जब किसी मरीज की तबियत मे कोई सुधार नही होता तब डाक्टर एक सलाह देते हैं जाईए किसी नए जगह पर कुछ दिन बिताईए नए लोगों से मिलिये, सब कुछ सही हो जाएगा. उदासियों के बादल छंट जाएंगे. कुछ भी खाना रुचेगा, अपने काम मे फिर से मन लगने लगेगा. मतलब आपकी जिंदगी खुबसूरत हो जायेगी. ये बात बिलकुल सही है मैने खुद पर आजमाया और सफल हुआ.
पिछले तीन चार सालों मे पढाई, मनोनुकूल नौकरी की तलाश, सुंदर भविष्य निर्माण के चक्कर मे आफिस और निवास के बहुत से जगह बदले. इस दौरान २०-३० के युवाओं के बीच ज्यादा समय गुजरा. दिल्ली (एन.सी.आर) मे जो एक बात हर जगह देखने को मिली वो ये कि ज्यादातर युवा महानगरीय जीवानशैली मे खुद को परफेक्ट रखने की कोशीश में संघर्ष कर रहे है. सैटेलाईट चैनलों के दिखावे, बहकावे और प्रिंट व टेलीविजन विज्ञापणों के मायाजाल में गिरफ्त हैं. जो बेरोजगार है ऐसा लगता है उनके सामने विकल्पों की भारी कमी है. वे परेशान हैं एक अदद जॉब के लिये. वे अपना रिज्युमे कुछ खास सेक्टरों मे ही भेज रहे हैं जैसे आई.टी. (सोफ्टवेयर, हार्डवेयर, नेटवर्किंग ), फाईनांस (बैंकिग, इंसोरेंश, शेयर ट्रेडिंग), कालसेंटर, बी.पी.ओ और अंत मे कोई बात न बने तब सेल्स एंड मार्केटिंग. स्वयं का बिजनेस शुरू करने का जोश या ख्याल न के बराबर!
जो युवा जॉब मे हैं उनकी दिनचर्या मे भी मानो विकल्पों की भारी कमी है. ऑफिस से शाम में तो कभी रात नौ दस बजे तक बाहर ही डीनर एंजोय करते हुये थक कर आएंगे. थके हुये न भी हों तो भी बहुत थके होने का अहसास कराएंगे. पी.जी. मे अथवा फ्लैट में साथ रहने वाले रूममेट्स से कुछ ऐसी चर्चा करेंगे. "यार शादी से पहले सेक्स जरूरी है... तुम्हारी कैसी चल रही है... हां सिर्फ मोबाईल पर बातें होती है देखें कब तक वो हां करती है..." वैसे शादी का मूड किसी का नही हैं... कोई कहता है "मैं भी जाब चेंज की सोच रहा हुं... दो साल का इक्सपीरिएंस होने वाला है... पैकेज यहां बढ़ती है तो ठीक वर्ना कंपनीयों की कमी थोड़े है.... पूणे से भी एक काल आई हुयी है..." कोई एम.टी.वी. रोडीज देखते हुये कहता है "तू एक बार ट्राई कर जिंदगी मे एडवेंचर का मजा ले... यहां साली नाइट शिफ्ट बी.पी.ओं मे क्या रक्खा है..." कभी ये सुनने को मिलता "अरे तू खाली डिनर पैक कर लाया, बीयर नही लाया! साले आज तुम्हारी ट्रीप है भूल गया..." तो कभी किसी संडे की शाम, "आज बारह बजे तक सोया हफ्ते भर की थकान मिटाई फिर कपड़े सपड़े धोये, द चीकन लीकन(नॉएडा का एक रेस्टोरेंट ) वाले से लंच मंगवाया, लैपटोप पे वाल स्मिथ की मूवी इंडीपेंडेंस डे देखा. तुमने क्या किया सारा दिन..." "मैं तो ईवेंट पे गया था गुड़गावं एम्बीयेंस माल वहाँ रीयल एस्टेट की एक बडीं क्लाईंट से मिलना था. कंपनी ने मेरे को भेजा था डरते डरते प्रेजेंटेशन दे कर आया हूँ. अगर डील फाईनल हो गयी तो समझो तुम लोगों को जानी वाकर पिलाउंगा तुम लोगों ने तो सिर्फ नाम ही सुना होगा न..." "चल तू ज्यादा मत बोल मुझे भी क्लाईंट ऑफ़र करते हैं... ...! " ... !!
"और बॉस आपकी कैसी चल रही है?" किसी ने मेरे उपर ईशारा किया. (ये भी एक फैशन है अपने अगल बगल रहने वाले साथियों को संबोधित करने का ). "..अरे इनसे मत पुछो ये कवि आदमी हैं, देश को सुधारने की बात करते हैं. कल नाईट में बस एक ग्लास बियर लेने के बाद ही शुरू हो गए. कोई सोसायटी संगठन बनाने की बात कर रहे थे. हमारे तो भेजे से ऊपर निकला गया. ये इंटरनेट पर कविता लिखते हैं. भइये खुद को बदल डालो यही बहुत है. देश तो भगवान् भरोसे चल रहा है जैसे कि अपनी जॉब पता नहीं कब निकाल दिया जाये." किसी दुसरे ने टोका "यू मीन ब्लोग? येस येस! ...गुड डैट इज गुड हाबी. आई एम अलसो राईटिंग ब्लोग. माई सबजेक्ट इज स्मार्ट एंभेस्टमेंट इन फलाक्चुयेट मार्केट."
मैं जवाब में बस इतना ही कह पाया "तुमने ठीक कहा खुद को बदल डालो यही बहुत है, देश अपने आप सुधर जायेगा. वैसे मेरा यहाँ खूब मन लग रहा है. सोफ्टवेयर कंसल्टेंसी के फील्ड में हूँ, मंडे टू फ्राइडे ऑफिस ड्यूटी. रविवार को साफ़ सफाई, मिलना मिलाना या पोस्टें पढना, (कविता, ग़ज़ल, हास्य, कुछ भी) लिखना. एक दिन सेटरडे को बिजनेस (स्वयं को बिजी रखने) की प्लानिंग करता हूँ. और हाँ एक गुड न्यूज है. मैंने अपना बिजनेस का रजिस्ट्रेशन करा लिया है. अब तो बिजनेस को हलके में नहीं लूँगा." जैसे पिछले दो साल से करता आया था. फिर किसी ने टोका "बाय द वे आप करना क्या चाहते हैं?" मैंने बोला "छोटा मुंह बड़ी बात. मैं अपने जीवन में एक लाख युवाओं को बिजनेस ट्रेनिंग देना चाहता हूँ जिसमे ज्यादातर भारतीय युवा हों जहां वे स्वयं के बनाए हुए विदेश के क्लाइंट्स को इन्टरनेट पे डील करें और आत्मविश्वास से ये बोलें कंपनी अगर जॉब से निकाल भी दे तो कोई फिकर नहीं अपना साईड बिजनेस से खर्चा निकलता रहेगा " (शेष अगले भाग में जारी...)
ये पोस्ट विशेष कर मैंने 20 से 30 के युवाओं के लिए लिखा है. बाकी सभी नए पुराने ब्लोगर साथियों के लिए जिनके मेल आते रहते हैं बड़े स्नेह से पूछते हैं सुलभ कुछ नया नहीं लिख रहे हो. अभी कल ही नोएडा के फ्लावर एग्जिबिशन में गया हमारे पी.जी. के पास वाले स्टेडियम में ही लगा है, बहुत तरह के फूलों और केक्टस के पौधे देखे. बोनसाई ने विशेष आकर्षित किया (देखें चित्र ).
चलिए कुछ पंक्तियाँ पेश है....
रौनके महफ़िल में मुश्किलात पेश करते हैं
उलझे उलझे से हम ख्यालात पेश करते है
कोई रो रो कर अपने जज़्बात पेश परते हैं
हम हँसते हुए मुकम्मल हालात पेश करते हैं
- सुलभ