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Wednesday, March 7, 2012

वाह होली वाह !!!

 [चित्र द्वारा: सोनाली सिंह ]



तक धिनैया तक धिनैया फागुन के बयार 
आ गईल हो आ गईल होली के त्यौहार 

तक धिनैया तक धिनैया दौड़अ पकड़अ ट्रेन 
जल्दी से पहुँचअ गाँव बीत न जाए रैन 

तक धिनैया तक धिनैया जियरा नहीं बस में 
नशा चढ़ते जात हई सगरे अंग अंग में 

तक धिनैया तक धिनैया उड़े रंग गुलाल 
लगवा ल रंगवा ल  तू हो आपन गाल 

तक धिनैया तक धिनैया ढोलक संग मृदंग 
झाल तबला हारमोनियम में मचल जंग 

तक धिनैया तक धिनैया गाओ मिलके फाग 
सुर में सुर मिल जाये छेड़ो अईसन राग 

तक धिनैया तक धिनैया एकसे एक पकवान 
पुआ पुरी गुझिया बाड़ा और सुपारी पान 

तक धिनैया तक धिनैया जीजा गए ससुराल 
खूब खातिर भईल उनकर का बताई हाल 

तक धिनैया तक धिनैया भांग के करामात 
सुन ल सब केहु आज बुढऊ के जज़्बात 

तक धिनैया तक धिनैया सजना दूर दराज 
गवना न भईल ई साल सजनी बा उदास 

तक धिनैया तक धिनैया छूट गईल बिहार 
दिल्ली बम्बई के चक्कर में जिनगी बेकार 

होली है !!
- सुलभ 


8 comments:

डॉ टी एस दराल said...

सुन्दर फाग ।
होली की शुभकामनायें ।

Unknown said...

तक धिनैया तक धिनैया छूट गईल बिहार
दिल्ली बम्बई के चक्कर में जिनगी बेकार ...!

dil ki baat !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

.

आंचलिक शब्दावली की इस सुंदर सरस रचना के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें सुलभ जायसवाल जी !

वाह होली वाह की तर्ज़ पर कहना चाहूंगा
"वाह सुलभ वाह !"

:)

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

सुन्दर प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...होली की शुभकामनाएं....

Patali-The-Village said...

बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|

Amitabh Chandra said...

Sir, kawita mai PRAWASI Majdoor ki waitha jalakti hai jo maan ko chunai wali hai.--Amitabh

Pawan Kumar said...

sulabh Ji
तक धिनैया तक धिनैया ढोलक संग मृदंग
झाल तबला हारमोनियम में मचल जंग
होली की इस तान का क्या कहना.... वैसे होली होती ही ऐसी है... देर से ही सही होली की मुबारकबाद

Ravikant yadav said...

कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आए

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"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "