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Saturday, October 10, 2009

सियासत में लूटेरों की गश्ती देखो तो ज़रा (Ghazal)



लहरों के ऊपर लड़ते कश्ती देखो तो ज़रा
जिंदगी-मौत के बीच मस्ती देखो तो ज़रा

दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा

साथ चलते बाशिंदों से ये कहाँ की नफरत है
बात बात पे जलते हैं बस्ती देखो तो ज़रा

हुस्न है; तो नाज़ नखरों के गहने भी होंगे
नासमझ दीवानों की ज़बरदस्ती देखो तो ज़रा

शहरों में आपाधापी किराये की छत के लिए
किसानों की जमीं है सस्ती देखो तो ज़रा

कौन
अपना रहनुमा यहाँ क्या हो मुस्तकबिल
सियासत में लूटेरों की गश्ती देखो तो ज़रा ||



(रहनुमा = Leader मुस्तकबिल = Future) [इस post पर आपकी प्रतिक्रिया]


16 comments:

M VERMA said...

दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा
खूबसूरत ज़ज्बे की गज़ल बहुत सुन्दर
वाह वाह

निर्मला कपिला said...

लहरों के ऊपर लड़ते कश्ती देखो तो ज़रा
जिंदगी-मौत के बीच मस्ती देखो तो ज़रा

दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा
लाजवाब प्रेरणा देती गज़ल के लिये बधाई

राज भाटिय़ा said...

आप की यह गजल बहुत सुंदर लगी.
धन्यवाद

Naveen Tyagi said...

कौन अपना रहनुमा यहाँ क्या हो मुस्तकबिल
सियासत में लूटेरों की गश्ती देखो तो ज़रा ||
bahut khoob

Ambarish said...

हुस्न है; तो नाज़ नखरों के गहने भी होंगे
नासमझ दीवानों की ज़बरदस्ती देखो तो ज़रा
bahut khoob

रंजना said...

दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा!!

WAAH !!!

बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...सभी शेर सुन्दर और सार्थक.....

Mumukshh Ki Rachanain said...

दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा

....... सुन्दर ग़ज़ल के हर शेर किसी मोती से कम नहीं....

बधाई
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

Alpana Verma said...

कौन अपना रहनुमा यहाँ क्या हो मुस्तकबिल
सियासत में लूटेरों की गश्ती देखो तो ज़रा ||

वाह !बहुत उम्दा!
क्या बात है!
ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है सुलभ आपने..

gazalkbahane said...

अच्छी भाव-भंगिमा है बधाई

योगेन्द्र मौदगिल said...

वाह सुलभ जी ......

Yogesh Verma Swapn said...

zabardast rachna ke liye bahut bahut mubarak.

Unknown said...

साथ चलते बाशिंदों से ये कहाँ की नफरत है..
nice one...great

Pawan Kumar said...

good efffort.....keep it up.शेर के वज़न थोड़े जुदा जुदा हैं मगर भाव अच्छा है..........

श्याम जुनेजा said...

सदियां बीत चलीं दीपावली मनातें हैं पर क्या दिए से हम कुछ सीख भी पाते हैं ? जो भी हो आपका शब्द चयन अभूत प्यारा लगा-- श्याम

Unknown said...

लहरों के ऊपर लड़ते कश्ती देखो तो ज़रा
जिंदगी-मौत के बीच मस्ती देखो तो ज़रा
वाह भाई ,बहुत अछा लगा आपको पढ़कर ..धन्यवाद्

Chandan Prakash, said...

nice yr

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