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Monday, March 7, 2011

शिकवे सारे मन के धो ले

आँखों से वे  जब भी बोले
राज वफ़ा के अपने खोले

दिल से दिल की बात हो गई 
चुपके  चुपके  धीमे  हौले

कैसे भूलूँ  अपना बचपन
चार आने के चार टिकोले
 
(मेरे छोटे शहर अररिया जिला की स्थिति )
फसलें सूखी,  भीगे सपने
बाढ़ से पहले बरसे शोले

पल में माशा पल में तोला 
एक इंसां के कई कई चोले

छोटी   छोटी  गजलों में  तू
सुंदर सुंदर शब्द पिरो ले

दुनिया भर के सुख को समेटे
देख साधू के सिर्फ एक झोले

बरसों बाद  मिले हैं  अपने
शिकवे सारे  मन के धो ले

हाले दिल 'सुलभ' लिक्खा कर  
पढ़ कर मन  तो हल्का हो ले ||



20 comments:

दिगम्बर नासवा said...

बरसों बाद मिले हैं अपने
शिकवे सारे मन के धो ले

आज तो सच में शिकवे आपको मिटाने पढेंगे ... इतने इतने दिनों बाद क्यों लिखते हो ...
आशा है सब ठीक ठाक होगा .. मज़ा आ गया इस ग़ज़ल को पढ़ कर ..

पी.सी.गोदियाल "परचेत" said...

फसलें सूखी, भीगे सपने
बाढ़ से पहले बरसे शोले

पल में माशा पल में तोला
एक इंसां के कई कई चोले
बहुत खूब , बड़े दिनों बाद कलम उठाने पर एक पर पुनह आपका स्वागत !

Dr Xitija Singh said...

फसलें सूखी, भीगे सपने
बाढ़ से पहले बरसे शोले ...

मानो अपने दर्द पियो दिया हो आपने शब्दों में ... बहुत खूब ..

डॉ टी एस दराल said...

पल में माशा पल में तोला
एक इंसां के कई कई चोले

दुनिया भर के सुख को समेटे
देख साधू के सिर्फ एक झोले

बहुत सुन्दर बातें कहीं हैं । बढ़िया ।

kshama said...

बरसों बाद मिले हैं अपने
शिकवे सारे मन के धो ले

हाले दिल 'सुलभ' लिक्खा कर
पढ़ कर मन तो हल्का हो ले ||
Wah!Saaree panktiyan sundar hain,par uprokt khaas hee pasand aayeen!

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

@दिगंबर जी, गोदियाल जी, आपके स्नेह से अभिभूत हूँ. असल में इस साल प्रायोरिटी मिशन कुछ और है सो ब्लॉग तो आप सबों के और अन्यों के पढ़ लेता हूँ, कुछ टिप्पणियों में हाल समाचार भी बता देता हूँ. पर खुद के ब्लॉग पर निरंतर लिखना मुश्किल होता है. बीच बीच में आता रहूँगा. शुक्रिया आप सबों का.!!

ZEAL said...

.

दिल से दिल की बात हो गई
चुपके चुपके धीमे हौले ...

दिल से दिल की बात अक्सर ऐसे ही होती है , धीमे-धीमे, हौले-हौले....

.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

बरसों बाद मिले हैं अपने
शिकवे सारे मन के धो ले

बहुत सुंदर पंक्तियाँ

Mansoor ali Hashmi said...

छोटी बहर , उम्दा शेर.
विशेष अच्छे लगे:-

बरसों बाद मिले हैं अपने
शिकवे सारे मन के धो ले

हाले दिल 'सुलभ' लिक्खा कर
पढ़ कर मन तो हल्का हो ले .

ये भी:-
छोटी छोटी गजलो में तू,
सुन्दर सुन्दर शब्द पिरोले.

-m.hashmi

राज भाटिय़ा said...

बहुत खूबसूरत रचना, धन्यवाद

vijaymaudgill said...

फसलें सूखी, भीगे सपने
बाढ़ से पहले बरसे शोले


Khoobsurat rachna k liye badhai

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह, सुलभ जी, क्या गजब धाय है आपने ... पढकर मन प्रेअसंना हो गया ... साथ ही ऐसा असरदार शेर के क्या कहने ...

फसलें सूखी, भीगे सपने
बाढ़ से पहले बरसे शोले

रचना दीक्षित said...

हाले दिल 'सुलभ' लिक्खा कर
पढ़ कर मन तो हल्का हो ले ||

यह बात बहुत अच्छी है. दिलो-दिमाग पर संयम आज के वख्त कि सबसे बड़ी जरूरत है. सुंदर विचारों से ओतप्रोत बढ़िया नज़्म.

Urmi said...

मैं पिछले कुछ महीनों से ज़रूरी काम में व्यस्त थी इसलिए आपके ब्लॉग पर नहीं आ सकी!
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बढ़िया लगा!

Patali-The-Village said...

मज़ा आ गया इस ग़ज़ल को पढ़ कर|धन्यवाद|

लोकेन्द्र सिंह said...

वर्षों बाद मिले सुलभ जी....
उनको पढ़ के आनंद भाई लेले..... \
उत्तम रचना सुलभ भाई बधाई हो....

लोकेन्द्र सिंह said...

आपके प्रोजेक्ट की विस्तृत जानकारी चाहूँगा ताकि मैं आपके साथ जुड़ सकूँ....
lokendra777@gmail.com
9893072930

Amit Sharma said...

आप को होली की हार्दिक शुभकामनाएं । ठाकुरजी श्रीराधामुकुंदबिहारी आप के जीवन में अपनी कृपा का रंग हमेशा बरसाते रहें।

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनायें!

Dinesh pareek said...

आप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
मेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "