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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Wednesday, December 3, 2008

आतंक का दर्द - एक सच्चाई

ये कैसी लड़ाई है कैसा ये आतंकवाद
मासूमो का खून बहाकर बोलते हैं जेहाद

बोलते हैं जेहाद अल्लाह के घर जाओगे
लेकिन उससे पहले तुम जानवर बन जाओगे

बम फटे मस्जिद में तो कभी देवालय में
महफूज़ छुपे बैठे हैं जो आतंक के मुख्यालय में

आतंक के मुख्यालय में साजिश वो रचते हैं
नादान नौजवान बलि का बकरा बनते हैं

रो रहा आमिर कासव क्या मिला मौत के बदले
अपने बुढडे आकाओं से हम क्यों मरे पहले ॥

1 comment:

Anonymous said...

I found this site while searching for hindi poem, fantastic. keep us update with your creative Pen.

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "