Pages

हम आपके सहयात्री हैं.

अयं निज: परो वेति गणना लघुचेतसाम्, उदारमनसानां तु वसुधैव कुटुंबकम्

Tuesday, March 25, 2008

यादों का इन्द्रजाल... Poetry by Sulabh Jaiswal: एक सुलभ सर्वसुलभ

यादों का इन्द्रजाल... Poetry by Sulabh Jaiswal: एक सुलभ सर्वसुलभ

Monday, March 24, 2008

मस्त फाल्गुनी हवाओं की गुनगुनाती होली आयी...



रंगभरी मस्ती मे डूबी मस्तानों की टोली आयी
मस्त फाल्गुनी हवाओं की गुनगुनाती होली आयी ।

गली गली मे रौनक है घर मे हो रहा हंगामा
जिसको देखो वही रंगीन जीजा भाभी या हो मामा ।

छक कर खाओ पुवे पकवान लस्सी और मिठाई
नाचो गाओ और बजाओ ढोलक मंझीरे शहनाई ।

हर जीवन में बनी रहे यही उमंग यही तरंग
अपना पराया किसे कहें हर किसी पे डाले रंग ॥



- सुलभ जायसवाल


२२ मार्च २००८

लिंक विदइन

Related Posts with Thumbnails

कुछ और कड़ियाँ

Receive New Post alert in your Email (service by feedburner)


जिंदगी हसीं है -
"खाने के लिए ज्ञान पचाने के लिए विज्ञान, सोने के लिए फर्श पहनने के लिए आदर्श, जीने के लिए सपने चलने के लिए इरादे, हंसने के लिए दर्द लिखने के लिए यादें... न कोई शिकायत न कोई कमी है, एक शायर की जिंदगी यूँ ही हसीं है... "