करें और खुछ हो तो आप अभी छोटी बह'रों पे खूब शे'र कहें और बराबर कहें... आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता ...
ग़ज़ल अछि लगी मुझे
अर्श
खुद को घायल पाया हमने
हुस्न से जब नज़र मिली थी
एक मुलाक़ात में दिल दे बैठे
नाजनीन वो बड़ी हसीं थी
bahut hi sundar gazal
बहुत सुन्दर !!!!!!!!!!
दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
बहुत खूब!!
दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
बहुत खूब!!
Gazal achchi hai, jahan tak bahar ki baat hai-vaise main bhi koi master nahi hon par dhyan rahe ki agar gungunane men khinch-tan na karni pade to janiye bahar men hi hogi.Doosra dhayan rahe ki laghu(jaise"ki") ki 1 matra deergh (jaise"kee")ki 2 matra jodte huye sabhi laino ki matraen gine barabar hona chahiye.Akhiri sher men pahli lain men- 2+1+1+1+2+2+1+1+2+1+1+2=17
2+2+1+1+2+1+1+1+1+1+2+2=17 tathapi gungunanen men atakti hai.
shesh kisi mahir ki salah le sakte hain.
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
waah!waah!
taajub hai..main ne yah gazal kaise nahin padhi thi ab tak.
bahut achche sher hain.
दरख़्त वही जगह पर रहे
जड़े जिनकी खूब गहरी थी
बहुत खूब बारीकी भरा आकलन !
सुलभ जी,
यहां ज्यादातर तो बहर में ही नज़र आ रहा है.
फिर भी मुकम्मल नालिज़ के लिये
उस्ताद से मश्वरा कर लेने में कोई हर्ज़ नही है
ये शेर खूबसूरत है-
तंग गलियों से जब मैं निकला
देखा तब एक सड़क खुली थी
और-
सुबह तक डूबा रहा सूरज
जाड़े की एक रात बड़ी थी
इस शेर को चाहें तो यूं करके बहर में कर सकते हैं-
सुबह देर तक सोया सूरज, जाड़े की एक रात बड़ी थी
या
सुबह देर से आया सूरज, जाड़े की एक रात बड़ी थी
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
bahut achchhe bhav bhare hain rachna me............ par gazal ke liye bahr hona hi chahiy kya ....
bhaav ya bahar
bahut achchhe bhav bhare hain rachna me............ par gazal ke liye bahr hona hi chahiy kya ....
bhaav ya bahar
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