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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Thursday, November 19, 2009

महफूज़ के नाम एक पत्र.


प्रिय महफूज़, अब तबियत कैसी है?

जिंदगी एक रेस ही तो है. अलग अलग उम्र में रेस के मैदान अलग अलग होते हैं. पिताजी (पिताजी जैसे लोग), अपना बेस्ट अनुभव बेटे को देना चाहते हैं.

आप ब्लोगिंग में बहूत मशरूफ रहते हैं. सिर्फ आप ही नहीं और बहुत से लोग इसमें अस्त-व्यस्त दिखते हैं. कमोबेश मैं भी उन्ही में से एक हूँ. इस ब्लॉग जगत की आभासी(आभासी नहीं, मेरा मतलब संवाद की आधुनिक तकनीक से सज्जित अपना वैश्विक गाँव चौपाल) सार्वजनिक मंच पर कहते सुनते अब तक(बहुत कम समय में) जिन लोगों से दोस्ताना रिश्ता विकसित हुआ है, उनमे से एक आप भी है. ऐसा मैं सिर्फ महसूस करता हूँ. क्योंकि ना ही मैंने आपको ज्यादा पढ़ा है और ना ही हमारे बीच संवादों का आदान-प्रदान हुआ है. ये तो सिर्फ महसूस करने की बात है और मेरे लिए यही सुन्दर और सुखद अनुभूति है. अब आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए की मैं आपको पत्र क्यों लिख रहा हूँ. बाकी और भी ग़म(ख़ुशी) है इस जमाने में ब्लोगिंग के सिवाय.

असल बात सिर्फ इतना ही है की आपके पोस्ट के माध्यम से पता चला की आपकी तबियत खराब चल रही है. वायरल का क्या है दवा, उचित खान-पान और परहेज से चार-छ: दिनों में ठीक हो जायेंगे. मैं इस बात से ज्यादा परेशान हुआ की, कहीं आप मानसिक रूप से भी ज्यादा बीमार तो नहीं?. एक अच्छा लेखक जो सामाजिक सद्भाव और सहज मनोरंजन के लिए लिखता हैं उसके साथ सब ठीक ठीक ही गुजरे. ऐसी दुआ मैं सभी अच्छे लोगों के लिए करता हूँ. फिर संतोष हुआ की आप बिलकुल स्वस्थ ही हैं और आपकी मानसिक स्थिति भी सुदृढ़ है तभी तो आप अपनी पोस्ट सफलता पूर्वक प्रकाशित कर पायें हैं.

एक ब्लोगर सहयात्री के रूप में जब आपने मेरा पैगाम समझा था तब से आपका शुभेच्छु ज्यादा हो गया हूँ. पैगाम वही दोस्ती वाला "खाली जेब फिर भी दुनिया भर की मस्ती है; ये जो दोस्ती है एक विश्वास की कश्ती है". दोस्ती के नाम पर ही आपको एक सलाह दे रहा हूँ. यदि ज्यादा कोई दिक्कत नहीं है तो आप शादी कर लीजिये. सिर्फ इसलिए कह रहा हूँ की आप अकेलेरहते हैं और माता-पिता का भी साथ नहीं है. एक दोस्त के रूप में सौभाग्य से कोई जीवन साथी मिल जाये या जीवनसंगिनी के रूप में एक दोस्त मिल जाये तो सचमुच जिंदगी खुशगवार हो जाएगी. बाकी उंच-नीच, सम्पन्नता-अभाव, सफलता-विपत्ति इत्यादि, वेगैरह किसी के भी जीवन का अभिन्न अंग है.

एक बाद याद रखियेगा.. इस दुनिया में (दुनियादारी में) एक पिता-पुत्र का ही एक ऐसा सम्बन्ध है जिसमे पिता अपने पुत्र को स्वयं से बड़ा देखना चाहता है. बाकी करीबी रिलेशन में भी ऐसा भाव नहीं मिलेगा. एक माँ है जो अपने बच्चे को हमेशा स्वस्थ और प्रसन्नचित देखना चाहती है. आर्थिक और सामाजिक तरक्की उसके दिमाग से बाहर की चीज़ होती है वह(माँ) इसकी कामना अपने बेटे से कभी नहीं करती.

यदि पिता के बाद कोई है तो वह आपकी पत्नी हो सकती है जो आर्धान्गनी बनकर एक सखा के रूप में आपको आगे बढ़ते देखना चाहेगी. बाकी सब मायाजाल है. आभासी अतिरेकता से बचिए. ब्लोगिंग में टॉप कोई नहीं है और न ही हो सकता है. परीक्षा में अधिकतम अंक पाने का यह मतलब नहीं है की फलां शख्श उस विषय का सबसे बड़ा ज्ञानी है. आपकी चिरस्थायी उपलब्धि एकमात्र यही है की कुछ अच्छे और सच्चे लोग आपको दिल से टॉप मानते हैं. बस उनके दिल में बने रहिये. हाँ लिखना कभी मत छोड़ना.


आपका मित्र (मित्र नहीं एक आभासी सहयात्री)

सुलभ

19 नवम्बर २००९
नोट: टिपण्णी बॉक्स में असुविधा होने पर मैंने यह लंबा संदेश सहज प्रतिक्रया में यहाँ post किया है। कृपया इसे विवाद का विषय न बनाए।

22 comments:

दीपक 'मशाल' said...

बढ़िया लिखा... पसंद आया... लिखते रहें ऐसे ही सुलभ जी...
जय हिंद...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

यदि पिता के बाद कोई है तो वह आपकी पत्नी हो सकती है जो आर्धान्गनी बनकर एक सखा के रूप में आपको आगे बढ़ते देखना चाहेगी. बाकी सब मायाजाल है. आभासी अतिरेकता से बचिए. ब्लोगिंग में टॉप कोई नहीं है और न ही हो सकता है. परीक्षा में अधिकतम अंक पाने का यह मतलब नहीं है की फलां शख्श उस विषय का सबसे बड़ा ज्ञानी है. आपकी चिरस्थायी उपलब्धि एकमात्र यही है की कुछ अच्छे और सच्चे लोग आपको दिल से टॉप मानते हैं. बस उनके दिल में बने रहिये. हाँ लिखना कभी मत छोड़ना.
आपका मित्र (मित्र नहीं एक आभासी सहयात्री)
सुलभ

बहुत बढ़िया!
मित्र हो तो ऐसा!

दिगम्बर नासवा said...

ACHAA LIKHA HAI .... DIL SE LIKHA HAI ... SAHI SALAAH DI AI AAPNE MEHFOOZ BHAI KO ....

निर्मला कपिला said...

बहुत सुन्दर यही है ब्लाग जगत का प्रेम बहुत अच्छा लगा ये प्रयास यूँ भी महफूज़ ब्लाग जगत का प्यारा दुलारा बेटा है । उसकी सेहत के लिये शुभकामनायें

Jyoti Verma said...

kya bhai aapki baat samjh nahi aayi humko. aap zabardasti salah dene lage hai. apko kuch samsya hai zarur. bina mange salah dena uchit nahi hai. koi problem ho to relex kar ligiye phir ....
waise aap critic achchhe ban sakte hai.

डॉ टी एस दराल said...

बहुत नेक सलाह दी है , दोस्त।
बढ़िया।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@Jyoti

पहली बात यह मैंने पत्र में कोई जबरदस्ती सलाह नहीं दी है, यह एक स्वाभाविक प्रतिक्रया मात्र है. उद्देश्य सिर्फ इतना है की कोई तकलीफ में है तो उसे अपनों(चाहे वो कोई भी हो) का साथ मिले.
दूसरी यह की, जब पिताजी सलाह देते हैं तो बच्चे माने या न माने. उनकी आदर पूर्वक सुनते जरुर हैं. यही स्थिति किसी हम उम्र वाले के भी साथ होती है. मैं यहाँ किसी का हमदर्द नहीं हूँ. हाँ एक अच्छे लेखक के खुशहाल जीवन की कामना मात्र कर सकता हूँ. .
आप हमारे ब्लॉग पर आये इसके लिए आपका शुक्रिया. वैसे आपकी सलाह विचारणीय है. मुझे स्वयं लिखने से जब फुर्सत मिलेगी तब एक समीक्षक बनना शायद पसंद करूँ.

राज भाटिय़ा said...

एक बाद याद रखियेगा.. इस दुनिया में (दुनियादारी में) एक पिता-पुत्र का ही एक ऐसा सम्बन्ध है जिसमे पिता अपने पुत्र को स्वयं से बड़ा देखना चाहता है. बाकी करीबी रिलेशन में भी ऐसा भाव नहीं मिलेगा.
बहुत सुंदर ओर साफ़ शादो मै आप ने यह पत्र लिखा,यह ऊपर लिखी लाईनो से सभी सहमत होगे, जब बेटा बाप से बढा हो जाता है तो आप फ़िर से जवान हो जाता है, जब बेटा किसी अच्छई जाब पर लगता है, ओर कमाने लगता है तो बाप को लगता है कि वो कमाने लग गया है, बाप बेटेको गुस्सा भी करता है तो उस की भलाई के लिये.... भाई आप ने बहुत छोटी उमर मै बहुत ऊंची बात कह दी.
महफूज़ भई अब तो कोई अच्छी सी लडकी देख कर अपने हाथ पीले कर लो, निकाह कर लो.
आप का धन्यवद इस अति सुंदर लेख के लिये

M VERMA said...

अच्छा आलेख
महफूज को दिया गया वाजिब सलाह

अजय कुमार said...

महफ़ूज भाई अब तो आपको सबकी बात मान लेनी
चाहिये

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

लेख के भाव बता रहे हैं कि आपने जो भी लिखा,दिल से लिखा है...चाहे आभासी ही क्यूं न हो लेकिन आप एक सच्चे मित्र की भूमिका में दिखाई दिए...
वाकई अक्सर कईं रिश्ते ऎसे ही बन जाया करते हैं...

Udan Tashtari said...

बढ़िया पत्र.

आपकी चिरस्थायी उपलब्धि एकमात्र यही है की कुछ अच्छे और सच्चे लोग आपको दिल से टॉप मानते हैं.

-बिल्कुल सत्य!

संगीता पुरी said...

वाह .. बहुत बढिया पत्र !!

श्यामल सुमन said...

मित्र-धर्म का आपने बखूबी पालन किया है।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

राजीव तनेजा said...

आपकी बात से पूर्णत्या सहमत...

अकेले महफूज़ साहब ही क्यों कुँवारे रहकर मज़े लेते रहें?... :-)

PD said...

महफूज भाई कहां हैं? :)

उनको और आपको पढ़ा तो खूब है मगर कमेंट पहली बार लिख रहा हूं..

अजय कुमार झा said...

मा बदौलत भी यही चाहते हैं ..कि पत्तर पर फ़ौरन से पेशतर अमल किया जाए जी

शरद कोकास said...

ब्लॉग पर लिखे पत्र की यही विशेषता है कि यह लिखा किसी के नाम जाता है और पढता कोई और है ..किसीका शेर भी है यह.." मै ख्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है..।" अच्छा है ऐसे ही लिखते रहो और मह्फूज़ से कहो वह भी जवाब दे । यह खतो किताबत ज़रूरी है हर दौर मे ।

Urmi said...

वाह सुलभ जी बहुत बढ़िया लगा! बिल्कुल सही कहा है आपने! बहुत ही अच्छी सलाह दी है आपने महफूज़ भाई को! बहुत खूब!

वाणी गीत said...

बहुत अच्छी सलाह ...महफूज़ को इसकी बहुत अधिक आवश्यकता थी ..आभार ..!!

सदा said...

बहुत ही अच्‍छा पत्र लिखा आपने और सलाह भी नेक है, शुभकामनायें ।

योगेन्द्र मौदगिल said...

महफूज मियां कुछ समझे....!!

महफूज मियां कुछ समझे....?

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "