दिन प्रतिदिन उधेड़बुन बढ़ती जा रही, जो कहना चाह रहा था वो कह नहीं पा रहा हूँ. कुछ ऐसे ही हालात में जाने क्या कह गया. लीजिये एक छोटी सी बेबहर ग़ज़ल -
रस्ता रोक कर
खड़ा क़ातिल है
भरोसा करूँ क्या ?
दोस्त काबिल है
मेरे गुनाहों में
तक़दीर शामिल है
बार बार फिसलता
आवारा एक दिल है
भाव हैं शब्द नहीं
शायरी मुश्किल है
अज़ब मुश्किल है
दूर मंजिल है
दूर मंजिल है
रस्ता रोक कर
खड़ा क़ातिल है
भरोसा करूँ क्या ?
दोस्त काबिल है
मेरे गुनाहों में
तक़दीर शामिल है
बार बार फिसलता
आवारा एक दिल है
भाव हैं शब्द नहीं
शायरी मुश्किल है
- सुलभ