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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Friday, September 14, 2012

मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं




मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं 
साथ चलती जिंदगी से क्यूँ खफा रहता हूँ मैं 

आएगा इकदिन ज़माना संजीदा रहता हूँ मैं   
धूप बारिश सब भुलाकर बस डटा रहता हूँ मैं  

आँधियों में भी गिरा हूँ, धूप में भी मैं जला 
ख़्वाब जो हरदम सुहाना देखता रहता हूँ मैं 

हाले दिल कैसा होगा जब होगा उनसे सामना
राह चलते दिल ही दिल में पूछता रहता हूँ मैं

आबरू जम्हूरियत की रहनुमा सब ले उड़े 
बेसहारा मुल्क लेकर चीखता रहता हूँ मैं  

मैं जो हुआ घायल तो आएं लोग मुझको देखने 
टूटने के बाद भी क्या आईना रहता हूँ मैं 
 - सुलभ

लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "