ये दिल जब भी टूटे न आवाज़ आये
यूँ ही दिल ये रस्मे मोहब्बत निभाये
वो भी साथ बैठे हँसे और हंसाये
कोई जाके रूठे हुए को मनाये
मेरी दास्ताने वफा बस यही है
युगों से खड़ा हूँ मैं पलकें बिछाये
न पूछो कभी ज़ात उसकी जो तुमको
कहीं तपते सहरा में पानी पिलाये
खलल नींद में बहरों की कब है पड़ता
कोई चीख के शोर कितना मचाये
मेरे सपनो की राह में मुश्किलें हैं
न जाने नया साल क्या गुल खिलाये
- सुलभ
(नोट: सुबीर संवाद सेवा के मंच से तरही ग़ज़ल )
(नोट: सुबीर संवाद सेवा के मंच से तरही ग़ज़ल )