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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Sunday, August 30, 2009

अपने जन्मदिन पर दादाजी को समर्पित कविता

अपने जन्मदिन (31-अगस्त) की पूर्व संध्या पर यह कविता मेरे दादाजी परमआदरणीय श्री शिवनाथ जायसवाल (अररिया, बिहार) जी को समर्पित है। वे आज 82 की वय में भी दुबले शरीर के साथ कर्मठ सत विचारों से ओतप्रोत है। मेरी इश्वर से प्रार्थना है - उनका आर्शीवाद चौथी पीढी को भी प्राप्त हो।।

मीलों पैदल चलें जीवन भर किए सहस्त्रों काम
मेहनत की एक एक पाई से सफल किए सब काम

साफ़ नीति और सीधी बात कहके लेते वाजिब दाम
माप
तौल में इतने निपुण कभी घटे एक ग्राम

आज दो दशक से ऊपर भये दादीजी का स्वर्गवास
उनकी भूमिका भी स्वयं निभाये ना दिखे कभी उदास

कहते अक्सर मुझसे वे करो लगन से अपना काम
तुझे अर्थ की क्या जरुरत " सुलभ " है तेरा नाम

धरती रुकी सूरज रुकेगा सब करते अपना काम
उठे तुरत जो गिरे कभी, कहते चलना अपना काम

- सुलभ (गुडगाँव, हरयाणा)

6 comments:

हरकीरत ' हीर' said...

जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं ....!!

Creative Manch said...

Many Happy Returns of the Day

भाई आपको जन्म दिन की बहुत-बहुत बधाई

क्रियेटिव मंच की तरफ से हार्दिक शुभ कामनाएं

Anonymous said...

a nice and inspirational poem...

many many happy returns of the day.. happy birthday to you...

Udan Tashtari said...

देर से सही, जन्म दिन की बहुत बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाऐं.

बहुत अच्छा समर्पण लगा दादा जी को. शुभकामनाऐं.

Unknown said...

उत्प्रेरित रचना हमारे बस पूर्वजो की संस्कार की जो धरोहर मिली उसी को बस सहेज ले अर्थ से कही कीमती है !
जन्म दिन की बहुत बधाई

Alpana Verma said...

आप के दादा जी को सादर नमन,
ईश्वर आपकी मनोकामना पूरी करे.

कविता बहुत अच्छी लगी.

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "