अपना हिंदुस्तान जो की वादियों का देश है तो लीजिये कुछ पंक्तियां पेश हैं ...
वे देश मे अलगावादी की भूमिका निभाते हैं
खुद को एक समर्पित राष्ट्रवादी बताते हैं।
इस लोकतांत्रिक गणराज्य के, समाजवाद हिंदुस्तान के
स्वयम्भू साम्यवादी, जनवादी, मनुवादी, इत्यादि इत्यादि खुद को बताते हैं।
वैसे हमारा हिंदुस्तान सदियों से जकरा हुआ है,
ना जाने किन किन वादियों के बोझ से दुहरा हुआ है।
चुनाव मे जातिवादी,
नौकरी मे भाई-भातिजवादी,
वादियों मे आतंकवादी,
घाटियों मे उग्रवादी और
जंगलों मे नक्सलवादी।
हाय! हम और आप सिर्फ़ वादी और प्रतिवादी।
पाण्डेय जी कहते हैं इसके बाद भी एक वादी है जो सब पे भारी है
वो है बढ़ती हुई
आबादी॥