Pages

हम आपके सहयात्री हैं.

अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Saturday, December 19, 2009

वो हंस दिए हमारी नादानी देखकर - एक कचोटती ग़ज़ल






हैरत में हैं लोग सचबयानी देखकर 
 दो गवाह और झूटी कहानी देखकर  


लिख सजा बेगुनाह को कलम है शर्मशार 
फैसले हुए हैं  कागज़ कानूनी देखकर   


ख्वाहिशों कि उड़ान अभी बाकी है बहुत 
मियाँ घबरा गए ढलती जवानी देखकर 



जाने क्या देखकर जाने क्या सोचकर  
फूल मुरझा गए सख्त निगरानी देखकर  


वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा    
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर  


खालिश डिग्री दिखाकर मांगी थी नौकरी
वो हंस दिए हमारी नादानी देखकर 


सुबह चल निकला था घर से प्यासा ही
राहत मिली अब रस्ते में पानी देखकर 
***


मुझे माफ़ कीजिये ! मैं कोई शायर नहीं हूँ 
शे'र पढता हूँ आपकी मेहरबानी देखकर


- सुलभ जायसवाल 'सतरंगी'



27 comments:

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर ग़ज़ल....

आलोक साहिल said...

मूड मस्त कर दिया सुलभ भाई....सुबह-सुबह बेड टी के साथ इतनी सुलगती-उफलती गज़ल...दिन का मिजाज ही बदल गया....

आलोक साहिल

www.SAMWAAD.com said...

सच में, भीतर तक कचोट गयी।



------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।

रश्मि प्रभा... said...

वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर .....kya baat kahi hai

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब व सटिक कहा आपने ।

वाणी गीत said...

गुडिया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर ...जज़्बात से भरी ग़ज़ल ...!!

सदा said...

वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर ।

हर शब्‍द गहराई की अनन्‍त व्‍याख्‍या लिये,बहुत ही भावपूर्ण प्रस्‍तुति,बधाई ।

Sanjay Grover said...

जाने क्या देखकर जाने क्या सोचकर

फूल मुरझा गए सख्त निगरानी देखकर




वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा

गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर




खालिश डिग्री दिखाकर मांगी थी नौकरी

वो हंस दिए हमारी नादानी देखकर

teenoN sheroN meN wo baateN kahi gayiN haiN jo aaj ki taarikh meN kahi jani zaruri haiN. Pahle sher meN vanchit ya shasit ki bebasi aur bekasi ka bayaN bakhubi huya hai.

Udan Tashtari said...

खालिश डिग्री दिखाकर मांगी थी नौकरी
वो हंस दिए हमारी नादानी देखकर

--वाह सुलभ..क्या बात है...वाकई आनन्द आ गया!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

ख्वाहिशों कि उड़ान अभी बाकी है बहुत

मियाँ घबरा गए ढलती जवानी देखकर


बहुत ही भावपूर्ण प्रस्‍तुति !

मनोज कुमार said...

ख्वाहिशों कि उड़ान अभी बाकी है बहुत
मियाँ घबरा गए ढलती जवानी देखकर
बहुत खूब।

राज भाटिय़ा said...

मुझे माफ़ कीजिये ! मैं कोई शायर नहीं हूँ
शे'र पढता हूँ आपकी मेहरबानी देखकर
भई आप के एक एक शेर मै तो तल्ल्खी है, उस का जबाब नही, बहुत ही सुंदर लाजवाब, बहुत कम पढने को मिलते है ऎसे शेर

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

भाटिया जी, आप का इंतजार कर रहा था
मैं. अब शान्ति मिली है आपकी टिप्पणी
देखकर .

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सुलभ जी ,
बहुत बढ़िया ग़ज़ल कही है....कटाक्ष करती हुई सी....
सच बयां कर दिया है.....बधाई

स्वप्न मञ्जूषा said...

सुलभ बाबू कुछ कहना अब मुश्किल है
हैरान हैं हम भी कलम की रवानी देखकर

बहुत खूब !!!

Sudhir (सुधीर) said...

सुन्दर ग़ज़ल...बहुत अच्छी लगी आपकी ये ग़ज़ल

हास्यफुहार said...

रचना अच्छी लगी।

दिगम्बर नासवा said...

ख्वाहिशों कि उड़ान अभी बाकी है बहुत
मियाँ घबरा गए ढलती जवानी देखकर ...

वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर ......

बहुत तल्ख़ शेर हैं सुलभ जी ......... आपने बहुत मस्त मौला अंदाज़ में लिखे है सब के सब शेर ........... mazaa आ गया आपकी ग़ज़ल पढ़ कर ...........

Asha Joglekar said...

आप गर शायर नही तो बतायें कोन है
सब तो हैरां रह गये कलम की रवानी देख कर ।

Alpana Verma said...

waah! bhaut hi sundar gazal kahi hai...
har sher ek se badh kar ek!

[Sulabh ..aap ke blog page black colour par tippani karne ke liye page ko highlight karna padta hai..nahin to comment ka option dikhta nahin..please check kareeye]

Kulwant Happy said...

हर शेयर दिल को छू गया। किसी एक तारीफ करूं तो बेइन्साफी हो गई।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर
---क्षमा कीजिएगा सुलभ जी पूरी गज़ल में यह शेर इतना भारी है
कि इसके आगे सभी फीके लगते हैं।
इस शेर की जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
यह मेरे मन की बात है हो सकता है मैं गलत हूँ

गौतम राजऋषि said...

अच्छी रचना सुलभ जी। कुछ मिस्रे तो सचमुच लाजवाब बन पड़े हैं।

लेकिन रचना खूब मेहनत माँग रही है, यदि इसे सचमुच ग़ज़ल कहना चाहते हैं तो।

डॉ टी एस दराल said...

अरे सुलभ, तुम तो बड़े छुपे रुस्तम निकले।
एक एक शेर एक एक कहानी कह रहा है।
बहुत बढ़िया भाई , लाज़वाब।

विनोद कुमार पांडेय said...

सुलभ जी मुझे याद नही की मैं पहले आप के ब्लॉग पर आया हूँ या नही पर हाँ एक बात तय है आपकी रचनाएँ मुझे आज इतना प्रभावित की अब मुझे निरंतर आना ही पड़ेगा ऐसा मुझे लग रहा है..

आज की ग़ज़ल अल्टीमेट..बधाई स्वीकारे भाई..बहुत बढ़िया लिखते है आप तो..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर गज़ल. बधाई.

नीरज गोस्वामी said...

वहां न कोई भेड़िया था न कोई दरिंदा
गुड़िया रोई थी चेहरा इंसानी देखकर

बेहतरीन ग़ज़ल...हर शेर सच बयानी करता हुआ...लिखते रहें.
नीरज

लिंक विदइन

Related Posts with Thumbnails

कुछ और कड़ियाँ

Receive New Post alert in your Email (service by feedburner)


जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "