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Monday, December 28, 2009

इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं



अनजान शहर में मिले खजाने बहुत हैं
खेल किस्मत को अभी दिखाने बहुत हैं

हर कदम टूटते हैं सैकडो दिल यहाँ
टूटे बिखरे दिलों के अफ़साने बहुत हैं

कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं

नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं

शायद चलती रहे महफिल देर रात तक
तेरे सामने साकी अभी  पैमाने बहुत हैं

पत्थरों से मुलाक़ात अब रोज़ की बात है
आँखों ने भी बसाए ख्वाब सुहाने बहुत हैं

किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं

- सुलभ जायसवाल

25 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
--वाह, कमाल का शेर है!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर ....

Rajeysha said...

इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं

वाकई हर आदमी एक जमाना है... अच्‍छी बात पकड़ी है डि‍यर,,, बधाई।

डॉ टी एस दराल said...

नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं

गहरी बात है।
अच्छी रचना। बधाई।

Kulwant Happy said...

पसंद दफ्तर में चपका दी थी, टिप्पणी अब कर रहा हूं..बहुत खूब लिखा है।

शौचालय से सोचालय तक

अर्कजेश said...

कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं

बहुत खूब ! अच्‍छी तुलना है ।

राज भाटिय़ा said...

किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
बहुत सुंदर जी, आप ने अपनी इस गजल मै सच व्याण किया है

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा!!

यह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।

हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.

मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.

नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।

वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।

आपका साधुवाद!!

नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!

समीर लाल
उड़न तश्तरी

हास्यफुहार said...

नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
आने वाला साल मंगलमय हो।

सदा said...

पत्‍थरों से मुलाकात अब रोज की बात है,
आंखों ने भी बसाए ख्‍वाब सुहाने बहुत हैं ।

बहुत ही बेहतरीन पंक्तियां ।

Alpana Verma said...

नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात

उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
bahut khoob!
bahut hi sundar gazal kahi hai!
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं

waah!waah!!kya baat kahi hai!

alka mishra said...

नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात

उन को ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं

आप तो सहज ही सुलभ हैं ........

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

आदरणीय समीर लाल जी,

नव वर्ष के मौके पर आपका सन्देश हिंदी चिट्ठाजगत को समृद्ध करेगा. मैं भी यथा संभव प्रचार और नए लोगों को जोड़ने में सहयोग करता हूँ.

आप सभ ब्लोगर साथियों को नए साल की शुभकामनाये!!

सुशील कुमार जोशी said...

नव वर्ष शुभ हो !
उम्दा रचना !

Ambarish said...

sundar gajal..
कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं
wah!!

गौतम राजऋषि said...

अच्छा प्रयास है सुलभ जी। लिखते समय तनिक गुनगुना कर देख लें तो और बेहतर बनेगी ग़ज़ल।

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@गौतम जी,
आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है. ग़ज़ल मीटर की तरफ ध्यान देना जरुरी है.

दिगम्बर नासवा said...

सुलभ जी आज चॅट पर नही मिल सके इसलिए ........ ब्लॉग के ज़रिए ही ........ आपको और आपके परिवार को नव वर्ष की मंगल कामनाएँ ........

sandhyagupta said...

नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं

Bahut khub.

Nav varsh ki dheron shubkamnayen.

Sujit For Web said...

every line have own significance and well touch with our life... nice

रचना दीक्षित said...

बहुत बेहतरीन रचना गंभीर भाव लिए हुए इसके आगे कुछ कह नहीं सकती क्योंकि मैं निशब्द हूँ
एक बहुत सुंदर प्रस्तुति और
नववर्ष पर हार्दिक बधाई आप व आपके परिवार की सुख और समृद्धि की कमाना के साथ
सादर रचना दिक्षित

समयचक्र said...

नववर्ष पर आपको हार्दिक शुभकामनाये और ढेरो बधाई

दिगम्बर नासवा said...

कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं ...

YE SHER BAHUT KAMAAL KA HAI .....

SURINDER RATTI said...

Sulabh, Nav Versh Ki Shubh Kaamnayein, sunder she'r hain,
किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
Badhiya Ghazal hai .....Surinder

nandkishor said...

nice

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