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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, December 21, 2012

न जाने नया साल क्या गुल खिलाये


ये दिल जब भी टूटे न आवाज़ आये 
यूँ ही दिल ये रस्मे मोहब्बत निभाये 

वो भी साथ बैठे हँसे और हंसाये 
कोई जाके रूठे हुए को  मनाये 

मेरी दास्ताने वफा बस यही है 
युगों से खड़ा हूँ मैं पलकें बिछाये 

न पूछो कभी ज़ात उसकी जो तुमको 
कहीं तपते सहरा में पानी पिलाये 

खलल नींद में बहरों की कब है पड़ता 
कोई चीख के शोर कितना मचाये 

मेरे सपनो की राह में मुश्किलें हैं 
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये 
- सुलभ
(नोट: सुबीर संवाद सेवा के मंच से तरही ग़ज़ल )

Friday, September 14, 2012

मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं




मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं 
साथ चलती जिंदगी से क्यूँ खफा रहता हूँ मैं 

आएगा इकदिन ज़माना संजीदा रहता हूँ मैं   
धूप बारिश सब भुलाकर बस डटा रहता हूँ मैं  

आँधियों में भी गिरा हूँ, धूप में भी मैं जला 
ख़्वाब जो हरदम सुहाना देखता रहता हूँ मैं 

हाले दिल कैसा होगा जब होगा उनसे सामना
राह चलते दिल ही दिल में पूछता रहता हूँ मैं

आबरू जम्हूरियत की रहनुमा सब ले उड़े 
बेसहारा मुल्क लेकर चीखता रहता हूँ मैं  

मैं जो हुआ घायल तो आएं लोग मुझको देखने 
टूटने के बाद भी क्या आईना रहता हूँ मैं 
 - सुलभ

Friday, May 25, 2012

मौसमी हम क्या खोजें (Ghazal)

 
मौसमी हम क्या खोजें
कुदरती हम क्या खोजें

रात दिन बस जल रहे
जिंदगी हम क्या खोजें

चाँद में ही दाग है
चांदनी हम क्या खोजें

तीरगी ही तीरगी
रोशनी हम क्या खोजें

बेहयायी जिस तरफ
सादगी हम क्या खोजें

मौत खुद ही आएगी
दुश्मनी हम क्या खोजें

राह चलते मिली ग़ज़ल
शायरी हम क्या खोजें

मुफलिसी के दौर में
सनसनी हम क्या खोजें

 
- सुलभ

Wednesday, March 7, 2012

वाह होली वाह !!!

 [चित्र द्वारा: सोनाली सिंह ]



तक धिनैया तक धिनैया फागुन के बयार 
आ गईल हो आ गईल होली के त्यौहार 

तक धिनैया तक धिनैया दौड़अ पकड़अ ट्रेन 
जल्दी से पहुँचअ गाँव बीत न जाए रैन 

तक धिनैया तक धिनैया जियरा नहीं बस में 
नशा चढ़ते जात हई सगरे अंग अंग में 

तक धिनैया तक धिनैया उड़े रंग गुलाल 
लगवा ल रंगवा ल  तू हो आपन गाल 

तक धिनैया तक धिनैया ढोलक संग मृदंग 
झाल तबला हारमोनियम में मचल जंग 

तक धिनैया तक धिनैया गाओ मिलके फाग 
सुर में सुर मिल जाये छेड़ो अईसन राग 

तक धिनैया तक धिनैया एकसे एक पकवान 
पुआ पुरी गुझिया बाड़ा और सुपारी पान 

तक धिनैया तक धिनैया जीजा गए ससुराल 
खूब खातिर भईल उनकर का बताई हाल 

तक धिनैया तक धिनैया भांग के करामात 
सुन ल सब केहु आज बुढऊ के जज़्बात 

तक धिनैया तक धिनैया सजना दूर दराज 
गवना न भईल ई साल सजनी बा उदास 

तक धिनैया तक धिनैया छूट गईल बिहार 
दिल्ली बम्बई के चक्कर में जिनगी बेकार 

होली है !!
- सुलभ 


Monday, February 27, 2012

केवल बारह आने निकले

कल दिल्ली के मोलारबंद गाँव से गुजर  रहा था   बच्चो की टोली ने पानी फेंककर  मुझे होली की हुल्लर बधाई दी. मौसम बदल रहा है तो बहुत कुछ बदल रहा है. कुछ पुराने दर्द में कमी हुई तो कुछ नए दर्द में इजाफा भी हो रहा है. बाकी सब नोर्मल है...

हम जिसे समझाने निकले
वो ही हमे घुमाने निकले

क़र्ज़ किसी ने नहीं लौटाया
तकादा की तो बहाने निकले

टच-मी किस-मी गीत बने
बच्चे बच्चे गाने निकले

जिसने दिया था हक हमको
आज माँगा तो ताने निकले

सुब्ह शाम क्रिकेट में डूबे  
कैसे कैसे दीवाने निकले

एक रुपया कमा कर आया
केवल बारह आने निकले 

बिखरे सारे तिनके चुनकर
सपने फिर से सजाने निकले  


लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "