यूँ तो हिंदी ब्लोगरी का स्वाद तीन साढ़े तीन साल पहले २००७ में (नारद अक्षरग्राम के सौजन्य से) चखा था. वर्ष २००८ के अंत में चिट्ठाजगत के संपर्क में आया.
परन्तु ब्लॉगजगत के स्नेहीजनो से परिचय तब हुआ जब पिछले साल २००९ अगस्त के ही महीने में ब्लोगवाणी से जुड़ा था. कह सकते हैं की सबके साथ चलने का "वास्तविक सफ़र का आनंद" एक साल से है.
ब्लॉगजगत के सदस्यों को मिलाने की दिशा में किये गए कुछ उल्लेखनीय कार्यों में, मैं बधाई देता हूँ साहित्य शिल्पी वाले श्री राजीव रंजन जी को, मैं आदरणीय श्री बी.एस.पाबला जी को बधाई देता हूँ, उनके समर्पित भावनाओं के लिए. चूँकि आज का दिन मेरे लिए बहुत ख़ास है. हिन्दी ऊर्दू साहित्य प्रेमी होने के नाते मेरे लिए सभी रचनाकारों के ब्लॉग महत्वपूर्ण है, ऐसे ढेरों ब्लॉग हैं जहाँ कुछ संवेदनशील शब्द-रचना देख पढ़ जेहन में देर तक हलचल होती है. आज की पोस्ट मैं समर्पित करता हूँ, अपने एक ब्लोगर साथी "हरकीरत 'हीर" के नाम. जिनका प्रोत्साहन मुझे नियमित मिलता रहा है.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
उम्मीद
जो अनमने हवाओं के संग बहते हैं
परिचित पत्थरों से टकराते हैं,
कहीं आराम से बैठ नहीं पाते
खामोश चलते वक़्त की तपिश कहीं झुलसा न दें
उम्मीद के जर्द चहरे को राख न कर दे.
उम्मीद जो मोहब्बत से लबालब
दरिया तक पहुंचना चाहते हैं.
सो बस चलते रहते हैं
आँखों की नमी के साथ
वक़्त जरुरत यही
आंसू प्यास भी बुझाते हैं.
हालंकि वह दरिया कब की सूखी पड़ी है
पर निशान तो वहीँ कायम है.
कभी न कभी बर्फ पिघलेंगे
और इसी निशां का रुख करेंगे
फिर जब दरिया अपने रवानी में होगी
दर्द के गठरी को बहा ले जायेगी
फिलवक्त तो उम्मीदों के बोझ
तुम पलकों पर उठाये रखना
कदम बढाते रहना वफ़ा की ओर
जब तक साँसे चल रही है
तरन्नुम मिला करेंगे.
दर्द के अँधेरे में रोज़ यूँ ही
नज़्म खिला करेंगे.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
आदरणीय हरकीरत जी,
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत मुबारकबाद!!
आप की एक नज़्म जो बहुत ख़ास है....
नजरिया ......
उसकी नज़रें देख रही थीं
रिश्तों की लहलहाती शाखें .....
और मेरी नज़रें टिकी थी
उनकी खोखली होती जा रही
जड़ों पर .......!!
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
( अपना जन्मदिन भी मैं आज ही साझा कर रहा हूँ :).......सुलभ