ये साल भी अब जाने जाने को है. वर्ष २००९ बहुत से रोचक, अद्भूत, जोखिम भरे दिन मुझे दिखा गए. इन सबसे ऊपर कुछ कठोर अनुभवों से साक्षात्कार हुआ. नौकरी, स्वरोजगार और महानगर की आपाधापी में कुछ खोया और बहुत कुछ पाया भी. आज कल बहुत राहत महसूस कर रहा हूँ. पिछले साल और इस साल जून तक आजीविका का संकट गहराया हुआ था. व्यक्तित्व निखारना और सतत संघर्ष करना मुझे शुरू से पसंद है, हर साल के अंत में एक बड़े लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में ठोस कार्ययोजना बनाना मेरी प्राथमिकता होती है. दोस्ती, रिश्तेदारी, दुनियादारी और पर्यटन में मैं बहुत मशरूफ रहता हूँ. शायद यह भी एक कारण है धीमे गति से लक्ष्य की और बढ़ना. मगर मैं खुश हूँ मेरे चाहने वाले दिन प्रतिदिन बढ़ रहे हैं. मैं भी संचार के विभिन्न माध्यमों से रिश्तों की उष्मा बनाये रखने की कोशिश करता हूँ. इस साल की उपलब्धि है "सयंमित रह कर कैसे सूझबूझ से निर्णय लेने चाहिए ये सब मुझे सिखने को मिला..." और अपने राज्य बिहार में एक बड़े अस्पताल और एक व्यावसायिक प्रशिक्षण अकादमी की स्थापना हेतु एक समिति से जुड़ गया. मानव ही इश्वर है, और मानव सेवा मेरा धर्म इसी सूत्र पर जीवन संघर्ष और सफलताओं का दौर चलता रहे. परमेश्वर से कुछ ऐसी ही कृपा चाहता हूँ.
चिटठाजगत में यूँ तो मैं पिछले साल जुड़ गया था. ब्लोग्वानी में इस साल अगस्त माह में शामिल होकर नियमित ब्लोगरी की. जहाँ जरुरत समझा वहां बहस भी किया. और आप सभी का भरपूर स्नेह और कुछ संस्थानों से मान सम्मान पाया. चाह तो रहा हूँ की बहुत सारी बाते बता दूँ, लेकिन लम्बी पोस्ट लिखने के पक्ष में नहीं हूँ. आजकल ग़ज़ल सिखने और कहने में जोर है. लेकिन मैं मूलतः हास्य व्यंग्य विधा का कवि हूँ (क्षमा कीजियेगा जब तक आप मान रहे है तभी तक मैं कवि हूँ ). आज से 9-10 साल पूर्व मैं दैनिक अखबारों और मासिक पत्रिकाओं में रचनाये भेजता था. अधिकांश अस्वीकृत कर लौटाई जाती थी. जिस दिन मैं छपता लौटरी जीतने जैसी ख़ुशी होती...
आज सुनिए मेरी पहली हास्य कविता...(साल 2001 में रचित)
नयी कमीज पर खुशबू छिड़का
सज धज कर नए जूते पहना
तैयार होकर जैसे ही
मैं निकला घर से बाहर
पिताजी ने रास्ता रोका पास मेरे आकर
मुझसे बोले - बेटा अब तो तू बड़ा हो गया है
कद में मेरे सामने खड़ा हो गया है
अपने भविष्य की चिंता क्यों नहीं करता है
दिनभर सिर्फ आवारागर्दी करता है
क्या तू तरक्की नहीं चाहता है
यूँ ही घर में बेकार रहना चाहता है
अरे! अपने बाप की इज्ज़त का कुछ तो ख्याल कर
जब पढ़ाई लिखाई छोर दी है
तो कोई अच्छा काम कर.
और सुन ये लेखन वेखन का चक्कर छोड़ दे
इससे नहीं होगा तेरा भला
जा किसी धंधे में जाकर
हाथ पैर चला.
मैं बोला - पिताजी आप मुझे नाहक डांट रहें हैं
मेरे सुन्दर भाग्य को क्यूँ काट रहे हैं.
आप फिकर मत करिए
मेरा भविष्य है रंगीन
करोडपति बनने में बचे हैं कुछ ही दिन.
पिछले साल कालिज के नववर्ष समारोह में
जब मैंने प्रेमरस से भरा एक गीत गाया था
तब एक करोडपति कन्या का
दिल मुझ पर आया था.
पहली मुलाक़ात से ही कायल है
अब मेरे इश्क में घायल है
बहुत बड़े घर की बेटी है
दिखने में सुन्दर, दिमाग की मोटी है
मैंने भी उसे यह बता दिया
तुम्हे ही जीवन संगिनी बनाऊंगा
यह भरोसा जता दिया
अब बस आपको भी
अपना फ़र्ज़ निभाना है
एक दो चक्कर उसके घर के लगाना है
विवाह पूर्व के लड्डू बांटकर
एक रस्म निभाना है
जल्द ही वो बहु बन कर
घर आपके आएगी
साथ में माल मत्ता
पूरा लाएगी
अपनी किस्मत तो एकदम बुलंद
दिखती है
सब कुछ है हाथ में बना बनाया तैयार
बाईगोड कन्या तो है मेरे सर पर सवार
पिताजी टाइम हो गया
वो इंतज़ार में होगी
उससे मिलने जाना है
नयी फिलम आयी है
सिनेमा भी जाना है.
सज धज कर नए जूते पहना
तैयार होकर जैसे ही
मैं निकला घर से बाहर
पिताजी ने रास्ता रोका पास मेरे आकर
मुझसे बोले - बेटा अब तो तू बड़ा हो गया है
कद में मेरे सामने खड़ा हो गया है
अपने भविष्य की चिंता क्यों नहीं करता है
दिनभर सिर्फ आवारागर्दी करता है
क्या तू तरक्की नहीं चाहता है
यूँ ही घर में बेकार रहना चाहता है
अरे! अपने बाप की इज्ज़त का कुछ तो ख्याल कर
जब पढ़ाई लिखाई छोर दी है
तो कोई अच्छा काम कर.
और सुन ये लेखन वेखन का चक्कर छोड़ दे
इससे नहीं होगा तेरा भला
जा किसी धंधे में जाकर
हाथ पैर चला.
मैं बोला - पिताजी आप मुझे नाहक डांट रहें हैं
मेरे सुन्दर भाग्य को क्यूँ काट रहे हैं.
आप फिकर मत करिए
मेरा भविष्य है रंगीन
करोडपति बनने में बचे हैं कुछ ही दिन.
पिछले साल कालिज के नववर्ष समारोह में
जब मैंने प्रेमरस से भरा एक गीत गाया था
तब एक करोडपति कन्या का
दिल मुझ पर आया था.
पहली मुलाक़ात से ही कायल है
अब मेरे इश्क में घायल है
बहुत बड़े घर की बेटी है
दिखने में सुन्दर, दिमाग की मोटी है
मैंने भी उसे यह बता दिया
तुम्हे ही जीवन संगिनी बनाऊंगा
यह भरोसा जता दिया
अब बस आपको भी
अपना फ़र्ज़ निभाना है
एक दो चक्कर उसके घर के लगाना है
विवाह पूर्व के लड्डू बांटकर
एक रस्म निभाना है
जल्द ही वो बहु बन कर
घर आपके आएगी
साथ में माल मत्ता
पूरा लाएगी
अपनी किस्मत तो एकदम बुलंद
दिखती है
सब कुछ है हाथ में बना बनाया तैयार
बाईगोड कन्या तो है मेरे सर पर सवार
पिताजी टाइम हो गया
वो इंतज़ार में होगी
उससे मिलने जाना है
नयी फिलम आयी है
सिनेमा भी जाना है.
- सुलभ जायसवाल
14 comments:
भाई वाह क्या बात है , मजा आ गया सच में , बहुत खूब लिखे हो भाई , बधाई । यार शादी में बुलाना जरुर ।
@भाई मिथलेश,
तुम्हारा नंबर तो मेरे मोबाइल में बहुत पहले से सेव है.
निमंत्रण मिलना तय है. खुश रहिये और आस पास ही रहिये. हा हा !!
हा हा हा !अच्छा प्रयास है। लगे रहो।
आशीर्वाद आपके साथ है।
waah
मज़ेदार..
बहुत खूब,बधाई,,,
बहुत खूब,बधाई,,,
भाई बहुत बढ़िया खुशख़बरी सुनाए अब आप तो सेट हो गये ठीक से अब बस वहीं गीत हमें भी बता दीजिए कहीं जाकर सुना दे क्या पता अपने भी दिन संवर जाए...मजेदार कविता..अच्छा लगा भाई
बहुत सुंदर, कब बुला रहे हो शादी पर जल्द बता देना, लेकिन एक बात तो है कि...
बहुत बड़े घर की बेटी है
दिखने में सुन्दर, दिमाग की मोटी है
चलिये घर मै रोनक रहेगी.
हमारा आशिर्वाद अभी से लेलो.
पहली मुलाक़ात से ही कायल है
अब मेरे इश्क में घायल है
बहुत बड़े घर की बेटी है
दिखने में सुन्दर, दिमाग की मोटी है
मैंने भी उसे यह बता दिया
तुम्हे ही जीवन संगिनी बनाऊंगा
यह भरोसा जता दिया
२००१ की लिखी ....तो अब तक बहु घर आ एक दो बच्चों की
माँ भी बन गई होगी .....क्यों ...?? ..हा....हा....हा....!!
बहुत खूब .......!!
अंत कुछ रोचक नहीं बन पाया ......!!
मजेदार है...
बहुत अच्छी कविता।
वाह सुलभ जी ... मज़ा आ गया ...... अब तो दोनो हाथ घी में और सर कड़ाई में होगा .......... भाई ब्लॉग मित्रों को नही भूलना ....... अच्छी रचना है ..... हास्य से भरपूर .......
बहुत खूब...
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