अनजान शहर में मिले खजाने बहुत हैं
खेल किस्मत को अभी दिखाने बहुत हैं
हर कदम टूटते हैं सैकडो दिल यहाँ
टूटे बिखरे दिलों के अफ़साने बहुत हैं
कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
शायद चलती रहे महफिल देर रात तक
तेरे सामने साकी अभी पैमाने बहुत हैं
पत्थरों से मुलाक़ात अब रोज़ की बात है
आँखों ने भी बसाए ख्वाब सुहाने बहुत हैं
किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
- सुलभ जायसवाल
25 comments:
किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
--वाह, कमाल का शेर है!
बहुत सुंदर ....
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
वाकई हर आदमी एक जमाना है... अच्छी बात पकड़ी है डियर,,, बधाई।
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
गहरी बात है।
अच्छी रचना। बधाई।
पसंद दफ्तर में चपका दी थी, टिप्पणी अब कर रहा हूं..बहुत खूब लिखा है।
शौचालय से सोचालय तक
कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं
बहुत खूब ! अच्छी तुलना है ।
किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
बहुत सुंदर जी, आप ने अपनी इस गजल मै सच व्याण किया है
बहुत उम्दा!!
यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
आने वाला साल मंगलमय हो।
पत्थरों से मुलाकात अब रोज की बात है,
आंखों ने भी बसाए ख्वाब सुहाने बहुत हैं ।
बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां ।
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
bahut khoob!
bahut hi sundar gazal kahi hai!
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
waah!waah!!kya baat kahi hai!
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उन को ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
आप तो सहज ही सुलभ हैं ........
आदरणीय समीर लाल जी,
नव वर्ष के मौके पर आपका सन्देश हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा. मैं भी यथा संभव प्रचार और नए लोगों को जोड़ने में सहयोग करता हूँ.
आप सभ ब्लोगर साथियों को नए साल की शुभकामनाये!!
नव वर्ष शुभ हो !
उम्दा रचना !
sundar gajal..
कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं
wah!!
अच्छा प्रयास है सुलभ जी। लिखते समय तनिक गुनगुना कर देख लें तो और बेहतर बनेगी ग़ज़ल।
@गौतम जी,
आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है. ग़ज़ल मीटर की तरफ ध्यान देना जरुरी है.
सुलभ जी आज चॅट पर नही मिल सके इसलिए ........ ब्लॉग के ज़रिए ही ........ आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ........
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
Bahut khub.
Nav varsh ki dheron shubkamnayen.
every line have own significance and well touch with our life... nice
बहुत बेहतरीन रचना गंभीर भाव लिए हुए इसके आगे कुछ कह नहीं सकती क्योंकि मैं निशब्द हूँ
एक बहुत सुंदर प्रस्तुति और
नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कमाना के साथ
सादर रचना दिक्षित
नववर्ष पर आपको हार्दिक शुभकामनाये और ढेरो बधाई
कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं ...
YE SHER BAHUT KAMAAL KA HAI .....
Sulabh, Nav Versh Ki Shubh Kaamnayein, sunder she'r hain,
किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
Badhiya Ghazal hai .....Surinder
nice
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