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Thursday, March 11, 2010

दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे


दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे

राजा कबतक महल में टिकेगा  
(दिखावा कबतक चेहरे पे टिकेगा)
वक़्त के दीमक सब चाट लेंगे 
 - सुलभ

39 comments:

M VERMA said...

राजा कबतक महल में टिकेगा
वक़्त के दीमक सब चाट लेंगे
सार्थक नसीहत और रचना
सुन्दर

Randhir Singh Suman said...

nice

Udan Tashtari said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

-बेहतरीन!

Udan Tashtari said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

-बेहतरीन!

Alpana Verma said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे.

वाह!बहुत खूब कहा है यह शेर!
--अच्छे ख्याल हैं .

हेमन्त कुमार said...

बहुत खूब ।
दूसरी बन्द तो और भी जबर्दस्त है भाई !
आभार ..!

नीरज मुसाफ़िर said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

एकदम मस्त लाइने

Mithilesh dubey said...

बहुत खूब कहा भाई आपने ।

दिगम्बर नासवा said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे

हक़ीकत से जुड़े शेर हैं सब ... सुलभ जी आपने सही कहा है .. जीवन को प्यार से ही जिया जा सकता है ...

Abhishek Ojha said...

आसमान से उतर कर देखो, मैं इसे कहता हूँ 'मेरे फ्रेम में आकर देखो/अपने फ्रेम से निकल कर देखो'.
बहुत खूब !

रचना दीक्षित said...

वाह वाह वाह !!!!!!!!!!!!!!!बहुत ही बेहतरीन भाव और ऊपर से ये फोटो मार ही डाला एक तो इतना ऊपर बिठा दिया है फिर कहते हो की खाई गहरी नहीं है.खैर कहते हो तो मान ही लेते हैं हा हा हा .........

डॉ टी एस दराल said...

सकात्मक सोच से परिपूर्ण रचना।

राज भाटिय़ा said...

दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे
एक आशा वादी कविता, प्रकाश की ओर ऊम्मीद की ओर जाती, धन्यवाद

Apanatva said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

bahut sunder panktiya .
pooree rachana aashavadee hai. ati sunder .

Unknown said...

अपनापन - दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे...
भरोसा - ज़रा आसमान से उतर कर देखो...
सहयोग - सब अपने ही खेत से निकले हैं...
सच्चाई - राजा कबतक महल में टिकेगा ...

रानीविशाल said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

बहुत ही बेहतरीन भाव.....धन्यवाद!!

वाणी गीत said...

आसमान से उतर कर देखो ...
अच्छी कविता ...!!

Akshitaa (Pakhi) said...

सुन्दर लिखा...बेहतरीन रचना !!
______________

"पाखी की दुनिया" में देखिये "आपका बचा खाना किसी बच्चे की जिंदगी है".

mridula pradhan said...

khub achchi baat likhi hai .

शरद कोकास said...

राजा कब तक महल मे टिकेगा ..सही सवाल है ।

हितेष said...

सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे
बेहतरीन . ऐसी उम्दा सोच को प्रणाम.

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत सुन्दर.

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!

kshama said...

सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे..
Ekdam sahi kaha aapne...!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

दूरियां मिटाती रचना

KK Yadav said...

बहुत ही खूबसूरत और मनभावन रचना ..बधाई .


________
''शब्द-सृजन की ओर" पर- गौरैया कहाँ से आयेगी

नीरज गोस्वामी said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने सुलभ जी...बधाई स्वीकार करें...
नीरज

हरकीरत ' हीर' said...

दर्द अपना मिल कर बाँट लेंगे
ये जिंदगी प्यार से काट लेंगे

oye hoye ......!!

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

बहुत खूब .....मरने के बाद गुंजारिश ..कर रहे हैं जनाब ...पहले क्यों नहीं पाटि .....????

वन्दना अवस्थी दुबे said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
बहुत सुन्दर शेर.

रंजना said...

Waah !!!! Bahut hi sundar rachna...

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ said...

Bhaiyya kul milake ee kaha ja sakat ki maja aa gayil!
Waqt ke deemak sab chaat lenge...
Humohun bhi chaat lenge ke???
Bahut umda!

kshama said...

Aaj dobara aapki is rachanaka aanand uthaya!

चिराग जैन CHIRAG JAIN said...

आपने काव्यांचल पर मेरी रचनाओं की प्रशंसा की इसके लिए आपका आभार
अब काव्यांचल एक वेबसाइट में तब्दील हो गया है।
कृपया इसको और बेहतर बनाने के लिए सुझाव दें

www.kavyanchal.com

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

are vaah.....kya baat hai.....

daanish said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे

भावनाओं को आंदोलित करती
कामयाब रचना ....
अभिवादन .

Satish Saxena said...

बड़े दिनों से कुछ लिखा नहीं क्या बात है ?

सर्वत एम० said...

रचना के भाव बेहद जानदार हैं. छोटी बहर में बड़ा कारनामा कर दिखाना शायद इसी को कहते हैं. आप मेहनत कर रहे हैं, लोगों का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, इस बड़ा परमार्थ का कार्य और क्या हो सकता है?
आपके ख्याल में मैं आपसे नाराज़ हो सकता हूँ? क्यों? मेरा आपसे खेत-मेंड़ का कोई विवाद है? मेरे भाई, मैं अपनी परेशानियों-उलझनों में जकड़ा हुआ हूँ. मेरा मन खुद मुझे धिक्कारता है लेकिन रोज़गार एक ऐसा बंधन जो सुलभ से बिहार और सर्वत से गोरखपुर छुड़ा देता है.
मैं कभी किसी से नाराज़ नहीं होता और यही है मेरी 'सुन्दरता' का राज़!!!

M VERMA said...

ज़रा आसमान से उतर कर देखो
खाई गहरी नहीं है पाट लेंगे
और फिर
सब अपने ही खेत से निकले हैं
जो सड़े हैं उनको छांट लेंगे
लाजवाब
छू लिया दिल को

निर्झर'नीर said...

awaysome ..gahre or asardaar purmaani bhaav

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "