Wednesday, July 29, 2009
लंका दहन (Hasya Vyangya)
रामलीला में लंका दहन का काण्ड चल रहा था।
मंच पर हनुमान जोर जोर से उछल रहा था।
अचानक हो गई गलती भारी। चौपट हो गई पूरी तयारी।
हनुमान सचमुच ही आग लगा दी। पुरे पंडाल में हरकंप मचा दी।
एक सेवक आया भागते हुए। संयोजक से बोला घबराते हुए।
महोदय अनर्थ हो गया, जल्दी कुछ करवाएं।
पंडाल में आग लग गई, चल कर बुझायें।
संयोजक जो था मंत्री का चेला, गुर्राते हुए बोला।
अरे मुरख हम तुझे समझाते हैं, ऐसे मौके बार बार नही आते हैं।
जल जाने दो समूची लंका, आग लगाओ मिलकर सारे।
अपना क्या जाता है, बिमा करवा रखी है प्यारे।
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
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11:45 PM
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Saturday, July 25, 2009
कारगिल के जवान - कारगिल विजय दिवस
जब भी सुनता हूँ कोई असमय मृत्यु का शिकार हो गया
जब भी सुनता हूँ कोई मुठभेड़ में शहीद हो गया
जब भी सुनता हूँ आतिशबाजियों का घमासान या
जब भी सुनता हूँ किसी जनसंहार का नाम
तब मुझको याद आते हैं कारगिल के जवान.
जब भी देखता हूँ कोई बर्फीली पहाड़े
जब भी देखता हूँ कहीं ऊँची चट्टानें
जब भी देखता हूँ कहीं लहू के निशान
तब मुझको याद आते हैं कारगिल के जवान.
जब भी सुनता हूँ कश्मीर घाटियों का नाम
जब भी सुनता हूँ बोफोर्स, ब्रिगेड, मिराज़ का नाम
जब भी सुनता हूँ कूटनीतिक वार्ताओं का दौर या
जब भी सुनता हूँ किसी घुसपैठिये का नाम
तब मुझको याद आते हैं कारगिल के जवान.
हाँ मुझको याद आते हैं कारगिल के जवान
क्योंकि वो थे सच्चे, हिम्मती, महान
वो थे समर्पित नौजवान
उन वीरों को शत शत प्रणाम
उन वीरों को शत शत प्रणाम...
- कारगिल विजय दिवस 26 जुलाई 2000.
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
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7:17 PM
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Wednesday, July 22, 2009
"पूर्ण सूर्य ग्रहण"
सूरज हुआ मद्धम चाँद पसरने लगा
सूर्योदय के वक़्त सूर्यास्त होने लगा
सूर्यास्त होने लगा दिल घबराया मचला
चंद्रमा की कलाओं ने सूरज को निगला
"पूर्ण सूर्य ग्रहण" अद्भूत है ये दृश्य निराला
दिन में दिखे गए तारे आस्मां हुआ काला
ज्योतिष जुट गए शुभ अशुभ के विश्लेषण में
खगोल विज्ञान खोया रहा निरंतर अन्वेषण में॥
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
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8:00 AM
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Sunday, July 19, 2009
राईटर बनाम कंप्युटर - व्यंग्य कविता
कोई कहता है - मैं एक लीडर हूँ, कोई कहता है - फटीचर हूँ तो किसी के नज़र में मैं घनचक्कर हूँ ।
मैं आपको बता दूँ - ना तो मैं लीडर हूँ, न फटीचर या न ही कोई घनचक्कर हूँ ।
मैं तो सिर्फ़ एक कंप्यूटर हूँ।
यह सुन एक सज्जन बोले - आप कंप्यूटर कैसे हैं? हमे थोड़ा समझायेंगे, ज़रा खुलासा करके बताएँगे।
इस पर मैंने कहा - आप सूचना युग में नये मालूम पड़ते हैं, लगता है आप कंप्यूटर का इस्तेमाल नही करते हैं।
असल में मैं 'सातवें जेनरेशन का कंप्यूटर' हूँ जो अभी इस संसार में नही आया है।
सज्जन ने आश्चर्य से अपना मुंह खोला और जिज्ञासा से बोला - सातवें जेनरेशन का कंप्यूटर, ये कैसा होता है?
मैंने कहा - ये दिखने में हम इंसानों जैसा ही होता है। और एक बात पर आप जरूर गौर फरमायें। मुझमे और उस सातवें जेनरेशन के कंप्यूटर में है बहुत सारी समानताएं।
वो बहुत तेज़ गति से गणनाएं कर लेता है, नेचर में सुपर फार्स्ट है।
वैसे मेरे प्रोसेसिंग स्पीड भी फर्स्टक्लास है।
वो कंप्यूटर सेकंड भर में चाँद पर से सूचनाएं ले आएगा।
मुझसे भी आप जो मांगो पल भर में मिल जाएगा।
उसके पास बहुत कैपसिटी वाली मेमोरी होगी, जिसमे वो अनगिनत डाटा सेव कर सकता है।
मेरा ह्रदय भी विशाल है जहाँ भावनाओं का समंदर ठहर सकता है।
उस कंप्यूटर के बॉडी में उसके निर्माता कंपनी का लोगो शीट होता है।
अलबत्ता मेरे प्रमाण-पत्रों पर भी मेरे पिता का नाम फिक्सड होता है।
उसके पास एक महत्वपूर्ण चीज़ होती है - मदरबोर्ड। जिसके बिना वो चल नही सकता, जिसके बगैर वो बेजान है।
मेरे पास भी एक मदर (माँ) है जिसके बिना मेरी दुनिया वीरान है।
हम दोनों में एक और बात ख़ास है - लिखने बोलने के अलावा सोचने वाला सोफ्टवेयर भी साथ है।
उस विलक्षण कंप्यूटर को आप जितना भी इस्तेमाल करले वो कभी पुराना नही होगा, कभी ख़त्म नही होगा।
मुझे भी आप जितना चाहो यूज कर लो मेरी कीमत कभी कम नही होगी, मेरा हौसला पस्त नही होगा।
भविष्य का वह कंप्युटर इतना स्मार्ट होगा की यदि आप उसमे शब्द इनपुट करेंगे तो वह आउट पुट मे कवितायें बनाएगा। मुझे भी आप दर्द और तकलीफें दो तो मैं भी नॉन-स्टाप कवितायें सुनाऊंगा।
इतनी सारी समानताएं होने के बाद भी मुझमे और उस सातवें जेनरेशन के कंप्यूटर में कुछ मौलिक अन्तर होगा।
भले ही वो जीरो मेंटेनेंस पर फुल्ली ऑटोमेटिक हो, मगर उसको वो ही खरीद पायेगा जिसके पास दिमाग और जेब में हजारो का बज़ट हो। लेकिन मुझे तो एक अनाड़ी भी खरीद सकता है, शर्त सिर्फ़ इतनी की उसके दिल में प्यार और इज्ज़त हो।
माना की वह मेडिकल और फाइनेंस के जटिल मामले क्षण भर में सुलझायेगा मगर मेरी तरह खेतों में चने कहाँ से उगायेगा। वो भले ही विद्वान् अर्थशास्त्रियों की तरह लंबे भाषण दे दे लेकिन गरीब भूखी जनता के लिए राशन कहाँ से लायेगा।
वो एडवांस कंप्यूटर बच्चो को मैथ जरूर सिखायेगा लेकिन उसे जंगल की परियों वाली कहानियाँ नही सुनायेगा ।
और जब देखेगा वो आपकी आंखों में आंसू तो उसे पोछने अपना हाथ नही बढ़ाएगा।
क्योंकि वो सातवें जेनरेशन का एक मशीन होगा जिसे लोग कंप्यूटर बोलेंगे ।
और मैं आज के जेनरेशन का एक इंसान हूँ जिसे लोग कवि या राईटर बोलेंगे ॥
Wednesday, July 1, 2009
एक खुशनुमा सहर लिखता हूँ
कुछ ऐसे जिया अब तक की बेखबर लिखता हूँ
न रहज़न न रहबर कोई मेरे मगर लिखता हूँ ।
जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।
इन्किलाब में शामिल हूँ दोस्तो तुम भी देखो
पैगाम-ए-अमन एक खुशनुमा सहर लिखता हूँ।।
न रहज़न न रहबर कोई मेरे मगर लिखता हूँ ।
जेहन से निकाल फेका है अपनी खासियत को
आज से एक आम आदमी का सफ़र लिखता हूँ।
प्यास बुझने की बेचैनी है मौत आने से पहले
जिंदगी को कभी दवा तो कभी ज़हर लिखता हूँ।
खुशबू तुम्हारे साँसों की उस ख़त से जाती नहीं
खोये सफ़र में एक हसीन हमसफ़र लिखता हूँ।
इन्किलाब में शामिल हूँ दोस्तो तुम भी देखो
पैगाम-ए-अमन एक खुशनुमा सहर लिखता हूँ।।
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Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
11:47 PM
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