मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं
साथ चलती जिंदगी से क्यूँ खफा रहता हूँ मैं
आएगा इकदिन ज़माना संजीदा रहता हूँ मैं
धूप बारिश सब भुलाकर बस डटा रहता हूँ मैं
आँधियों में भी गिरा हूँ, धूप में भी मैं जला
ख़्वाब जो हरदम सुहाना देखता रहता हूँ मैं
हाले दिल कैसा होगा जब होगा उनसे सामना
राह चलते दिल ही दिल में पूछता रहता हूँ मैं
आबरू जम्हूरियत की रहनुमा सब ले उड़े
बेसहारा मुल्क लेकर चीखता रहता हूँ मैं
मैं जो हुआ घायल तो आएं लोग मुझको देखने
टूटने के बाद भी क्या आईना रहता हूँ मैं