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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Wednesday, November 4, 2009

सतरंगी परिभाषा - 3 "प्यार"


प्यार मतलब देने का नाम है
किसी से भी मिले
तो समझो वरदान है
खुशी में भी छलक जाये
ये
वो बेशकीमती आंसू है
प्यार के दम से
तकलीफ
में भी मुस्कान है

- सुलभ 'सतरंगी'

8 comments:

आमीन said...

little but a complete poem. thanks

Unknown said...

वाह बन्धु !
प्यार को बिल्कुल सटीक वर्णित किया आपने

-----अभिनन्दन !

Mithilesh dubey said...

क्या बात है। बेहद खूबसूरत व दिल से लिखी गयी रचना। बहुत-बहुत बधाई

अनिल कान्त said...

अच्छा लिखते हैं आप

Asha Joglekar said...

प्यार को परिभाषित करती हुई है ये प्यारी सी कविता ।

Urmi said...

वाह बहुत बढ़िया ! आपने बड़े ही खूबसूरती से प्यार को प्रस्तुत किया है ! दिल को छू गई आपकी ये रचना!

सदा said...

दिल को छूते हुये शब्‍द बहुत सुन्‍दर ।

Alpana Verma said...

yah paribhasha bhi khoob kahi!

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "