इससे पहले कि गीली आँखों में तेज़ाब देखो
होश में आओ रहनुमाओं वर्ना इंकलाब देखो
हक़ मार जाते हो तुम अपने ही खिदमतगार के
रगों में इसके खून नहीं सुलगता अलाव देखो
जंगल पहाड़ उजाड़ कर ये कैसी तरक्की पाई है
चार दिन कि जिंदगी में कुदरत के सौ अज़ाब देखो
जमीन मकान आसमान सब यहाँ बेमानी है
हवा पानी को तरस रहे शहर बेहिसाब देखो
महफ़िल कैसे सजे यहाँ तेल खरीदने की कूबत नहीं
महंगाई के आगे हार गए कितने रईस नवाब देखो
सच को झूट बनाने का खेल और नहीं खेल सकते
प्यार भरे तिरे सवाल के आगे हम हुए लाजवाब देखो
खोल दो बंद दरवाजे खिड़कियाँ औ' रोशनदानों को
उठो सुबह हो चुकी चमक रहा आफताब देखो ||
होश में आओ रहनुमाओं वर्ना इंकलाब देखो
हक़ मार जाते हो तुम अपने ही खिदमतगार के
रगों में इसके खून नहीं सुलगता अलाव देखो
जंगल पहाड़ उजाड़ कर ये कैसी तरक्की पाई है
चार दिन कि जिंदगी में कुदरत के सौ अज़ाब देखो
जमीन मकान आसमान सब यहाँ बेमानी है
हवा पानी को तरस रहे शहर बेहिसाब देखो
महफ़िल कैसे सजे यहाँ तेल खरीदने की कूबत नहीं
महंगाई के आगे हार गए कितने रईस नवाब देखो
सच को झूट बनाने का खेल और नहीं खेल सकते
प्यार भरे तिरे सवाल के आगे हम हुए लाजवाब देखो
खोल दो बंद दरवाजे खिड़कियाँ औ' रोशनदानों को
उठो सुबह हो चुकी चमक रहा आफताब देखो ||
***
17 comments:
इससे पहले कि गीली आँखों में तेज़ाब देखो
होश में आओ रहनुमाओं वर्ना इंकलाब देखो
लाजबाब !
जंगल पहाड़ उजाड़ कर ये कैसी तरक्की पाई है
चार दिन कि जिंदगी में कुदरत के सौ अज़ाब देखो ..
समाज के दर्द को उबारा है सुलभ जी आपने अपने शेरों में ........... पर्यावरण जैसे दर्द अपने सामने ही जीने पढ़ेंगे हमें .........
होश में आओ रहनुमाओं वर्ना इंकलाब देखो
nice
वाह क्या लिखे हो भाई
खोल दो बंद दरवाजे खिड़कियाँ औ' रोशनदानों को
उठो सुबह हो चुकी चमक रहा आफताब देखो ||
सच्ची बात , सार्थक संदेश , बधाई सुलभजी
इससे पहले कि गीली आँखों में तेज़ाब देखो
होश में आओ रहनुमाओं वर्ना इंकलाब देखो
महफ़िल कैसे सजे यहाँ तेल खरीदने की कूबत नहीं
महंगाई के आगे हार गए कितने रईस नवाब देखो
वाह क्या कहूँ खडी हो कर तालियाँ बजा रही हूँ --- लाजवाब शुभकामनायें
शानदार रचा है, वाह!!
bahut hi behtareen aaftaab
... बहुत सुन्दर, प्रसंशनीय!!!!
हक़ मार जाते हो तुम अपने ही खिदमतगार के
रगों में इसके खून नहीं सुलगता अलाव देखो
kya baat hai!
inqlaabi sa sunaayee deta hai!
yahi jazaba bana rahe.
Sabhi sher ek se badh kar ek!
bahut badhiya ghazal!
बहुत ही सुन्दर शब्दों का समावेश इस रचना में, बधाई के साथ शुभकामनायें ।
जंगल पहाड़ उजाड़ कर ये कैसी तरक्की पाई है
चार दिन कि जिंदगी में कुदरत के सौ अज़ाब देखो
जमीन मकान आसमान सब यहाँ बेमानी है
हवा पानी को तरस रहे शहर बेहिसाब देखो..
वाह वाह क्या बात है! बहुत ख़ूबसूरत पंक्तियाँ! इस लाजवाब रचना के लिए बधाई!
सुलभ, आपके खयालात, जज्बात की जितनी भी तारीफ की जाए, कम है. यही आक्रोश, यही सोच, यही चिन्तन नवजवानों में होने चाहिएं. आपने युवा भारतीय होने का सबूत दे दिया है.
मेरी इतनी प्रशंसा मत करें कि फूल कर फट जाऊं.
हक़ मार जाते हो तुम अपने ही खिदमतगार के
रगों में इसके खून नहीं सुलगता अलाव देखो
सुलभ जी आपकी इस क्रांतिकारी विचारधारा वाली रचना को सलाम...बहुत खूब लिखा है आपने...
नीरज
खोल दो बंद दरवाजे खिड़कियाँ औ' रोशनदानों को
उठो सुबह हो चुकी चमक रहा आफताब देखो ||
..अच्छा शेर. अच्छे भाव वाली गज़ल.
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें!
bahut umda likha hai sulabh
Post a Comment