अनजान शहर में मिले खजाने बहुत हैं
खेल किस्मत को अभी दिखाने बहुत हैं
हर कदम टूटते हैं सैकडो दिल यहाँ
टूटे बिखरे दिलों के अफ़साने बहुत हैं
कुर्सी के पिछे दौड़कर सभी बावले हुए
इक नाजनीन के देखो दीवाने बहुत हैं
नक़ाब बदल बदल कर जो करते हैं घात
उनको ढुढेंगे कहाँ जिनके ठिकाने बहुत हैं
शायद चलती रहे महफिल देर रात तक
तेरे सामने साकी अभी पैमाने बहुत हैं
पत्थरों से मुलाक़ात अब रोज़ की बात है
आँखों ने भी बसाए ख्वाब सुहाने बहुत हैं
किस किस की दास्ताँ सुनोगे तुम 'सुलभ'
इस जमाने के अन्दर तो जमाने बहुत हैं
- सुलभ जायसवाल