Pages

हम आपके सहयात्री हैं.

अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Saturday, February 20, 2010

कॉपी पेस्ट करना सरल काम है


आज  के लिए अपनी कोई मौलिक रचना नहीं सो एक पुरानी कथा सुनाता हूँ...

क लोकप्रिय प्रेरक वक्ता अपने श्रोताओं का मनोरंजन कर रहा था,  उसने कहा: "मेरे जीवन का सबसे अच्छा साल वो था जो  मैंने एक औरत की बाहों में खर्च किया जो मेरी पत्नी नहीं थी!"

सभी श्रोता मौन रहे और एक दुसरे को सदमे भरे निगाह से देखने लगे. वक्ता ने आगे जोड़ा "और वह औरत मेरी माँ थी!" 


 जोरदार तालियां की गरगराहट और हंसी से हाल गूंज गया.
एक सप्ताह बाद, एक प्रबंधक जो अपने कार्यालय में उसी वक्ता को सुन चुका था, अपने घर पर
प्रभावी मजाक करने की कोशिश की.  नया नया प्रशिक्षित वह मैनेजर अतिउत्साहित होकर जोर से बोलने लगा... 
"मेरे जीवन का सबसे बड़ा साल वो जिसे
मैंने एक औरत की बाहों में खर्च किया जो मेरी पत्नी नहीं थी! "
तक़रीबन 3० सेकेण्ड खामोश रहने के बाद वो मैनेजर झुंझलाते हुए बोला "....और मुझे याद नहीं की वह कौन थी!"
पत्नी और घर के अन्य सदस्य भयानक गुस्से में आ गए.  



 

 कहानी का नैतिक सार: DON'T COPY IF YOU CAN'T PASTE !!



चलते चलते एक शे'र अर्ज है...

'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए 


24 comments:

संजय बेंगाणी said...

:)

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...
This comment has been removed by the author.
पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

कोई साहित्यकार ही रहा होगा ! आपने शायद महादेवी वर्मा जी का वह एक चर्चित वाकया सुना ही होगा कि एक बार वे काव्यगोष्ठी में लेट पहुची तो मौजूद सभी कविगण उनसे खपा थे ! उन्होंने स्टेज पर जाकर कहा ;

मैं लेट हुई मैं लेटी थी,
वह मेरे ऊपर लेता था !

यह सुन सभी कवियो और श्रोताओं की भौंवे तन गई, वे फिर धीरे से मुस्कुराते हुए बोली ;

मैं प्यार में कुछ कह न सकी
क्योंकि वह मेरा बेटा था !!

प्रकाश पाखी said...

हा !हा !!
सुलभ जी...
क्या कोपी की है...मजा आगया...काफी दिनों बाद ब्लॉग पर हंसने का मौका मिला है.!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

:))

Smart Indian said...

बहुत खूब. मज़ाक का मज़ाक और इतनी बड़ी बात.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत खूब. .....

डॉ टी एस दराल said...

हा हा हा ! बेचारे से भयानक भूल हो गई।

रश्मि प्रभा... said...

'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए
..........bahut khoob

dr amit jain said...

वाह

Alpana Verma said...

ha ha ha!!

sahi kahaa 'nakal ke liye bhi akal chaheeye'...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर बात कही , मजे दार ओर बहुत गहरे भाव वाली लेकिन नकल के लिये भी तो भेजा चाहिये ना:)

मनोज कुमार said...

बहुत खूब। मज़ेदार।

डा. अमर कुमार said...


इस पोस्ट को पढ़ कर क्रोध आ रहा है
अपने पर
कि अब तक क्यों नहीं पढ़ा
मैंनें आपको

रचना दीक्षित said...

बहुत गंभीर बात कह दी हंसी हंसी में, एक बहुत अच्छा कटाक्ष .बधाई स्वीकारें

दिगम्बर नासवा said...

'इन्टरनेट' मतलब यायावरी का पर्याय
हम भी भटके खूब शब्द बीनते हुए ..

आपका ये शेर भी कमाल का है सुलभ जी .... और किसा भी लाजवाब .....
आज कल कुछ ज़्यादा व्यस्त लग रहे हैं आप ...

Urmi said...

वाह बहुत ही बढ़िया, मज़ेदार और सही बात कहा है आपने! बहुत खूब!

गौतम राजऋषि said...

सच कहा सुलभ...और इस "शब्द बीनते हुये भटकने" की अदा पर मोहित हो गये हम तो....

RAJ SINH said...

सुलभ जी ,
हमें तो आपका अंदाज़ चुराने का मन करता है :):) .

Pushpendra Singh "Pushp" said...

बिलकुल सच कहा सुन्दर पोस्ट
आभार...........

Mumukshh Ki Rachanain said...

शायद यही अंतर है किताबी प्रशिक्षित मैनेजर और अनुभवी मैनेजर में, एक कट, कापी और पेस्ट में माहिर और दूसरा आसरों के सहारे...........

पसंद आया आपका यह कथा वाचन और सही सटीक नैतिक सार.

चन्द्र मोहन गुप्त

Unknown said...

खूब कहा इन्टरनेट का इंद्रजाल बन गया है , भागे जा रहे शब्दो के इस महाजाल में !

Rahul Singh said...

याद न आए तो सफाई मान ली जानी चाहिए कि कापी ही था जो पेस्‍ट नहीं हो पा रहा है.

ZEAL said...

Interesting indeed !...Smiles...

लिंक विदइन

Related Posts with Thumbnails

कुछ और कड़ियाँ

Receive New Post alert in your Email (service by feedburner)


जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "