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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, August 7, 2009

मानेसर में एक शाम (IMT Manesar NH-8, Gurgaon )

ऑटो, बसों, टेम्पुओं में खामोश इंसान है
भारी वाहनों में लदे ओद्योगिक सामान हैं

सुबह शाम कारों की लम्बी लाइने
चौबीसों घंटे गुंजायमान हाईवे .

प्रकृति के नियमो से अनजान इतर
आजीविका के लिए बसाए शहर

शारीर बना मशीन उद्योगों से जुड़कर
खाया पिया ऐसे बस हो जाये बसर

जीवन और उद्योगीकरण का कैसा मेल है
बिजली पानी संकट एक सालाना खेल है

मालिक नाखुश और लाचार हैं मजदूर
व्यवस्था के आगे दोनों हैं मजबूर

यत्र तत्र छाया उदासीनता का जोग
कितना वीरान है मानेसर का उद्योग ..

1 comment:

Urmi said...

बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो सच्चाई का प्रतिक है! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई!

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "