Monday, August 25, 2008
त्रासदी (भ्रष्ट्र तंत्र के ख़िलाफ़ आवाज़ )
उत्तर से लेकर दक्षिण तक
पूरब से लेकर पश्चिम तक
भिन्न भिन्न लोग हैं, मौसम है और
बहुत सी संस्कृति है.
विविधताओं से भरी अपने देश की धरती है.
फिर राजनीति के क्यूँ एक जैसे रंग हैं.
सबके इरादे नेक हैं.
जमकर खाइए, उनकी नीति एक है.
जब भी देश में कोई आपदा आई है
राहत के नाम पर हमारे नेताओं, अफसरों ने
अपनी जेबों में चांदी उगाई है.
न्याय के लिए तरसते गरीब रहे सदा भूखे.
चाहे बिहार में आई हो बाढ़
या गुजरात में पड़े सूखे !!
Saturday, August 16, 2008
15 अगस्त 2008
१५ अगस्त की सुबह दिल्ली के कार्यस्थल पर आज़ादी पर्व मनाने के बाद मैं अपने कमरे(किराये के फ्लैट) में लौटा तो बहुत खुश था. फिर एक एक कर बहुत तेज़ी से वो सारे पिछले १५ अगस्त जो मैंने अपने अररिया में बिताये थे मेरे जेहन में काफ़ी देर तक मचलते रहे. मैंने महसूस किया की मेरे अपरिपक्व 18 वां साल आज मेरे 25 वें साल पर हंस रहा था. मुझको वो सब याद रहा था किस प्रकार १५ अगस्त के दिन मुझमे एक लौह पुरूष की आत्मा आ जाती थी. सुबह 5 बजे जागने के बाद रात को 11 बजे घर लौटने तक मैं विभिन्न कार्यक्रमों में व्यस्त रहता था. अपने मुहल्ले या स्कूल के झंडात्तोलन, जिला प्रशाशन द्वारा नेताजी सुभाष स्टेडियम के भीड़ में भाषण, झंडात्तोलन और झांकियों के बाद दोस्तों के साथ अन्य ऑफिस के चक्कर कहीं नाटको/प्रदर्शनों के बाद दोपहर में घर को अल्प समय के लिए आना फिर स्टेडियम में फैंसी प्रतियोगिता का दर्शन और पुरस्कार वितरण समारोह में शामिल होने के बाद शाम में सांस्कृतिक आयोजन में हिस्सेदारी करने की कोशिश तो कभी कविता-व- मुशायरा के मंच पर शिरकत करने की कोशिश. बिना थके इस अवसर के इंतज़ार में शायद आज मंच पर कुछ सुनाने का मौका मिल जाये. एक मौका जब साल 2001 के सभा भवन में वरिष्ठ कवियों और शायरों के बिच अपनी कविता सुनाने का मिला तो मुझे उस रात काफ़ी सुकून मिला फिर मैं ग़मगीन हो गया यह सोचकर की अररिया से बहुत दूर जहानाबाद की तस्वीर पर मैंने जो कविता सुनाई क्या स्थिति सचमुच इतनी भयानक है. उन दिनों तो अखबारों में ऐसी ही खबरे अक्सर छपती थी - और मेरा मन उसपर लंबे लेख लिखने के बजाये चाँद पंक्तियों की कविता लिखा करता. प्रस्तुत है उस कवि सम्मलेन में बोली गई कुछ लाइने -
(१)ज़ातिभूमि विवाद में जब बह जाये भाईचारा
खुनी खेल की होली में चीखे गाँव सारा
चीखे गाँव सारा कौन सुनेगा किसकी बात
आतंक के साए में कटती सारी रात
कह 'सुलभ' कविराय कैसे नींद आये
पता नही कब नरसंहार हो
(२)
घरियाली आंसू बहाये लाशें वे गिनवाकर
की मिलेगा मुवावजा कहते हमदर्दी जताकर
कहते हमदर्दी जताकर अब नही होगा खुनी खेल
दंगाइयों से मिलकर वे करते रेलमपेल
कह 'सुलभ' कविराय क्या करेगी जनता बेचारी
सत्ताधारी नेताओं की जब हो करतूत सारी
.... और आज दिल्ली में 15 अगस्त बिताने के बाद स्वयं में आज़ादी पर्व के एहसास को भरपूर महसूस नही कर पाया। यहाँ 90 प्रतिशत विद्यार्थियों, नौजवानों को घर की छतों पर सुबह से शाम तक सिर्फ़ पतंगबाजी में व्यस्त पाया.
राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में आज़ादी पर्व शायद सिर्फ़ लाल किले और टेलिविज़न प्रसारणों तक ही महदूद है. एक शेर याद आ रहा है -
इस दौर-ऐ-तरक्की के अंदाज़ निराले हैं
जेहन में अंधेरे और सड़कों पर उजाले हैं
(१)ज़ातिभूमि विवाद में जब बह जाये भाईचारा
खुनी खेल की होली में चीखे गाँव सारा
चीखे गाँव सारा कौन सुनेगा किसकी बात
आतंक के साए में कटती सारी रात
कह 'सुलभ' कविराय कैसे नींद आये
पता नही कब नरसंहार हो
(२)
घरियाली आंसू बहाये लाशें वे गिनवाकर
की मिलेगा मुवावजा कहते हमदर्दी जताकर
कहते हमदर्दी जताकर अब नही होगा खुनी खेल
दंगाइयों से मिलकर वे करते रेलमपेल
कह 'सुलभ' कविराय क्या करेगी जनता बेचारी
सत्ताधारी नेताओं की जब हो करतूत सारी
.... और आज दिल्ली में 15 अगस्त बिताने के बाद स्वयं में आज़ादी पर्व के एहसास को भरपूर महसूस नही कर पाया। यहाँ 90 प्रतिशत विद्यार्थियों, नौजवानों को घर की छतों पर सुबह से शाम तक सिर्फ़ पतंगबाजी में व्यस्त पाया.
राष्ट्र की राजधानी दिल्ली में आज़ादी पर्व शायद सिर्फ़ लाल किले और टेलिविज़न प्रसारणों तक ही महदूद है. एक शेर याद आ रहा है -
इस दौर-ऐ-तरक्की के अंदाज़ निराले हैं
जेहन में अंधेरे और सड़कों पर उजाले हैं
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
7:35 PM
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Thursday, August 14, 2008
आओ बच्चो तुम्हे दिखायें (parody)
आओ बच्चो तुम्हे दिखायें झांकी हिन्दुस्तान की
भ्रष्ट्राचार घोटाला और सत्ता घमासान की
जय हो प्रजातंत्र ! जय हो प्रजातंत्र !!
उत्तर में कश्मीर को देखो खुनी आतंकवाद है
दक्षिण में वीरप्पन का काला साम्राज्य है
यमुना जी के तट को देखो प्रदुषनो का अम्बार है
गाँव गाँव और नगर नगर में यहाँ भयानक बढ़ है
देखो ये तस्वीर है अपने बदहाल हिंदुस्तान की
भ्रष्ट्राचार घोटाला और सत्ता घमासान की
जय हो प्रजातंत्र ! जय हो प्रजातंत्र !!
ये है अपना राजनेता नाज़ हैं इन्हे सरकार पे
इनको मतलब हवाई यात्रा और विदेशी कार से
ये तो अपनी रोटी सेंके साम्प्रदायिकता की आग में
संविधान की धज्जियाँ उड़ती यहाँ हर साल चुनाव में
निर्दोषों का रक्त है तिलक इनके अभिमान की
भ्रष्ट्राचार घोटाला और सत्ता घमासान की
जय हो प्रजातंत्र ! जय हो प्रजातंत्र !!
सुरक्षित नही यहाँ की जनता सबके सर परेशानी है
माहौल कितना जहरीला है खून में भी पानी है
कैसे कहें भारत महान कल्पना भविष्य की बेमानी है
रक्षक ही भक्षक बन गए शेष यही कहानी है
रो रहा गाँधी सुभाष देख हालत हिन्दुस्तान की
भ्रष्ट्राचार घोटाला और सत्ता घमासान की
जय हो प्रजातंत्र ! जय हो प्रजातंत्र !!
जय हो प्रजातंत्र ! जय हो प्रजातंत्र !!
-सुलभ
रचना तिथि : 10 अगस्त 2003
ब्लॉग प्रकाशन तिथि : 14 अगस्त 2008
Online in Hindi Posted by (Sulabh Jaiswal)
Sulabh Jaiswal "सुलभ"
समय
7:24 PM
4
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