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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, March 5, 2010

(क्यों सिर्फ) बहादुर जवानों पर आस है


बाढ़ का पानी तो हर साल एक महीने के लिए आता है, और कुछ ले दे कर चला जाता है... मगर उत्तर बिहार के वासियों के आंसूं कब थमेंगे पता नहीं...  ऊपर से महंगाई भी घटने का नाम नहीं ले रही... मेरे कुछ वरिष्ठ साथी भी किन्ही कारणों से नाराज चल रहे हैं...  जाहिर सी बात है ऐसे में हमसे कोई कविता, ग़ज़ल नहीं लिखा जायेगा... पर उनका दर्द तो बताना ही होगा, जिनके पास उनके अपने गाँव में सब कुछ होता है लेकिन सिर्फ गंवाने के लिए. खेत फसल, लघु उद्योग, परिवार से दूर होकर शहर में ठोकरें खाने के लिए आ जाते हैं... 


ठोकरें खाती सांस है 
जिंदगी बदहवास है 

मंजिल को ढूंढ़ रहा  
सफ़र थका उदास है

बाढ़ ने बेघर किया
अब परदेस में वास है 

महंगाई सरपर खेल रही
किसको भूख प्यास है 

जूतों तले रौंदा गया
कमजोर लाचार घास है

आंसू भी कैसे निकले
बच्चे आस पास है

मेले में घूमते नारे-वादे 
गुम हुआ विकास है 
अगली पंक्तियाँ हमारे वर्तमान सरकार के लिए, जिनके सामने राष्ट्राभिमान की कोई कीमत नहीं है... 
दुश्मन संधि कर लेंगे ?
अबकी कूटनीति खास है

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है
***
- सुलभ 


23 comments:

रचना दीक्षित said...

सुलभ जी, क्या कहें आपकी पोस्ट पढ़ कर कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूँ .पर यही नग्न सत्य है. किसी को किसी नहीं पड़ी है.सब अपनी अपनी झोली भरने में लगे हैं और आम आदमी पिसता जा रहा है.सरकार तो ये सोचती है की जवान भर्ती कर रखे हैं जब मुश्किल आएगी तो वो ही घास फूस की तरह कटेंगे. आखिर सरकार वेतन जो दे रही है!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

दुश्मन संधि कर लेंगे ?
अबकी कूटनीति खास है

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है ...


बहुत सार्थक पंक्तियाँ...

निर्मला कपिला said...

मंजिल को ढूंढ़ रहा
सफ़र थका उदास है
सुलभ जी सही बात है बहुत सुन्दर शेर है
महंगाई सरपर खेल रही
किसको भूख प्यास है

जूतों तले रौंदा गया
कमजोर लाचार घास है
लाजवाब आज के आदमी का दर्द झलक रहा है
दुश्मन संधि कर लेंगे ?
अबकी कूटनीति खास है

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है
ये दोनो शेर भी दिल को छू गये। उम्दा रचना के लिये बधाई।

मनोज कुमार said...

बिहार के बारे में पहले, मतलब बिहार विभाजन के पहले, यानी झारखंड अलग होने के पहले कहा जाता था यहां प्रचुरता में दरिद्रता है। अब तो पचुरता भी नहीं रही, सारे खनिज बौल क्षेत्र झारखंड के पास चले गये, और बिहार में रह गई सिर्फ़ दरिद्रता! उसमें भी आधा से ज़्यादा का भाग साल के छह महीने सूखा से ग्रस्त रहता है तो बाक़ी के छ्ह महीने बाढ में डूबा रहता है। आपके इस दर्द को मह्सूस कर रहा हूँ।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 06.03.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/

Urmi said...

वाह बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया है आपने! दिल को छू गयी आपकी ये शानदार रचना! बधाई!

रश्मि प्रभा... said...

ठोकरें खाती सांस है
जिंदगी बदहवास है

मंजिल को ढूंढ़ रहा
सफ़र थका उदास है.....phir bhi manzil kee aas hai

डॉ टी एस दराल said...

क्या करे बिहार । न कोई इंडस्ट्री , न उद्योग। एक गंगा है , जो तबाही फैला देती है।

''अपनी माटी'' वेबपत्रिका सम्पादन मंडल said...

bahut khub

www.maniknaamaa.blogspot.com

شہروز said...

ठोकरें खाती सांस है
जिंदगी बदहवास है

मंजिल को ढूंढ़ रहा
सफ़र थका उदास है
भाई आप तो कवि ..भी हैं ..और क्या अंदाज़ है..शुरूआती पंक्तियाँ तो निसंदेह प्रभावी है..

एक आग्रह है..भाई .... जहां url लिखते हैं या यूँ कहें जब कोई ब्लॉग खुलता है तो उसके नाम से पहले ब्लॉग का लोगो जो कुछ अंग्रेजी अक्षर बी की तरह होता है, दीखता है..लेकिन जनाब यहाँ तो हिंदी में सु दीखता है... .बहुत अच्छा लगा..क्या हम भी ऐसा अपने ब्लॉग में कर सकते हैं..यदि हाँ उत्तर है..तो भाई बताओ न कैसे!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

कटु सत्य को उजागर करती बहुत अच्छी रचना...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

शहरोज जी, शुक्रिया.
आपके गुजारिश पर आपका समाधान भी किये देता हूँ. इसे URL आइकोन कहते हैं या favourite icon भी कहते हैं. आपको मेल कर दिया है, चेक कर के जवाब दिजयेगा.

kshama said...

ठोकरें खाती सांस है
जिंदगी बदहवास है

मंजिल को ढूंढ़ रहा
सफ़र थका उदास है
Dard se sarabor,lekin phirbhi inme dilkashi hai!

दिगम्बर नासवा said...

आज का सत्य है सुलभ जी जो आपने छोटे छोटे शेरों में कह दिया है ..... छोटी बहर में लिखी लाजवाब ग़ज़ल ... हक़ीकत के करीब है ...

Apanatva said...

aaj ka sach ujagar karatee hui ye gazal bahut pasand aaee

Satish Saxena said...

बहुत खूब सुलभ जी !!

अंजना said...

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है

बहुत सही कहा सुलभ जी आप ने !!

हरकीरत ' हीर' said...

दुश्मन संधि कर लेंगे ?
अबकी कूटनीति खास है

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है ...

बहुत सही कहा सुलभ जी.....!!

Abhishek Ojha said...

इस लाचारी-बेवसी पर क्या कहें !

Fauziya Reyaz said...

bahut badhiya....

M VERMA said...

आंसू भी कैसे निकले
बच्चे आस पास है
बच्चो के सामने कमजोरी तो दर्शा नहीं सकते
दिल छू ली रचना ने

संजय भास्‍कर said...

बम बारूद से घिरा भारत
बहादुर जवानों पर आस है
ये दोनो शेर भी दिल को छू गये। उम्दा रचना के लिये बधाई।

संजय भास्‍कर said...

बहुत सही कहा सुलभ जी आप ने !!

आपका अख्तर खान अकेला said...

aadrniy strngi ji aadaab saadr vnde aapke indrdhnush ki chataa bikherte strngi komal shbdon ne hmen to moh liyaa he aapki lekhni ke liyen aapko bdhaai. akhtar khan akela kota rajasthan

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "