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अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Monday, March 28, 2011

एक नयी क्रान्ति की शुरुवात...

(कार्य की अधिकता के कारण पोस्ट पब्लिश करने में थोडा विलम्ब हुआ है.)
अमर शहीद भगत सिंह तो हमारे दिल में रहते हैं, जिन्होंने कहा था  "क्रांति का मतलब यह नहीं कि हम सिर्फ संघर्ष के लिए उत्प्रेरित करें और ना ही ये कभी किसी के व्यक्तिगत प्रतिशोध का माध्यम बने. यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं है. क्रांति इसलिए जरुरी है जहाँ से एक बेहतर नींव पर व्यवस्थित समाज के पुनर्निर्माणके लिए कार्यक्रम चलाये जाएं."

ये ऐसी बातें है जो मुझे सदैव प्रेरित करती है राष्ट्रहित में चिंतन करने एवं कुछ योगदान करने के लिए, फलस्वरूप हाल ही में मैंने कुछ गंभीर कार्य करने का मन बनाया है, अब उस दिशा में अग्रसर भी हूँ. "बातें बिजनस की" सीरीज को आगे बढाते हुए पोस्ट यहाँ प्रस्तुत है - हम हैं भारत के पढ़े लिखे मूरख नौजवान.


बहरहाल इस साल की होली भी यादगार रही. नए कार्यस्थल पर नए साथियों के बीच केवल शब्दों से होली खेली गयी. एक में दर्जन का मजा उठाया. आजकल हास्य लिखने की कोशिश करता हूँ तो मामला कुछ जम नहीं पाता. फिर भी एक सामयिक ताजा शेर आप सबकी ओर फेंकता हूँ.


"इन्टरनेट में फंसे और सरेआम हो गए
एक क्लिक किया और बदनाम हो गए
ख़त नोटिस समाचार बधाई विज्ञापन
इमेल के बौछार में सब स्पाम हो गए "
  - सुलभ 

Saturday, March 19, 2011

~~~वाह होली वाह~~~



सब से पूछ रहे हैं - आज तारीख केतना है, और कौन दिनवा होली है.
लेकिन कोई ब्लोगर कुछ बता नहीं रहा है. जब तक कोई बताता नहीं है तब तक हम यहीं बैठ के भांग घोटल लस्सी पीते रहेंगे. 


तब तक आप लोगन गीत सुनिए...

रंग भरी पिचकारी पिया
तुमने जो चलाई
अंग अंग भीग गया
रंगों से नहाई.
झूम रही बागों में कलियाँ
डाली डाली बौराई
मस्त फागुनी हवाओं की
गुनगुनाती होली आई
रंगों से सराबोर हुई
मेरी सूरत भोली
मैं तो तुमसे हारी 'सुलभ'
और न करो ठिठोली
प्रीत का रंग बरसाना
मेरे जीवन भर हमजोली
रहूँ सदा तेरी बाहों में
मिटे न प्रेम की रोली।


(~~~बधाई~~~बधाई~~~बधाई~~~)

Monday, March 7, 2011

शिकवे सारे मन के धो ले

आँखों से वे  जब भी बोले
राज वफ़ा के अपने खोले

दिल से दिल की बात हो गई 
चुपके  चुपके  धीमे  हौले

कैसे भूलूँ  अपना बचपन
चार आने के चार टिकोले
 
(मेरे छोटे शहर अररिया जिला की स्थिति )
फसलें सूखी,  भीगे सपने
बाढ़ से पहले बरसे शोले

पल में माशा पल में तोला 
एक इंसां के कई कई चोले

छोटी   छोटी  गजलों में  तू
सुंदर सुंदर शब्द पिरो ले

दुनिया भर के सुख को समेटे
देख साधू के सिर्फ एक झोले

बरसों बाद  मिले हैं  अपने
शिकवे सारे  मन के धो ले

हाले दिल 'सुलभ' लिक्खा कर  
पढ़ कर मन  तो हल्का हो ले ||



लिंक विदइन

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जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "