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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Tuesday, October 20, 2009

हिंदुस्तान जो की वादियों का देश है



अपना हिंदुस्तान जो की वादियों का देश है तो लीजिये कुछ पंक्तियां पेश हैं ...

वे देश मे अलगावादी की भूमिका निभाते हैं
खुद को एक समर्पित राष्ट्रवादी बताते हैं।

इस लोकतांत्रिक गणराज्य के, समाजवाद हिंदुस्तान के
स्वयम्भू साम्यवादी, जनवादी, मनुवादी, इत्यादि इत्यादि खुद को बताते हैं।

वैसे हमारा हिंदुस्तान सदियों से जकरा हुआ है,
ना जाने किन किन वादियों के बोझ से दुहरा हुआ है।

चुनाव मे जातिवादी,
नौकरी मे भाई-भातिजवादी,
वादियों मे आतंकवादी,

घाटियों मे उग्रवादी और
जंगलों मे नक्सलवादी।


हाय! हम और आप सिर्फ़ वादी और प्रतिवादी।

पाण्डेय जी कहते हैं इसके बाद भी एक वादी है जो सब पे भारी है
वो है बढ़ती हुई
आबादी॥


Friday, October 16, 2009

दिवाली में साम्य (क्षणिकाएं)




घर में श्रीमती के हाथो फूल-पत्ते गूँथ कर
श्रद्धा के सहारे लक्ष्मी को बुलाया जा रहा है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

बाहर श्रीमान के हाथो 'फुल पत्ते' पीस कर
संयोग के सहारे लक्ष्मी को बुलाया जा रहा है
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~



~~~~~प्रकाशपर्व मंगलमय हो!~~~~~~

Saturday, October 10, 2009

सियासत में लूटेरों की गश्ती देखो तो ज़रा (Ghazal)



लहरों के ऊपर लड़ते कश्ती देखो तो ज़रा
जिंदगी-मौत के बीच मस्ती देखो तो ज़रा

दौड़ते हैं कदम बर्फ पर हाथों में बारूद लिये
दूर सरहद जज्बा-ए-वतनपरस्ती देखो तो ज़रा

साथ चलते बाशिंदों से ये कहाँ की नफरत है
बात बात पे जलते हैं बस्ती देखो तो ज़रा

हुस्न है; तो नाज़ नखरों के गहने भी होंगे
नासमझ दीवानों की ज़बरदस्ती देखो तो ज़रा

शहरों में आपाधापी किराये की छत के लिए
किसानों की जमीं है सस्ती देखो तो ज़रा

कौन
अपना रहनुमा यहाँ क्या हो मुस्तकबिल
सियासत में लूटेरों की गश्ती देखो तो ज़रा ||



(रहनुमा = Leader मुस्तकबिल = Future) [इस post पर आपकी प्रतिक्रिया]


Sunday, October 4, 2009

एक तू ही लाल देश का बाकी सब फटेहाल ( पैरोडी )

मेरे एक दोस्त है जो भोजपुरी फिल्मों/गानों में कलाकारी करते हैं. कुछ दिनों पहले उसने मुझसे कहा था - यार तुम कविताये लिखते हो हास्य व्यंग्य सुनाते हो ग़ज़ल और दोहे भी लिखते हो. कोई फ़िल्मी गीत भी लिखा करो तो मैं इसपर डांस करूँ.

मुझे उसकी बात पसंद आई. एक शाम लिखने बैठा उस वक़्त पुराने MP3 एल्बम के गाने बज रहे थे. जनाब कातिल सिफई की नज़्म जिन्हें पंकज उधास जी ने बेहद खूबसूरती से गाकर दुनिया भर में मशहूर किया है. चांदी जैसा रंग हैं तेरा... गीत लिखने की कोशिश की।
लेकिन मेरी लेखनी जिसे सिर्फ देश समाज की हालत और सत्ता और सियासत में मत्तान्ध लोग ज्यादा नज़र आते हैं, तो यह परोडी बन गया.





खादी कुरता टोपी पहन किया खूब कमाल
एक तू ही लाल देश का बाकी सब फटेहाल

भाई भतीजे साले तुम्हारे रोज़ मलाइयां खाते
उनका कुछ नही लगता तू जो भूखे ही सो जाते
हाय तेरा दर्शन पाने को लोग लम्बी लाइन लगाते...
तू जिसके सर पर रख दे हाथ वो हो जाए मालामाल
एक तू ही लाल देश का बाकी सब फटेहाल....

राजनीत के मंच को तुमने बनाया है अखाड़ा
घोटालों के सारे रिकॉर्ड पल भर में तोड़ डाला
सोने की चिडिया बन गई स्विस बैंक का हवाला...
कुर्सी की ख़ातिर लोकतंत्र में मचाते हो भूचाल
एक तू ही लाल देश का बाकी सब फटेहाल....


संसद से लेकर पंचायत तक चलता तेरा जादू
क़ानून जिसकी जेब में हो कौन करे उसे काबू
सबको भ्रष्ट कर दिया तुने पुलिस हो या बाबू...
तुझे नज़र न लगे किसी की जीतो चुनाव हर साल
एक तू ही लाल देश का बाकी सब फटेहाल....

खादी कुरता टोपी पहन किया खूब कमाल
एक तू ही लाल देश का बाकी सब फटेहाल

Friday, October 2, 2009

सिर्फ एक परिवर्तन आया है - महात्मा गांधी



गांधी जी आज कहते हैं -

भारत के राजनीत में
सिर्फ एक परिवर्तन आया है
की अहिंसा का ''
सत्य के पहले छाया है !

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "