अपना हिंदुस्तान जो की वादियों का देश है तो लीजिये कुछ पंक्तियां पेश हैं ...
वे देश मे अलगावादी की भूमिका निभाते हैं
खुद को एक समर्पित राष्ट्रवादी बताते हैं।
इस लोकतांत्रिक गणराज्य के, समाजवाद हिंदुस्तान के
स्वयम्भू साम्यवादी, जनवादी, मनुवादी, इत्यादि इत्यादि खुद को बताते हैं।
वैसे हमारा हिंदुस्तान सदियों से जकरा हुआ है,
ना जाने किन किन वादियों के बोझ से दुहरा हुआ है।
चुनाव मे जातिवादी,
नौकरी मे भाई-भातिजवादी,
वादियों मे आतंकवादी,
घाटियों मे उग्रवादी और
जंगलों मे नक्सलवादी।
हाय! हम और आप सिर्फ़ वादी और प्रतिवादी।
पाण्डेय जी कहते हैं इसके बाद भी एक वादी है जो सब पे भारी है
वो है बढ़ती हुई
आबादी॥
8 comments:
चुनाव मे जातिवादी,
नौकरी मे भाई-भातिजवादी,
वादियों मे आतंकवादी,
घाटियों मे उग्रवादी और
जंगलों मे नक्सलवादी।
हाय! हम और आप सिर्फ़ वादी और प्रतिवादी।
waise pandey ji bhi galat kahan kah rahe hain...
काफी अलग सा अंदाज है आपके लेखन का.प्रभावित करता है..अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आना.
वाद और वादियों का जामना है भाई !
बहुत सुंदर लिखा आप ने लेकिन आबादी सब से बडी वादी है, सहमत जी
वे देश मे अलगावादी की भूमिका निभाते हैं
खुद को एक समर्पित राष्ट्रवादी बताते हैं।nice
ek aur 'vaadi'hai jidhar ham jaa rahe hain-'BARBAADI"
सही लिखा है...
वादी..वादी और वादी--का ज़माना है..
lekin युवा वर्ग इस मुद्दे को समझता है..इस समस्या को दूर करने के लिए कार्यरत है..और प्रतिबद्ध है..यह aap ki kavita ke ruup mein अच्छे संकेत हैं.
bahut achhe.....
Post a Comment